चंद्र शेखर शर्मा पत्रकार कवर्धा 9425522015
हमेशा की तरह जोश और जुनून से भरा स्वतंत्रता दिवस इस बार कोरोना आँटी के जानलेवा इश्क के दहशत के बीच नेताओ अफसरों की जनता से दूरी बनवाते गुजर गया । आजकल में हमारी देश भक्ति भी अगली तारीख बोले तो गणतंत्र दिवस तक के लिए सो भी जाएगी । इस बीच कभी कभार अलसाई नींद से जाग गई तो धर्म ,जाति , क्षेत्र और क्षद्मराष्ट्र वाद के नाम पर शोशल मीडिया में जाग क्षणिक जोश मार भी लेगी ।
15 अगस्त और 26 जनवरी दो ऐसी तारीखें है जब हमारे सीने में राष्ट्रवाद का जोश उबाल मारने लगता है । कलफदार कुर्ता पहन सेल्फ़ीवाली देशभक्ति छाई रहती है । हम सब एक है , हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई आपस में भाई भाई , अखंड भारत जैसे के नारे हम लागते फिरते है । वैसे हमारा संविधान भी कहता है कि जाति,धर्म और क्षेत्र के आधार पर किसी से कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा । जबकि हकीकत में भेदभाव इन्हीं तीन आधार पर सालों से होता आ रहा है । बच्चे के जन्म से ही उसकी जाति निर्धारित हो जाती है । स्कुल कॉलेज में एडमिशन लेना हो या नौकरी का फार्म भरना हो जाति और धर्म का कालम होता ही है और फिर नेताओ की तुष्टिकरण की नीति से पैदा आरक्षण का राक्षस तो सर चढ़ कर बोल ही रहा है । आज काफी अरसे बाद मेरी बिटिया ने पूछा पापा आपने मेरा निवास प्रमाण पत्र आधार कार्ड तो बनवा दिया पर मेरा जाति प्रमाण पत्र आप क्यों नही बनवाते ? मेरी सहेलीयो का जाति प्रमाण पत्र भी बन गया है तो मेरा क्यों नही ? उन्हें छात्रवृत्ति भी मिलती है मुझे क्यों नही ? मुझसे कुछ नाराज भी हुई । अब उसे कैसे समझाऊँ कि सरकार की नजर में हम लोग सामान्य है और सामान्य लोगो यानि हमारी जाति नही होती , होती भी है तो किसी प्रमाणपत्र की मोहताज नही । स्कूलों में जाति निवास बनाये जाने के सरकारी फैसले , स्कूलों में बंटती छात्रवृत्ति में जातिवाद के चलते बच्चे के मन मे ये सवाल उठना स्वाभाविक भी है । बच्चो को आपस मे सरकारी योजनाओं में जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव होता दिख रहा है , पर हमारे देश के खद्दरधारी कर्णधारो नीति नियंताओं को दिखाई नही देता । तभी तो हमारा देश अजब है पर गजब है ।
धर्म और जाति से परे होने की बाते लच्छेदार भाषणो में ही अच्छी लगती है । मुझे तो जाति ,धर्म और क्षेत्र के आधार पर बंटा सारा देश दिखता है । वैसे सन 1947 में देश का बंटवारा ही में धर्म के आधार पर किया गया था । आज आजादी के 73 बरस बाद भी देश में अधिकांश क्षेत्रीय राजनैतिक दलो का गठन भी जातिय समीकरण और क्षेत्रीयता के आधार पर ही होता है । राजनैतिक दल भी टिकट जातिय संतुलन और क्षेत्र वाद को देखते हुए देते है। देश आज भी उत्तर भारतीय , दक्षिण भारतीय , कश्मीरी , असमिया , हिंदीभाषी क्षेत्र और भाषा पर बंटा दिखता है तो फिर हम किन बातों के दम पर जाति,धर्म और क्षेत्र के आधार पर किसी से कोई भेदभाव नही होने की बाते कहते है ।
और अंत मे :-
दौर वह आया है, कातिल की सज़ा कोई नहीं ,
हर सज़ा उसके लिए है, जिसकी खता कोई नहीं ।
माना कि तुम्हें इसी निजाम में रहना है ,
पर हाकिम के तलवे चाटने किसने कहा है ।।