Tuesday, April 16

छत्तीसगढ़ की धरती कभी रही थी बुद्ध की भूमि – प्रोफ़ेसर राजेंद्र प्रसाद सिंह

दुर्ग/ भिलाई, 12 नवम्बर 2022 / मूलनिवासी कला साहित्य और फ़िल्म फेस्टिवल- 2022 का दो दिवसीय आयोजन नेहरू ऑफ़ कल्चर सेक्टर-1 भिलाई में किया जा रहा है. इस अवसर पर बिहार आरा से आए देश के जानेमाने भाषाविद और इतिहासकार प्रोफ़ेसर राजेंद्र प्रसाद सिंह ने प्राचीन भारत के इतिहास और सभ्यता का पुनर्विलोकन विषय को लेकर कहा कि विश्व विद्यालयों में इतिहास और हिंदी साहित्य में बहुत सारी चीजों को उल्टा पढ़ और पढ़ा रहे है, वास्तव कुछ है और उसके बारे में कुछ और बताया जा रहा है. इसको सीधा करना होगा. जो आम आदमी से सीधा नही होगा। हिंदी साहित्य का इतिहास गलत पढ़ा रहे हैं. हिंदी भाषा का विकास अपभ्रंश से हुआ है। अपभ्रंश का मतलब नीचे गिरा हुआ होता है. किसी आचार्य ने संस्कार की भाषा संस्कृत को कह दिया और हिंदी को अपभ्रंश बताया जा रहा है. ये हिंदी को किसी ने गलती से कह दिया. उन्होंने कहा कि संविधान ने लिंग के आधार पर भेदभाव नही किया है. तो हम भाषा के आधार पर लड़की को अच्छी व लड़का को अच्छा कह क्यों अंतर बता रहे हैं. अंग्रेजी इंटरनेशनल भाषा हो गया क्योंकि इसमें भेद नहीं. राम गो तो भी सीता गो.

धम्म का धाम है बौद्ध की नगरी धमधा-

इतिहासकार प्रोफ़ेसर राजेंद्र प्रसाद सिंह भिलाई आने से पहले धमधा पहुंचे. वहां उन्होंने तिरुमुर्ती महामाया मंदिर गेट पर गौतम बुद्ध की नक्कासी की मूर्ति भूमि स्पर्श मुद्रा में है. जहाँ मंदिर के पिलरों में बौद्ध कालीन अभिलेखों का प्रमाण मिले हैं. प्रोफ़ेसर राजेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया कि धमधा बौद्ध की नगरी है. धमधा का शाब्दिक अर्थ है धम्म–धाम है. उन्होंने धमधा के एक वारिष्ठ साहित्यकार बंगाली प्रसाद ताम्रकार की डायरी का जिक्रा करते हुए बताया कि डायरी के पहले पन्ने पर लिखा है कि हमारे धमधा नगर में दो बौद्ध विहार है. यह डायरी बंगाली प्रसाद के सुपुत्र सेवानिर्वित्त शिक्षक विष्णु प्रसाद ताम्रकार ने उपलब्ध कराया. बंगाली प्रसाद ताम्रकार का निधन वर्ष २००६ में लगभग ९० वर्ष कि उम्र में हुआ था. वे कवि, लेखक, साहित्यकार के रूप में काफी प्रसिद्ध थे. प्रोफ़ेसर राजेंद्र प्रसाद सिंह के धमधा आगमन पर धर्मधाम गौरवगाथा समिति के सामर्थ्य ताम्रकार, अशोक देवांगन, अरविंद ताम्रकार और जनपद सदस्य ईश्वरी निर्मलकर ने उन्हें किला, मंदिर भ्रमण, विष्णु मंदिर का भ्रमण कराया।

प्रोफ़ेसर राजेंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि जिस प्रकार धमधा, सिरपुर, आरंग के पास रीवा गाँव बुद्ध विहारों के अवशेष खुदाई से मिल रहे हैं. इससे स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ की धरती कभी बुद्ध की भूमि रही थी. सिरपुर की खुदाई में विशाल बौद्ध विहार मिले हैं. हाल ही में रीवा कि खुदाई में बौद्ध के अवशेष मिल रहे हैं. छत्तीसगढ़ की पूरी धरती में बुद्ध की अकूत खजाना है। बुढा देव मंदिर का मतलब भी बताया बुद्ध यानि अंग्रेजी शब्दों के आधार पर  “budha” होता है. यह मंदिर गोड राजाओं ने बनवाया था.

      तथागत बुद्ध का ही एक नाम है सतनाम –

प्रोफ़ेसर राजेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया कि तथागत गौतम बुद्ध का एक नाम ही सतनाम था. छत्तीसगढ़ में बाबा गुरुघासीदास ने इसी सतनाम पंथ की स्थापना कर सतनाम आन्दोलन चलाया था. गुरु घासीदास, गुरु नानक देव, संत कबीर दास, संत रैदास अपनी भाषा में वही सतनाम को कहते है ये कोई मामूली बात नही है. इसका उल्लेख पाली और बुद्धिज्म पर काम करने वाले विद्वान भरत सिंह उपाध्याय ने सतनाम पर रिसर्च कर अपनी किताब में विस्तार से लिखा है.

रैदास का मूल्यांकन चल रहा रैदास जिस निरंजन कि बात करते हैं वो कौन है. गुरु घासी दास, गुरु नानक व कबीर भी निरंजन की बात करते हैं. दरअसल वर्मा और बंगला देश के बीच रावल लोग निवास करते थे जो बुद्ध को मानते थे. इसी रावल नाम से पाकिस्तान में रावल पिंडी शहर बसा जहाँ जो बौद्ध भिक्षुओं का नगर था. यही रावल लोग निरंजन की पूजा करते थे.

रावल पिंडी में बुद्ध को मानने वाले, निरंजन यानि तथागत गौतम बुद्ध को इसी नाम से मानते थे. यह उत्तर बौधिष्ट परम्परा हैं. श्री भी बुद्ध का ही नाम है.

अरब और यूरोप ने सिखा बुद्ध के देश से गिनती –

 प्रो. सिंह ने बताया कि 7 वीं सदी में अरब और 12 वीं सदी में यूरोप के लोग बुद्ध के देश भारत ने ही 1,2, 3 की गिनती यानि अंको की गणना के लिए लिपि लेकर गए. सिखाये तब जाकर यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुआ. 16 वी सदी में बेकर ने यूरोप लेकर गया कि बिना  कोई कारण के कोई काज नही होता। तब न्यूटन और गैलेलियो पैदा हुआ। हमारे देश में आज भी आसमान में स्वर्ग की खोज करते हैं. जबकि जापानी, चीन व उत्तर कोरिया के लोग अपनी भाषा में दुनिया का स्वर्ग भारत को कहते हैं. चीनी यात्री हेनसांग ने सिरपुर यानि श्रीपुर का वर्णन जो किया. वही खुदाई में बुद्ध विहार मिला है. विश्व गुरु बुद्ध को कहा जाता है जिसका प्रभाव एशिया में सहित विश्व में था. बुद्ध से पहले 27 बुद्ध हुए. बौद्ध धर्म ही सेकुलर है और का सेकुलर का अर्थ जो परलोक में विश्वाश नही करता है। ताजमहल अजूबा नही गया का महा बोधीटेम्पल अजूबा है. एलेग्जेंडर ने जो खोज की उसने कुशी व लुम्बनी, नगर और सुजाता का गांव मिला. सिंधु घाटी की सभ्यता, हड़प्पा, मोहन जोदड़ो की सभ्यता भी स्तूप की खुदाई से मिले. इंडस वैली सिविलाइजेशन से अशोक की लिपि मिली है. सम्राट अशोक ने 5वी सदी में सीरिया से लेकर बंगाल की खाड़ी तक अस्पताल बनवाया था.

चौथे मूलनिवासी कला साहित्य और फ़िल्म फ़ैस्टिवल का आयोजन नेहरू ऑफ़ कल्चर सेक्टर -1 भिलाई कार्यक्रम का पद्मश्री नेल्सन ने संविधान की उद्देशिका का अनावरण कर चित्रकला प्रदर्शनी का उद्घाटन किया. चित्र कला वीथिका के गेट जोसफ़ गिल्बर्ट ने डिज़ाइन किया.

अमोल मेश्राम द्वारा डिजिटल आर्ट में बाबा साहेब आंबेडकर के बचपन और तथागत गौतम बुद्ध के घर छोड़ने और बुद्धत्व प्राप्त करने के दृश्य को दिखाया गया है. यह फ़ैस्टिवल पुरानी पीढ़ी से नई पीढ़ी की संवाद के लिए किया गया है. फ़िल्म फ़ैस्टिवल में ६ लघु फ़िल्में दिखाई गई. भीम गीत परंपरा के गायक, आम्बेडकरी जलसा के द्वारा संभाजी भगत ने अपने प्रबोधन में सुनाया, एकल नाटक रमाई प्रस्तुत की गई. साथ ही मूलनिवासी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है. रायपुरा रायपुर से जय सतनाम तेरे नाम पंथी दल ने गुरु घासीदास बाबा की शिक्षाएं को अपने नृत्य पंथी के माध्यम से प्रस्तुति दी.

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