बात बेबाक – कुर्सीनामा भाग – 14 चंद्र शेखर शर्मा(पत्रकार)
9425522015
रंग को रंग न जानिए , इनमें भी होत जान ।
इन्ही से अरदास है , है इन्ही से अजान ।।
राजनीति और रंग एक दूसरे के पर्याय होते जा रहे है । समझदार होते आदमियों ने अपनी सुविधानुसार रंगों की भी जाति, धर्म , पार्टी और लिंग निर्धारित कर लिए है । हरे रंग की बात करो तो मुस्लिम नाराज , भगवे रंग की बात करो तो हिन्दू नाराज , नीला रंग हो गया बहुजन, गुलाबी जोगी कांग्रेस , भगवा हो गया तो भाजपाई , पिंक या पर्पल हो तो लड़की वाला रंग यानि स्त्रीलिंग और काला रंग तो विरोध प्रदर्शन का प्रतीक ही बन गया है । काले रंग की बात सुनते ही नेताओ का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है , फिर जनता और विरोधियों की शामत आ जाती है ।
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आता है वैसे वैसे रंगों की उपयोगिता भी बढ़ने लगती है । भले ही हम 21 वी. सदी में सफर करते चांद तक पहुंच चुके है मंगल से लेकर सूरज तक का सफर कर रहे है किंतु आज भी रंगो की दहशत इस कदर...