Thursday, March 28

आरती श्री संविधान जी की … (आलेख : राजेंद्र शर्मा)

राष्ट्रपति जी ने यह ठीक नहीं किया। संविधान दिवस का मौका था तो क्या हुआ, उन्हें मोदी की बात नहीं काटनी चाहिए थी। संविधान में उनकी कुर्सी सबसे ऊंची होने से क्या हुआ, उन्हें पीएम जी के कहे से बाहर नहीं जाना चाहिए था। बताइए, मोदी जी ने संविधान दिवस पर पब्लिक को उसके असली कर्तव्यों की याद दिलायी। पब्लिक को उसके कर्तव्यों की याद ही नहीं दिलायी, उसे इसका ज्ञान भी दिया कि अब जब अमृतकाल चल निकला है, पब्लिक का एक ही सबसे बड़ा काम है –कर्तव्यों का पालन करना। और कर्तव्यों में सबसे बड़ा कर्तव्य है, जय-जयकार करना और ऐसे जय-जयकार करना कि दुनिया सुने और कहे कि देश हो, तो ऐसा। सारी दुनिया के राज करने वाले सुनकर रश्क करें — राज हो, तो मोदी जी जैसा। अब कामन सेंस की बात है कि मोदी जी के कर्तव्य का महत्व बताने से भी कोई सब तो अपने आप कर्तव्य का पालन नहीं करने लग जाएंगे। उल्टे पहले की तरह बहुत से तो अमृत काल में भी अधिकार-वधिकार का शोर मचाकर, जय-जयकार में विघ्र डालने लग ही जाएंगे। तब तो मोदी जी-शाह जी का कर्तव्य भी होगा और अधिकार भी कि चाहे यूएपीए लगाएं या सेडीशन लगाएं, पर अधिकार की आवाजों को बंद कराएं।

विरोध की कर्कश आवाजों को बंद कराना है, तो आवाज उठाने वालों को जेल में डालना होगा। देश यानी राज की जय-जयकार का विकास करना है, तो जेलों का विकास जरूरी है। पर राष्ट्रपति जी ने तो सब के सामने कह दिया कि जेलों का विकास तो कोई विकास ही नहीं है। विकास तो तब होगा, जब जेलें बंद की जा रही होंगी! कहां तो मोदी जी-शाह जी की सरकार सेडीशन के बाद, यूएपीए में जेल भेजने का हर रोज नया-नया रिकार्ड बनाने का कर्तव्य पूरा करने में लगी है और कहां राष्ट्रपति जी इसे विकास मानने से ही इंकार कर रही हैं! राष्ट्रपति का क्या यही कर्तव्य है? माना कि राष्ट्रपति जी राष्ट्र की प्रथम नागरिक हैं, पर हैं तो नागरिक ही! जय-जयकार करना तो उनका भी मौलिक कर्तव्य है। अगर प्रथम नागरिक ही जय-जयकार करने का अपना कर्तव्य पूरा करने में कोताही बरतेगा, तो आखिर वाले करोड़ों नागरिकों से शाह जी, मोदी जी की जय-जयकार कैसे कराएंगे। राष्ट्रपति जी गांधी जी का फार्मूला कैसे भूल गयीं–आखिर वाले बंदे पर नजर रखो!

पर राष्ट्रपति जी संविधान को तो गलत समझीं सो समझीं, गांधी जी के अखिरी आदमी वाले फार्मूले को भी गलत समझ बैठीं। मोदी जी की तरह आखिरी आदमी को जय-जयकार करने का उसका कर्तव्य याद दिलाना तो दूर रहा, उसके अधिकारों की, बल्कि उसे अधिकार नहीं मिलने की ही याद दिलाने लगी गयीं। कहने लगीं कि वह जहां से आती हैं, वहां तो गरीबों को अपने अधिकारों का पता तक नहीं है, अधिकार हासिल करने की बात तो दूर रही। मामूली-मामूली बातों के लिए गरीबों की पूरी-पूरी जिंदगियां जेलों में गुजर जाती हैं। न जमानत, न सुनवाई, न रिहाई। सजा भी नहीं, बस जेल। घर वाले भी छुड़ाने के लिए कुछ करने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं, क्योंकि कुछ किया तो जेल गया बंदा तो नहीं छूटेगा, पर घर के बर्तन-भांडे तक बिक जाएंगे। और भी न जाने क्या-क्या? राष्ट्रपति जी क्या कहना चाहती हैं — मोदी जी राज के साढ़े आठ साल बाद भी गरीबों के लिए अमृतकाल की जगह, गोरा राज काल ही चल रहा है! कहां तो मोदी जी भारत को विश्व गुरु बना रहे हैं, साल भर के लिए ही सही, जी-20 की अध्यक्षता की ट्राफी जीतकर ला रहे हैं और कहां राष्ट्रपति जी कह रही हैं कि गरीब प्रजा अब भी, गोरा राज काल में जी रही है। ऊपर से चीफ जस्टिस साहब उनकी हां में हां मिला रहे हैं। यह तो मोदी जी के साथ न्याय नहीं है।

राष्ट्रपति जी, आप भी तो प्रथम नागरिक कर्तव्य निभाओ, मोदी जी के राज के भारत के अमृत काल में गरीबों की बात कर के यूं बदनाम ना कराओ। अधिकार-वधिकार के चक्कर में मत पड़ो, बराबरी की बात तो खैर, जुबान पर भी मत लाओ। हां! चाहे तो संविधान का ही लगाओ, पर सिर्फ जयकारा लगाओ! अथ आरती श्री संविधान जी की जो कोई नर-नारी गावे…।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *