नई दिल्ली । अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसख्यंक दर्जे पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। कोर्ट का कहना है कि एएमयू का अल्पसंख्यक का दर्जा बरकरार रहेगा। कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। 7 जजों की बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा का फैसला एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के पक्ष में रहा। वहीं जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपाकंर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा इससे असहमति नजर आए। कोर्ट ने विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान माना है। अदालत ने 4-3 से 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जो एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार करने का आधार बना था।
क्या है मामला
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा ‘अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज’ के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक केंद्र स्थापित करना था। बाद में, 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और इसका नाम ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ रखा गया।
एएमयू अधिनियम 1920 में साल 1951 और 1965 में हुए संशोधनों को मिलीं कानूनी चुनौतियों ने इस विवाद को जन्म दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में कहा कि एएमयू एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। लिहाजा इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। कोर्ट के फैसले का अहम बिंदू यह था कि इसकी स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के तहत हुई है ताकि इसकी डिग्री की सरकारी मान्यता सुनिश्चित की जा सके। अदालत ने कहा कि अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रयासों का परिणाम तो हो सकता है लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने की थी। ं
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