Thursday, April 25

राजधानी दिल्ली को लीलता पर्यावरण प्रदूषण) बुजुर्गों और बच्चों के लिए सर्वाधिक खतरनाक प्रदूषणl

अब सिर्फ इसी की कसर रह गई थी कि भारत का दिल, दिल्ली विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित शहर माना जा रहा है l इसके बाद बांग्लादेश का ढाका शहर आता है l
दिल्ली का वायु प्रदूषण करोना से भी ज्यादा स्थाई खतरा माना जा रहा है। बच्चे और बुजुर्गों के लिए खासकर उनकी स्वास नलियों तथा फेफड़ों में प्रदूषण के छोटे-छोटे कणों से उनके वायु तंत्र को अवरुद्ध कर कर उन्हें बीमार बना देते हैं। यह एक गंभीर समस्या हैl पर्यावरण प्रदूषण खासकर वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मुंबई, कोलकाता और अन्य राज्यों की राजधानी में खासकर शीतकाल में अत्यंत चिंताजनक स्थिति पैदा हो जाती है। गर्मियों में प्रदूषण तथा गर्मी लोगों को बुरी तरह संक्रमित करती है।
दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश के 8 बड़े शहर का पर्यावरण प्रदूषण खासकर वायु प्रदूषण खतरे के निशान से काफी ऊपर जा चुका है, अस्थमा तथा फेफड़े की बीमारियों के मरीज की संख्या में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है और सरकारें इसे संभाल नहीं पा रही है, ऊपर से कोविड-19 का संक्रमण वायु प्रदूषण के साथ जुगलबंदी कर लोगों की जान ले रहा है। वायु प्रदूषण स्थाई समस्या है यह करोना से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। करोना का इलाज तो वैक्सीनेशन से किया जा सकता है, एवं उसकी दवाई बनाई जा सकती है, और बनाई भी जा रही है। पर वायु प्रदूषण, पर्यावरण की गंभीर समस्या जिस पर यदि लगाम नहीं लगाई गई तो लाखों लोगों को सांस की बीमारियों से बचाया नहीं जा सकेगा।
समग्र रूप से पर्यावरण में अपशिष्ट पदार्थों का बिगड़े अनुपात में मिलना ही प्रदूषण को वातावरण में जन्म देता है। वैसे तो प्रदूषण के कई प्रकार हैं, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि इत्यादि।
पर वायु प्रदूषण इन सब में सर्वाधिक खतरनाक और मानवीय जीवन के लिए संहारक है। वायु में विषैली गैस के मिश्रण धूल और उद्योग द्वारा फैलाए गए जहरीले अपशिष्ट गैसों से वायु प्रदूषण तेजी से फैलता है। अमेरिकी शोध संस्थान द्वारा स्पष्ट रूप से चेतावनी दी गई है कि भारत में वायु प्रदूषण से जनसंख्या के 40 से 45 प्रतिशत लोग प्रभावित हैं। एवं वायु प्रदूषण के कारण संपूर्ण जीवन में जीने के लिए 10 से 15 वर्ष तक उनकी जिंदगी के कम हो सकते हैं। क्योंकि भारत वैश्विक देशों से सर्वाधिक वायु प्रदूषित देश माना जाता है। इस शोध संस्थान द्वारा चेतावनी के साथ मशवरा भी दिया गया है कि वायु प्रदूषण को तत्काल कम करने के कारगर उपाय करने होंगे।अन्यथा देश के बड़े शहरों में और उद्योग नगरी के साथ में बसे हुए शहरों में वायु प्रदूषण से मानव जिंदगी को खतरे बढ़ सकते हैं। भारत में दिल्ली,मुंबई,कोलकाता, चेन्नई तथा मध्यम जनसंख्या वाले लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, रायपुर, इंदौर तथा उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों में वायु प्रदूषण के कारण ज्यादा दमा तथा अस्थमा से मौतें हुई हैं। करोना काल में भी वायु प्रदूषण से फेफड़े खराब होने के कारण कई मरीजों की विषम परिस्थितियों में मृत्यु हुई है। कोविड-19 के संक्रमण से सबसे ज्यादा मरने वाले व्यक्तियों में वायु प्रदूषित व्यक्ति ही फेफड़ों की खराबी के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का औसत हवा में प्रदूषण कारी सूक्ष्म कणों की मौजूदगी 70.3% है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वस्थ वायु प्रदूषण की मानक की स्थिति 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर मानी गई है। इस तरह भारत मैं प्रदूषण के महीन कणों की उपस्थिति विश्व के अन्य देशों की तुलना में 7 गुना प्रति क्यूबिक मीटर ज्यादा आंकी गई है। जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अति खतरनाक बताई गई है। इस तरह भारत दुनिया का सबसे प्रदूषित देश माना गया है। यहां जनसंख्या के 48 करोड़ लोग वायु संक्रमित पाए गए हैं इस तरह देश की लगभग 40% आबादी जहां वायु प्रदूषण का स्तर एवं अन्य प्रदूषण का स्तर भी नियमित रूप से दुनिया में कहीं भी पाए जाने वाले स्तर से बहुत अधिक है। जोकि स्वास्थ्य संगठनों की नजरों में बहुत ही चिंतनीय एवं गंभीर है। अमेरिका के एक शहर शिकागो में स्थित एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ऑफ पोलूशन द्वारा बताया गया है कि दिल्ली और उत्तरी भारत में रहने वाले 48 करोड़ से ज्यादा लोग प्रदूषण के बढ़े हुए स्तर पर जल प्रदूषण में जी रहे हैं। प्रदूषण जो कोविड-19 के संक्रमण से भी ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि कोविड-19 का संक्रमण एक संक्रामक रोग है, जिसकी वैक्सीन लगाकर रोकथाम की जा सकती है। पर पर्यावरण में प्रदूषित करने वाले सूक्ष्म पार्टिकल समान रूप से सभी नागरिकों को अपनी गिरफ्त में लेकर उनके फेफड़े खराब करने का काम करता है जो ज्यादा खतरनाक एवं जानलेवा है। मनुष्य स्वाभाविक रूप से प्रकृति पर निर्भर है। प्रकृति पर उसकी निर्भरता तो समाप्त नहीं की जा सकती है। किंतु प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा इसका प्रतिकूल प्रभाव पर्यावरण पर ना पड़े या कम से कम पड़े। हमें उद्योगों की संख्या के अनुसार उसी अनुपात में बड़ी संख्या में वृक्षारोपण भी करना पड़ेगा। वृक्षारोपण आज पर्यावरण से बचाने की एक बड़ी तथा महती आवश्यकता है। वातावरण में घुली विषैली गैस होने के कारण शहर में मनुष्य का सांस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है। विश्व की जलवायु में तेजी से हो रहे परिवर्तन के कारण पर्यावरण असंतुलन का बड़ा कारण वायु प्रदूषण ही है। औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ मोटर, रेल,घरेलू, औद्योगिक मशीनें एयर कंडीशन आदि वायु प्रदूषण के लिए अत्यंत खतरनाक माने गए हैं। परिणाम स्वरूप राष्ट्रीय स्तर पर और देश के नागरिकों को ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण किया जाना होगा।और वृक्षों तथा जंगलों की कटाई को तत्काल प्रभाव से प्रतिबंधित किया जाने की तत्काल आवश्यकता है। अन्यथा इसके दुष्परिणाम सामने आने लगेंगे तथा इसका सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पड़ेगा। वैश्विक आकलन के अनुसार भारत की विशाल जनसंख्या एक शक्ति तथा बाजार का उपभोक्ता केंद्र है। अतः हमें अपने नागरिकों की जनसंख्या को पर्यावरण प्रदूषण की बलि चढ़ने से रोकना होगा। वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा प्रभाव नौनिहालों और बुजुर्ग व्यक्तियों पर पड़ता है। दोनों की रक्षा करना देश तथा आमजन का प्रथम दायित्व होगा। अब हमें कोरोना के अलावा वायु प्रदूषण से भी युद्ध स्तर पर जंग करनी होगी। क्योंकि भारत देश विश्व में सर्वाधिक प्रदूषित देश माना जाने लगा है।
संजीव ठाकुर, चिंतक, लेखक, रायपुर, छत्तीसगढ़, 9009 415 415,

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *