
दिल रो पड़ेगा आपका कांकेर में एक आॅटो के एक्सीडेन्ट का सुनकर। जिसमें 7 छोटे स्कूली बच्चे काल के गाल में समा गये। वे बेचारे मासूम एक आॅटो वाले की बेवकूफी भरी दादागिरी के शिकार हो गये।
ऐसा क्यों कह रहा हूं, ये भी समझिये। रायपुर तो प्रदेश की राजधानी है। पूरा प्रशासन यहां पर है। मंत्री विधायकों का डेरा यहीं रहता है। फिर भी कभी सड़क पर आपको कट मारकर कोई आॅटो वाला आगे निकल जाए और उसके कट मारने से आप गिरते-गिरते बचें और अगर आप बुजुर्ग हैं और आपका ब्लडप्रेशर हाई हो जाए। आपके साथ आपकी पत्नी, बेटी या छोटा बच्चा हो, और…. अगर आपने उस आॅटो वाले को कुछ कह दिया, कोई नसीहत दे डाली तो यकीन मानिये वो न सिर्फ आपको सड़क पर जलील कर देगा बल्कि ज्यादा बहस करने पर आपके परिजनों के सामने ही मारने मे भी गुरेज नहीं करेगा। इनको कोई लिहाज नहीं, कोई मुरव्वत नहीं , कोई संस्कार नहीं, कोई रहम नहीं। साथ ही इनको उपर वाले भगवान और नीचे वाले भगवान यानि पुलिस का भी कोई डर नहीं। उखाड़ लो जो उखाड़ सकते हो।
रोड पर इनका एकाधिकार है
कट मारकर आगे बढ़ जाना, साईड से एकदम से सटाकर निकालना, बिना इंडीकेटर जलाए मोड़ देना, सड़क के थोड़ा सा किनारे में सवारी देखकर एकाएक रोक देना फिर चाहे पीछे से आने वाला गिर ही क्यों न पड़े। सब इनकी बला से। जहां पर जरा सी जगह मिले अपना अगला चक्का घुसाकर खतरनाक तरीके से घुस जाओ और सारा ट्रैफिक जाम कर दो।
वो बेवकूफ और निरंकुश आॅटोवाला बच्चों को लेकर जा रहा था और खबर के मुताबिक मटर खा रहा था। मटर खाते-खाते आॅटो चला रहा था। और जानकारी के अनुसार उसने बिना नियमों का पालन करते हुए एकाएक आॅटो मोड़ दी और सामने से आ रही ट्रक से टकरा गया। जाहिर तौर पर इसमें आॅटो वाले की ही गलती थी। नतीजा 7 मासूम बच्चों की अकाल मृत्यु। कोई कैसे सहन कर सकता है इसे ?
काश पुलिस वाले भी इंसान होते
पुलिस वाले पुलिस वाले होते हैं इंसान नहीं, क्या ये समझा जाए ? क्या कहा ? इसमें पुलिस का क्या दोष ? तो फिर कौन है जो इनका हौसला बढ़ाता है ? कौन है जो इनको ऐसी दादागिरी करने की छूट देता है ? आॅटोवाला बीच बाजार किसी को गिरा दे फिर गालियां दे और मूड खराब हुआ तो मारे भी… इसकी इजाजत इन्हें कौन देता है ?
जब किसी का अपना कोई ऐसे हादसों में उन्हें छोड़ जाता है तब उस दुख का अहसास होता है अन्यथा तो बस पैसा ही सबकुछ है। जिस प्वाईन्ट पर कमाई हो वहां डेरा तम्बू गाड़ दो। जनता के जान और मान का ठेका थोड़े ही लिया है पुलिस प्रशासन ने।
आरटीओ ने न क्षतिपूर्ति दी
न जुर्माना भरा
सूचना का अधिकार के तहत एक बार प्रशासन से जानकारी मांगी गयी थी कि आॅटो का भाड़ा कहां से कहां तक कितना तय हुआ है और इनके प्रशिक्षण के लिये क्या प्रोग्राम सरकार के पास है। इस पर कोई जानकारी नहीं दिये जाने पर सूचना आयोग द्वारा आरटीओ पर जुर्माना भी किया गया और आवेदक को क्षतिपूर्ति का भी आदेश हुआ। लगभग आठ साल हो गये। न जुर्माना भरा गया न क्षतिपूर्ति ही दी गयी। पुनः आवेदन करने पर सूचना आयोग में आवेदन ही गुमा दिया गया। लगाते रहिये चक्कर इस राक्षसराज में। अफसर, अफसर होता है सत्ता किसी की भी हो खून वो चूसेगा ही। आरटीओ ही क्यों न हो ?
देश के तमाम बड़े शहरों में सबसे महंगा है राजधानी का आॅटो भाड़ा। किसी को इस बात पर कोई चिन्ता नहीं।
किसी के बाप में दम नहीं
कि मीटर लगवा दे
बीस साल पहले के कुछ जांबाज अधिकारियों ने काफी प्रयास किये कि आॅटो में मीटर लगाए जाएं। हर दो-तीन साल में ये घोषणा की जाती थी लेकिन मीटर कभी लगाने में प्रशासन सफल नहीं हुआ। कारण अज्ञात है। कोई बात नहीं भैया पैसों की लूट जारी है तो लूट लो मगर जान से तो मत खेलो। अपने बच्चों की जान को दांव पर मत लगाओ। आपके घर के सदस्य भी इन्हीें सड़को बेखौफ आॅटो वालों की क्रूरता का शिकार कभी आपके घर का बच्चा भी हो सकता है क्योंकि उसे भी इसी सड़क पर चलना है। हे मेरी राजधानी के अफसरांे थोड़ी तो मानवता दिखा दो। अपने बच्चों की रक्षा के लिये ही सही…
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
mo. 9522170700