देश का मेहनतकश, सच्चा किसान कभी जयचंद नहीं हो सकता.
डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
किसान आंदोलन और लाल किले पर ऐसे खालिस्तानी झंडा फहराना भारत की प्रभुसत्ता को ललकारना है. यह बात तो सच है कि आज इन प्रोटेस्टर्स की काली करतूत देश के सामने आ गई. आज ये आंदोलन पूरी तरह से नंगा हो गया. इनके प्रति इतने दिनों से देश की जो सहानुभूति थी वह सब खत्म हो गई. सारा देश अब इन पर थु-थू कर रहा है. जब हम सब सारे भारतवासी राष्ट्रीय पर्व मनाने में व्यस्त थे तब ये घटिया मानसिकता के लोग, देश की राजधानी में हिंसा और अराजकता फैला रहे थे.)
किसान आंदोलन की आड़ में 26 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जो कुछ भी हुआ है उसे जायज नहीं करार दिया जा सकता है. कृषि कानूनों के विरोध में गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों का ट्रैक्टर मार्च हिंसक हो गया. कई जगहों पर किसानों और पुलिस के बीच झड़प हुई. पिछले करीब दो मही...