जेएनयू में विवेकानन्द : जिनसे आँख मिलाने से कतरा रहे थे मोदी
(आलेख : बादल सरोज)
दिवाली के ठीक पहले 12 नवम्बर को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये नरेन्द्र मोदी विवेकानन्द की मूर्ति के वर्चुअल अनावरण के मौके पर दिए भाषण में जब कह रहे थे कि "हमे कभी सेन्स ऑफ़ ह्यूमर" (हँसोड़पन और विनोदी स्वभाव) नहीं खोना चाहिए" -- तब दरअसल वे खुद अपने भाषण के अवसर और उसमें की गयी विवेकानन्द की व्याख्या की हास्यास्पदता के बारे में ही इशारा कर रहे थे। एक तो यही कम बड़ी त्रासद कॉमेडी नहीं थी कि विवेकानन्द जैसे कमाल की सोच-समझ और उसे उतनी ही निडर बेबाकी से रखने वाले विवेकानन्द की प्रतिमा का अनावरण ठीक उनके विलोम व्यक्तित्व के हाथों हो। मगर बड़े-बड़े देशों में राजनीतिक केमिस्ट्री ऐसे छोटे-छोटे बौनेपन के प्रहसन दिखाती रहती है।
जेएनयू में विवेकानन्द के विश्व दृष्टिकोण के बारे में मोदी बोले कि "वे (विवेकानन्द) दुनिया भर में भारत के भाईचारे की परम्परा और सांस्कृतिक मूल्यों को लेक...