पीसीएस परीक्षा में मुश्किल भरे गुजरे तीन साल फिर सफलता की हैट्रिक; पढ़ें- 5वीं रैंक पाने वाले कुमार गौरव की कहानी

 शाहजहांपुर के बीएसए कुमार गौरव ने पीसीएस परीक्षा में पांचवां स्थान हासिल किया है। वह अंबेडकरनगर जिले के रामनगर ब्लॉक के गांव उमरी भवानी के रहने वाले हैं। पहली नौकरी छोड़ने के बाद उनके तीन साल मुश्किल भरे गुजरे थे। 

पीसीएस परीक्षा की टॉप-10 सूची में पांचवां स्थान हासिल करने वाले शाहजहांपुर के बीएसए कुमार गौरव का जीवन काफी उतार चढ़ाव भरा रहा। दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी करते समय जब उन्हें सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर नौकरी मिली तो उसे पढ़ाई पूरी करने के चक्कर में उन्होंने ठुकरा दिया।

असिस्टेंट कमांडेंट की नौकरी ठुकराने के बाद उनके तीन साल बड़े मुश्किल भरे गुजरे। उन्होंने नौकरी के लिए काफी प्रयास किया लेकिन कहीं सफलता नहीं मिली। मगर उन्होंने हौसला नहीं हारा फिर तीन साल बाद एक के बाद एक नौकरियों से उनकी झोली में भरती चली गई।कुमार गौरव अंबेडकरनगर जिले के रामनगर ब्लॉक के गांव उमरी भवानी के रहने वाले हैं। उनके पिता चंद्र प्रकाश द्विवेदी सेवानिवृत्त ग्राम विकास अधिकारी हैं। मां शकुंतला देवी गृहिणी। कुमार गौरव की प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई। इसके बाद इंदईपुर इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट, फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से स्नातक और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से परास्नातक किया।

2016 में हुआ था सीआरपीएफ में चयन 

दिल्ली यूनिवर्सिटी से हिंदी साहित्य में पीएचडी करते समय 2016 में उनका चयन सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर हो गया था लेकिन उन्होंने इस नौकरी को ठुकरा दिया। इसके बाद तीन साल तक ऐसा वक्त गुजरा कि उन्हें किसी भी परीक्षा में सफलता नहीं मिला। वह काफी मायूस हुए। एक पल को लगने लगा था कि अब नौकरी नहीं मिलेगी मगर उन्होंने हौसला नहीं हारा।

तीन साल बाद उनका नायब तहसीलदार के पद पर चयन हुआ। वह पदभार ग्रहण करते, इसी बीच पीईएस की परीक्षा का परिणाम आ गया। इस पर उन्होंने नायब तहसीलदार का पद छोड़कर शाहजहांपुर में बीएसए के पद पर ज्वाइन कर लिया। शुक्रवार शाम उनके पीसीएस में चयन होने की खबर परिवार के साथ ही शिक्षकों को मिली तो बधाई देने वालों को तांता लग गया।

पत्नी योगिता हैं इंजीनियर 

कुमार गौरव की पत्नी योगिता ओझा इंजीनियर हैं और वह निजी कंपनी में कार्यरत हैं। कुमार गौरव बताते हैं कि धैर्य, साहस और ईमानदारी का कोई विकल्प नहीं होता है। राष्ट्रीय आंदोलन के नेता हो या बड़े आईकॉन है। इन सभी का सर्वकालिक जवाब होता है कि मेहनत और ईमानदारी से लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

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