भारत माता बनी डैमोक्रेसी की मम्मी! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

अब तो मोदी जी के विरोधियों को भी मानना पड़ेगा कि उन्होंने भारत को विश्व गुरु बना दिया है। धर्म-वर्म के मामले में ही नहीं, डैमोक्रेसी के मामले में भी। नहीं-नहीं, बात सिर्फ इंडिया के डैमोक्रेसी की मम्मी होने की ही नहीं है। बेशक, डैमोक्रेसी की मम्मी वाली बात भी गलत नहीं है। अब तो नये भारत की नयी भारतीय अनुसंधान परिषद ने बाकायदा खोजकर भी छाप दिया है कि दुनिया भर में डैमोक्रेसी की मम्मी है, तो भारत है। भला अब किस में हिम्मत है कि भारत को डैमोक्रेसी की मम्मी मानने से इंकार कर दे। देश में तो किसी को करने नहीं देंगे। और बाहर वाला कोई कर भी देगा, तो उसे अव्वल तो पीआइबी ही फेक घोषित कर देगी और इससे भी काम नहीं चला, तो डैमोक्रेसी की मम्मी अपनी सरकार से उसे सभी प्लेटफार्मों पर ब्लाक करा देगी, उसको देखने, शेयर करने वगैरह पर रोक लगाने के साथ — बीबीसी की ‘‘मोदी प्रश्न’’ वाली डॉक्यूमेंटरी की तरह। फिर भी भारत में प्रैस की स्वतंत्रता से लेकर, नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तक पूरी तरह से सुरक्षित बनी रहेगी — ऐसे दुर्लभ गुर साध लेती है, तभी तो मोदी जी की नयी इंडिया, डैमोक्रेसी की मम्मी है।

पर इससे कोई यह नहीं समझे कि नयी इंडिया, डैमोक्रेसी की मम्मी होने का दावा सिर्फ इसीलिए कर रही है, क्योंकि उसके पुरखों ने सबसे पहले डैमोक्रेसी खोजी थी। प्राचीनता का दावा लाख मजबूत हो, पर मोदी जी सिर्फ प्राचीनता के दावे से कभी संतुष्ट नहीं हो सकते। आखिरकार, प्राचीनता अपनी जगह, पर इंडिया को डैमोक्रेसी की मम्मी की मान्यता दिलाने में, उनका भी तो कुछ योगदान दिखाई देना चाहिए। इंडिया को डैमोक्रेसी की मम्मी अब और सिर्फ अब इसीलिए तो मनवाया जा रहा है, क्योंकि मोदी जी ने इंडिया को विश्व गुरु बना दिया है, डैमोक्रेसी में भी। कहने को इंग्लैंड में भी डैमोक्रेसी बहुत पुरानी है, पर पीएम का हाल देख लीजिए। और यह तो तब है जब खून इंडियन है। बीबीसी सार्वजनिक पैसे से चलती है। तब भी उसने मोदी जी पर सवाल उठाने वाली डॉक्यूमेंटरी बना भी दी और दिखा भी दी और पीएम होकर भी सुनाक भाई, अपनी असहमति ही दर्ज कराते रह गए! अचरज नहीं कि मोदी जी की नयी इंडिया को ही दुनिया भर की सरकारों को इसका गुर सिखाना पड़ रहा है कि कैसे स्वतंत्रताओं का ढोल पीटते-पीटते, चाहे बैन ही क्यों न करना पड़े, अपनी हरेक आलोचना से पब्लिक को बचाना जरूरी है। वहां सुनाक भाई सीट बैल्ट न लगाने के लिए जुर्माना लगवा रहे हैं और यहां मोदी जी, पूरे दिन दिल्ली का ट्रैफिक जाम कर के, राजधानी में छ: सौ मीटर के रोड शो में, मोदी-मोदी करा रहे हैं।
लेकिन, सुनाक के मामले से कोई यह नहीं समझे कि मोदी जी के विश्व गुरु वाले डैमोक्रेसी चलाने के गुर सिर्फ भारतीयों या भारतीय मूल वालों के लिए हैं। डैमोक्रेसी चलाने के हमारे गुर की दुनिया भर में भारी डिमांड में हैं। अब अमरीका ही को देख लो। राष्ट्रपति कौन, बाइडेन! पब्लिक का चुना हुआ राष्ट्रपति कौन, बाइडेन! राष्ट्रपति बाइडेन की सरकार, राष्ट्रपति बाइडेन के खिलाफ जांच कर रही है, गोपनीय सरकारी दस्तावजों को संभालने में असावधानी के लिए! वहां राष्ट्रपति की जांच और यहां, सपने में भी मोदी जी नाखुश दिखाई दे जाएं तो, किसी भी संस्था के प्राण सूख जाएं। अब अगर मोदी जी के नये इंडिया के डैमोक्रेसी चलाने के गुरों के बिना, अमरीका-इंग्लेंड में डैमोक्रेसी का गुजारा चलना मुश्किल है, तो बाकी दुनिया का तो पूछना ही क्या?

थैंक यू मोदी जी, भारत माता को डैमोक्रेसी की मम्मी मनवाने के लिए। और हां! खुद भारत माता की संतानों को 2002 के गुजरात के घावों को कुरेदे जाने से बचाने के लिए। जब 2002 के लिए न्याय नहीं दिला सकते, तो बाहर वाले पुराने घावों को कुरेदें ही क्यों? फिर डैमोक्रेसी अगर बीस-तीस साल पुराने अन्यायों पर ही अटकी रहेगी, तो सैकड़ों-हजारों साल पुराने अन्यायों का निपटारा कैसे होगा और कब!

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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