भारत ने हमेशा से ही अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान किया है और मानवाधिकारों का  प्रबल पक्षधर रहा हैं: लोकसभा अध्यक्ष

सदन और स्थायी समिति में व्यापक विचार-विमर्श और जनभागीदारी के बाद तीन नए आपराधिक कानून बनाए गए: लोकसभा अध्यक्ष


राजनयिकों के लिए भारत के कानूनी ढांचे, संसद की कार्यवाही, और भारत के डेमोक्रेटिक सिस्टम की समझ आवश्यक  :  लोक सभा अध्यक्ष

नए कानून समकालीन समाज की चुनौतियों का समाधान करते हैं: लोकसभा अध्यक्ष

पिछले 75 वर्षों में हमारी विधायी प्रक्रिया में लोगों का विश्वास बढ़ा है: लोकसभा अध्यक्ष

लोकसभा अध्यक्ष ने नए आपराधिक कानूनों पर आईसीपीएस द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम  में 83 देशों के 135 प्रतिभागियों को संबोधित किया

New Delhi (IMNB).लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आज कहा कि तीन नए आपराधिक कानून सदन और स्थायी समिति में विस्तृत विचार-विमर्श और जनभागीदारी के बाद पारित किए गए हैं। इन कानूनों के विषय में जानकारी देने के लिए संसद भवन परिसर में संवैधानिक तथा संसदीय अध्ययन संस्थान (आईसीपीएस) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में  83 दूतावासों के 135 राजनयिकों /पदाधिकारियों को सम्बोधित करते हुए श्री बिरला ने कहा कि तीनों नए आपराधिक कानून समकालीन समाज की चुनौतियों और आशाओं के अनुरूप हैं।

श्री बिरला ने कहा कि टेक्नोलॉजी और अपराधों के स्वरुप में आए  बदलावों के अनुरूप इन कानूनों का निर्माण किया गया है।  उन्होंने कहा कि भारत का कानून  अंतिम व्यक्ति को न्याय का अधिकार देता है और आम जनता न्यायाधीश को भगवान के रूप में देखती है। उन्होंने आगे कहा कि न्याय पर जनता का अति विश्वास है, जो 75 वर्षों की यात्रा में और अधिक मज़बूत हुआ है। उन्होंने कहा कि आज के वैश्विक माहौल में एक दूसरे के देशों के कानूनी ढांचे और मूल्यों को समझना बहुत जरूरी है।   इससे राजनयिक दक्षता और राष्ट्रों के बीच आपसी समझ बढ़ती है।  श्री बिरला ने कार्यक्रम में भाग ले रहे भारत में कार्यरत विभिन्न देशों के राजनयिकों को सुझाव दिया  कि वे भारत के लीगल स्ट्रक्चर, संसद की कार्यवाही, और भारत के डेमोक्रेटिक सिस्टम की समझ रखें ।

श्री बिरला ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में हमारी विधायी प्रक्रिया में जनता का विश्वास लगातार बढ़ा है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूती और शासन की बढ़ती जवाबदेही को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि विधायी कार्यों में पारदर्शिता, जवाबदेही और समावेशिता के प्रति प्रतिबद्धता से यह विकास हुआ है। विधिनिर्माताओं ने समाज की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए लगातार काम किया है, अधिकारों की रक्षा करने वाले, न्याय को बढ़ावा देने वाले और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने वाले कानून बनाए हैं। उन्होंने कहा कि यह बढ़ा हुआ विश्वास एक स्वस्थ लोकतंत्र को रेखांकित करता है। उन्होंने इन कानूनों में समाहित लैंगिक समानता को देश की व्यवस्था का आधार और संविधान की मूल अवधारणा बताया और कहा कि यह विशेषता दुनिया को मार्गदर्शन देती है ।

यह विचार व्यक्त करते हुए  कि भारतीय कानून सदैव देश की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को प्रतिबिंबित करते  हैं, उन्होंने  कहा कि भारत ने हमेशा से ही अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान किया है और मानवाधिकारों का  प्रबल पक्षधर रहा  हैं। उन्होंने कहा  कि भारत की यह प्रतिबद्धता सुनिश्चित करती है कि कानून प्रत्येक नागरिक की गरिमा, स्वतंत्रता और समानता को बनाए रखने के लिए बनाए जाएं ।  लैंगिक समानता,  पर्यावरण संरक्षण से लेकर सामाजिक कल्याण और भेदभाव विरोधी प्रगतिशील नीतियों तक, भारतीय कानून सशक्तिकरण के साधन के रूप में काम करते हैं। भारत के मज़बूत आर्बिट्रेशन सिस्टम का उल्लेख करते हुए श्री बिरला ने कहा कि आर्बिट्रेशन भारत की विरासत है जिसे प्राचीन काल से ही लोग अपनाते और मानते आए हैं।

इस अवसर पर भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री यू.यू. ललित ने भी प्रतिभागियों को संबोधित किया।

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