Saturday, September 7

बात बेबाक – कुर्सीनामा भाग – 13: चंद्र शेखर शर्मा (पत्रकार)

चुनावी समर 2023 मे कांग्रेस को सत्ता से बाहर फेंकने को आतुर भाजपा की दूसरी लिस्ट जल्द ही आने की संभावना है । मध्यप्रदेश फार्मूला अपनाया गया तो केंद्रीय मंत्री सहित सांसदों को टिकट मिलने की भी संभावना है । कबीरधाम जिले की भाजपाई राजनीति डॉ. रमन सिंह का गृह जिला होने के वजह उनके इर्दगिर्द ही घूमती नज़र आती है । अकबर के सामने डॉ. रमन सिंह को अपने वोटो की ताकत से विधायक के रूप में तलाश रहे जिले के नेताओं के साथ साथ जनता फिर दो राह पर खड़ी नजर आ रही है कि क्या इस बार फिर किसी मुखौटे को ही डॉ.साहब के नाम पर मजबूरी में अपना रहनुमा बनाना पड़ेगा या जातपात की ओछी राजनीति से बाहर निकल भाजपा योग्य उम्मीदवार को टिकट देगी आखिर मुखौटे व जाति की राजनीति से कब उबरेगी कबीरधाम की राजनीति । हांलाकि भाजपा संगठन के नेतागण डॉक्टर साहब के एक नाम पर प्रस्ताव दे खानापूर्ति कर खुद की टिकट की जुगाड़ में उठापटक करते फिर रहे है कोई जातिगत आंकड़ों का जाल फेक रहा तो कोई अपने संघर्षो की दुहाई दे रहा किसी को पैसे के दम पर टिकट मिलने की उम्मीद है ।
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से जिले की भाजपाई राजनीति में डॉ. साहब का व्यक्तित्व व उनका व्यवहार हावी रहा है। यहॉं की जनता से उनका लगाव व स्नेह जनता में दिखता है। विगत चुनावों में चाहे वे विधान सभा या लोक सभा के रहे हो या स्थानीय निकायों या जिला जनपदों के रहे हो डॉ. साहब का प्रभाव जिले की राजनीति में स्पष्ट झलकता रहा है। प्रत्याशी अपने दम पर कम डॉ.साहब के नाम पर ज्यादा वोट की राजनीति करते रहे हैं। इन सबके बावजूद विगत चुनाव में अकबर से 60 हजारी हार का तमगा भी भाजपा को मिला है । हांलाकि 60 हजारी हार को लेकर डॉ रमण चुटीले अंदाज में कहते है 15 साल से मीठा खा खा के स्वाद बदलने की चाह में नमकीन के चक्कर मे तीखी मिर्ची खा चुकी जनता इस बार बदलाव के मूड में है ।
बैनर पोस्टर व मुखौटे छाप नेताओ व प्रत्याशियों की इस कमजोरी को जनता दबी जुबान से ही नहीं अपितु खुले तौर पर स्वीकारती है। जनता जनार्दन का मानना है कि जब डॉ. साहब के नाम पर किसी मुखौटे को ही अपना रहनुमा बनाना है तो फिर जातिवाद की राजनीति के बीज जिले में क्यों बोये जा रहे हैं।
जब जब चुनावी दुदुंभी बजती तब तक भाजपाई अपनें विकास कार्यो व सुशासन की दुहाई और कांग्रेस के घपले घोटालों को कोसते नहीं थकते और इन्हीं के दम पर वोट मांगते फिरते है फिर चाहे कांग्रेसी हो या अन्य हुए छुटभैये दल भ्रष्टाचार व जातिवाद के कितने ही आरोप लगाते फिरते रहे, परन्तु जब जनता जर्नादन की चौखट पर विकास व सुशासन के गान पर ही वोट मांगने जाना है तो फिर जाति के आधार पर टिकट की राजनीति समझ से परे है।
विकास के बुलंद नारो के बीच कार्यकर्ता तो पार्टी का झण्डा उठाये फिरते है । परन्तु टिकट वितरण के समय संगठन मे चलने वाली गतिविधियों में जातिवाद हावी दिखता है चाहे जातिवाद की राजनीति मे साहू समाज, कुर्मी समाज ,पटेल समाज हो या आदिवासी समाज। जातिगत संख्या के आधार पर टिकट मांगना फैशन हो गया है, जिसे दबाव की राजनीति के तौर पर भी देखा जाता है।
लेकिन मूल प्रश्न यह है कि जब चुनाव डॉ.साहब की छबि और कांग्रेस के कुशासन व भ्रष्टाचार को लेकर ही लड़ा जायेगा और प्रत्याशी उनके मुखौटे की आड़ में ही जितेगा तो फिर प्रत्याशी की जात क्या और संख्या क्या …तो क्या इस चुनाव मे भाजपा अपने प्रत्याशी को उसकी व्यक्तिगत छबि व्यक्तित्व व जनता से जुडाव पर या फिर बैनर फ्लेक्स छाप नेता को या मध्यप्रदेश के फार्मूले पर सांसद को टिकट देकर एक नयी मिशाल देगी। यह तो समय के गर्भ मे है।
और अंत में :;
हर अंधे धृतराष्टृ को, सिंहासन की चाह है।
होता हो फिर क्यों नहीं, चाहे देश तबाह हो॥
असमंजस में आज है, फिर से अपना प्रदेश।
चुन लें ख़ूनी सन्त या, फिर डाकू दरवेश॥
#जय_हो 28/09/23 कवर्धा (छत्तीसगढ़)

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