Thursday, September 21

लेख-आलेख

वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी… मोदीजी दें ध्यान, धंधे में ‘रेल्वे’ बेईमान
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वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी… मोदीजी दें ध्यान, धंधे में ‘रेल्वे’ बेईमान

एक सज्जन ने एक सवाल किया कि जब बाईक पर तीन सवारी चलते हैं तो सरकार चालान बना देती है। जुर्माना भरना पड़ता है। दो की ही व्यवस्था है तीन नहीं चल सकते। ऐसे में जब रेल्वे एक जनरल डिब्बे में तय संख्या से अधिक यात्रियों को भर लेती है तो उसका जुर्माना क्यांे नहीं होना चाहिये ? 72 के या 80 के जनरल डब्बे मे सौ से अधिक यात्री भरे होते हैं। लेकिन इतिहास में कभी उसे कानून के उल्लंघन की तरह नहीं देखा गया। ये एक सामान्य बात है। जबकि जो नियम एक दोपहिया पर और बसों पर लागू होता है वही रेल्वे पर भी क्यों नहीं होना चाहिये। बस में भी संख्या निर्धारित है। अधिक सवारी भरने पर जुर्माना लगता है। रेल्वे को छूट क्यों ? क्या सिर्फ इसलिये कि वो सरकारी है। रेल्वे को ईमानदार व्यवसाय करे लालचभरी दुकानदारी नहीं ईधर रेल्वे का रवैया एक प्रोफेशनल की तरह हो गया है। इसे काॅमर्शियल तो माना ही जाता है लेकिन काॅमर्शियल ...
विशेष सत्र : मोदी जी की वाहवाही के लिए! (आलेख : राजेंद्र शर्मा)
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विशेष सत्र : मोदी जी की वाहवाही के लिए! (आलेख : राजेंद्र शर्मा)

संसद के रहस्यमय विशेष सत्र का रहस्य, इस सत्र की पहली बैठक से ही काफी हद तक खुल गया लगता है। ऐसा नहीं है कि तमाम संसदीय नियम-कायदों तथा जनतंत्र के तकाजों के विपरीत, मोदी मंडली ने अब भी सांसदों से भी इसकी जानकारी छुपाने की कोशिश खत्म कर दी हो कि पांच दिन के इस विशेष सत्र में, आखिर विशेष क्या होगा? हैरानी की बात नहीं है कि विशेष सत्र से ठीक पहले, संसद में प्रतिनिधित्व-प्राप्त सभी पार्टियों की बैठक के बाद भी, राज्य सभा में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह, बहुत मुखर होकर इसकी शिकायत कर रहे थे कि इस बैठक तक में, विभिन्न पार्टियों के नेताओं को यह नहीं बताया गया कि सत्र में ठीक-ठीक, क्या-क्या होने जा रहा है। दोनों सदनों के संदर्भ में जिन कतिपय विधेयकों के लिए जाने की जानकारी आयी है, उनके अलावा भी कुछ है, जो अभी नहीं बताया जा रहा है, इस धारणा को मोदी मंडली अब भी सायास बल दे रही है। और तो और, सत्र ...
महिला खेतिहर मज़दूरों की उपेक्षित दुर्दशा (आलेख : विक्रम सिंह)
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महिला खेतिहर मज़दूरों की उपेक्षित दुर्दशा (आलेख : विक्रम सिंह)

कई लोग ऐसा मानते है कि कृषि के अविष्कार से महिलाएं करीब से जुड़ी रही है। कई सामाजिक वैज्ञानिक तो यहां तक मानते है कि महिलओं ने ही कृषि की खोज की होगी। लेकिन बाद के दौर में कृषि को केवल पुरुषों के पेशे के तौर पर पेश किया गया। हालांकि खेतों में महिलाएं पुरुषों के बराबर काम करती हैं। विश्व में 40 करोड़ से अधिक महिलाएं कृषि के काम में लगी हुई हैं, लेकिन 90 से अधिक देशों में उनके पास भूमि के स्वामित्व में बराबरी का अधिकार नहीं हैं। हमारे देश में भी ऐसे ही हालात हैं। महिलाओं को मेहनत करने के बावजूद न तो पहचान मिलती है और न ही अधिकार। मैरीलैंड विश्वविद्यालय और नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के द्वारा 2018 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत में कृषि में कुल श्रम शक्ति का 42 प्रतिशत महिलाएं हैं, लेकिन वह केवल दो प्रतिशत से भी कम कृषि भूमि की मालिक हैं। 'सन ऑफ द सॉइल' शीर्षक से वर्ष 2...
स्पोर्ट्समैन स्पिरिट कहां? (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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स्पोर्ट्समैन स्पिरिट कहां? (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

देखी‚ देखी‚ इन इंडिया वालों की चीटिंग देखी! कहते हैं टीवी एंकरों का बहिष्कार करेंगे। बाकायदा चौदह नामों की तो सूची भी जारी कर दी है। उस पर यह धमकी और कि आगे नाम बढ़ा भी सकते हैं। बताइए‚ बेचारे एंकर लोगों ने कितनी मेहनत से इनके लिए सवाल तैयार करने‚ फील्डिंग सेट करने‚ जरूरत पड़े तो खुद भी मैदान में कूद पड़ने की ट्रेनिंग पूरी की है‚ और अब उस ट्रेनिंग को आजमाने का टैम आया है‚ चुनाव के सीजन की बुकिंग भी हो गई है‚ तो ये पट्ठे अखाड़े में उतरने से ही इनकार कर रहे हैं। क्या यही है इनकी स्पोर्ट्समैन स्पिरिट? मोदी जी की पार्टी वालों ने बिल्कुल सही कहा –– इंडिया वालों‚ तुम भारत के एंकरों का बहिष्कार कर कैसे सकते होॽ उनके शो में जाने से इनकार कैसे कर सकते होॽ एंकर के शो में जाने से इनकार –– यह तो जनतंत्र विरोधी है, बल्कि यह तो जनतंत्र की हत्या है। दूसरी इमरजेंसी है‚ इमरजेंसी। मीडिया को कुचलने की कोशि...
भारत में मातृभाषाओं का संकट : चुनौतियां और समाधान – प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी
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भारत में मातृभाषाओं का संकट : चुनौतियां और समाधान – प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी

  भाषा का संबंध इतिहास, संस्कृति और परंपराओं से है। भारतीय भाषाओं में अंतर-संवाद की परंपरा बहुत पुरानी है और ऐसा सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है। यह उस दौर में भी हो रहा था, जब वर्तमान समय में प्रचलित भाषाएं अपने बेहद मूल रूप में थीं। श्रीमद्भगवतगीता में समाहित श्रीकृष्ण का संदेश दुनिया के कोने-कोने में केवल अनेक भाषाओं में हुए उसके अनुवाद की बदौलत ही पहुंचा। उन दिनों अंतर-संवाद की भाषा संस्कृत थी, तो अब यह जिम्मेदारी हिंदी की है। जब हमारे पास एक भाषा होती है, तब हमें अंदाजा नहीं होता, कि उसकी ताकत क्या होती है। लेकिन जब भाषा लुप्त हो जाती है और सदियों के बाद किसी के हाथ वो चीजें चढ़ जाती हैं, तो सबकी चिंता होती है कि आखिर इसमें है क्या? ये लिपि कौन सी है, भाषा कौन सी है, सामग्री क्या है, विषय क्या है? आज कहीं पत्थरों पर कुछ लिखा हुआ मिलता है, तो सालों तक पुरातत्व विभाग उस खोज में ...
चुनावबाज राजा ने बनाया जी-20 को आत्म-प्रचार का तमाशा (आलेख : बादल सरोज)
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चुनावबाज राजा ने बनाया जी-20 को आत्म-प्रचार का तमाशा (आलेख : बादल सरोज)

मुहावरे जिस तरह बनते हैं, उस तर्ज पर यदि आने वाले दिनों में "मर्ज का हद से गुजरना है मोदी का जी-20 हो जाना" जैसा कोई मुहावरा आम हो जाए तो ताज्जुब नहीं होगा। अंतर्राष्ट्रीय नजरिये से एक महत्वपूर्ण आयोजन - जी-20 - के 18वें सम्मेलन को जिस फूहड़ तरीके से "मोदी नाम पै शुरू, मोदी नाम पै ख़तम" के मनोरंजन मेले - कार्निवाल - में बदला गया, वह हर लिहाज से असामान्य और असाधारण है। सिर्फ दिल्ली में ही नहीं, पूरे देश में 'जित देखो तित मोदी' के पोस्टर्स थे, हर होर्डिंग पर वे ही वे थे, हर अखबार में पूरे-पूरे पन्नों के विज्ञापनों में भी वे ही थे, चैनलों की खबरों में मोदी, छोटे-बड़े-मंझोले भाजपाईयों की बाईट्स में मोदी, सारी हाईलाइट्स में मोदी ही मोदी थे। मौजूदा राज, जो इसके प्रधानमंत्री मोदी के प्रचार और खुद उनके द्वारा किये जाने वाले आत्मप्रचार के लिए इतिहास में रिकॉर्ड तोड़क के रूप में जाना जाएगा, उसके हिसाब स...
प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन पर विशेष लेख… अतुल्‍य नेतृत्‍व में विकास के पथ पर भारत
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन पर विशेष लेख… अतुल्‍य नेतृत्‍व में विकास के पथ पर भारत

- *प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी, पूर्व महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली* किसी भी राष्‍ट्र की सुख-समृद्धि का पता इस बात से चलता है कि वहां की प्रजा कितनी सुखी है और आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक रूप से कितनी विकसित हुई है। प्रजा का यह विकास उसके नेतृत्‍व की कुशलता, सामर्थ्‍य और दूरदर्शिता से पता चलता है। आज जब हम भारत की स्‍वतंत्रता के अमृतकाल का उत्‍सव चुके हैं, तो हम अपने सौभाग्‍य पर गर्व अनुभव कर सकते हैं कि जिस सक्षम, शक्तिवान और दूरदृष्‍टा नेतृत्‍व की आवश्‍यकता हम दशकों से अनुभव कर रहे थे, आज वैसा ही नेतृत्‍व हमारे पास है। एक समर्पित, सेवाभावी और सहृदय नेतृत्‍व, जिसकी सभी प्राथमिकताओं में जनता का कल्‍याण, उसके हित और उसकी सुरक्षा सर्वोपरि है। जी-20 के सफलतम आयोजन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को विश्व नेता के रूप में स्थापित कर दिया है। भारत और भारतीय जनता के लिए इस...
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…संभावना बृजमोहन,पंकज,कुलदीप, विकास जनता से दूर श्रीचंद, मूणत को नहीं है आस
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वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…संभावना बृजमोहन,पंकज,कुलदीप, विकास जनता से दूर श्रीचंद, मूणत को नहीं है आस

बहुत जल्द ये धंुध छंटेगी जीतने वालों को टिकट बंटेगी राजनीति का माहौल बदल गया है। कह सकते हैं कि ये बदलाव अवाम के लिये अच्छा और नेता के लिये कठिन साबित हो रहा है। पहले की तरह जनता लकीर की फकीर नहीं रही कि जिसे देते थे उसे ही देंगे वोट। अब तो देखती परखती है। जो मिलता है भसका लेती है लेकिन वोट गुण-दोष के आधार पर देती है। प्रत्याशी को परखने लगी है। प्रत्याशी से उसे क्या लाभ हो सकता है और कौन ऐसा है जो उनके सुख-दुख में सहज शामिल होता है, ये भी देखता है वोटर। सहज उपलब्ध और हमेशा तैयार राजनीति के गुरू तरूण चटर्जी जनता के सुख-दुख में शामिल होने वाले नेताओं मे एक आदर्श नाम तरूण चटर्जी का लिया जा सकता है। स्व चटर्जी को उनके एरिया के वोटर अपना ही समझते थे। वे बिना हील-हवाले के किसी के काम में भिड़ जाते थे। जहां जिसको बोलना है बोलते थे और काम के प्रति ईमानदार प्रयास करते थे। तरूण हर दूसरे ...
सोने की थाली और भारतीय संस्कृति (आलेख : बादल सरोज)
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सोने की थाली और भारतीय संस्कृति (आलेख : बादल सरोज)

सरकारी सूत्रों द्वारा दावा किया गया कि : "भारतीय संस्कृति के अनुरूप जीय-20 के मेहमानों को राष्ट्रपति भवन में सोने और चांदी के बर्तनों में रात्रिभोज कराया गया।" 🔵 कौतुक हुआ कि जिस देश का प्रधानमंत्री दावा करता है कि 80 करोड़ भारतीय उसके द्वारा दिए जाने वाले 5 किलो अनाज पर ज़िंदा हैं, उस देश में सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन करना, कराना भारतीय संस्कृति में कब से शामिल हुआ। घूमते-विचरते इस बारे में सोचा, मगर जीवनशैली, अतिथि सत्कार परंपराओं, इतिहास तो दूर की बात ; मिथकों वाले मिथिहास, महाकाव्यों - महाआख्यानों में भी ऐसी कथाएं नहीं मिली। जो मिसाल बने, ऐसी तो एक भी नही मिली। 🔺 वेदों की स्मृतियों में झांका : उनके ज्यादातर, बल्कि सभी प्रमुख देवता काफी पहले ही रिटायर हो चुके हैं। सूर्य, वायु, मरुत, वरुण, अग्नि, सोम को सामान्य खाने-वाने से ही खास लगाव नहीं था। पूषण चरवाहों के देवता थे, उनके लिए...
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी… कांग्रेसियों के हांेगे ऐश, चुनाव जितवाएंगे भूपेश जीत की भाजपा की,ज़रा कम है आशा, भाजपा के सैनिकों में भरी है निराशा
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वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी… कांग्रेसियों के हांेगे ऐश, चुनाव जितवाएंगे भूपेश जीत की भाजपा की,ज़रा कम है आशा, भाजपा के सैनिकों में भरी है निराशा

14 को दूसरी सूची भाजपा की घोषित होने की संभावना है। पहली सूची में ऐसी सीटों पर जोर दिया गया था जिन पर भाजपा दो बार नहीं जीत पाई थी। तर्क ये है कि इन सीटों पर अधिक समय और ताकत झोंकने से सफलता की संभावना बढ़ जाएगी। बात में दम है। ऐसे बहुत से प्रयास करने होंगे तभी राष्ट्रभक्त भाजपा को राज्य में फिर से पांव जमाने का मौका मिलेगा। वैसे जो लक्षण अभी भाजपा नेताओं के दिख रहे हैं और जो क्षोभ भाजपा के असली और पुराने कार्यकर्ताओं में दिख रहा है उससे लगता नहीं कि भाजपा कुर्सी से इतनी लंबी दूरी आसानी से तय कर पाएगी। ईमानदार] और जो चाटुकार नहीं हैं ऐसे कार्यकर्ताओं को उपेक्षा और दलालनुमा चाहे पुराने हों या नये लोगों को प्राथमिकता के चलते कुर्सी दूर दिख रही है। उपर से भूपेश बघेल ने जिस चतुराई से भाजपा के मुद्दे हथिया लिये हैं और जिस होशियारी से अपने काम का प्रचार किया है उससे वे ‘हाथ’ को कुर्सी जर...