स्मृति लेख: प्रभात झा: लोकसंग्रह और संघर्ष से बनी शख्सियत -प्रो.संजय द्विवेदी
यह नवें दशक के बेहद चमकीले दिन थे। उदारीकरण और भूमंडलीकरण जिंदगी में प्रवेश कर रहे थे। दुनिया और राजनीति तेजी से बदल रहे थी। उन्हीं दिनों मैं छात्र आंदोलनों से होते हुए दुनिया बदलने की तलब से भोपाल में पत्रकारिता की पढ़ाई करने आया था। एक दिन श्री प्रभात झा जी अचानक सामने थे, बताया गया कि वे पत्रकार रहे हैं और भाजपा का मीडिया देखते हैं। इस तरह एक शानदार इंसान, दोस्तबाज,तेज हंसी हंसने वाले, बेहद खुले दिलवाले झा साहब हमारी जिंदगी में आ गए। मेरे जैसे नये-नवेले पत्रकार के लिए यह बड़ी बात थी कि जब उन्होंने कहा कि" तुम स्वदेश में हो, मैं भी स्वदेश में रह चुका हूं।" सच एक पत्रकार और संवाददाता के रूप में ग्वालियर में उन्होंने जो पारी खेली वह आज भी लोगों के जेहन में हैं। एक संवाददाता कैसे जनप्रिय हो सकता है, वे इसके उदाहरण हैं। रचना,सृजन, संघर्ष और लोकसंग्रह से उन्होंने जो महापरिवार बनाया ...