सुदामा और उसके चावल (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
ये तो विपक्ष वालों की अच्छी बात नहीं है। मोदी जी ने पहले ही चेता दिया था कि कृष्ण और सुदामा का रिश्ता पवित्र है। उनका लेन-देन पार्थिव लेन-देन नहीं, दैवीय प्रेमोपहारों का आदान-प्रदान है। कम-से-कम ऐसे दैवीय दोस्ताने पर किसी को उंगली नहीं उठानी चाहिए। लेकिन, विपक्ष वाले चिकने घड़े ठहरे। अपनी राजनीति के लिए कृष्ण और सुदामा के रिश्ते तक को कलंकित कर रहे हैं। चुनावी बांड जैसे प्रेमोपहार में घूसखोरी से लेकर धंधेबाजी तक, न जाने क्या-क्या इंसानी बुराइयां खोज लाए हैं।
इसी के अंदेशे से तो मोदी जी की सरकार ने पहले ही कहा था कि इस लेन-देन को पर्दे में ही रहने दो। पर्दा जो उठ गया, तो भारतीय संस्कृति और संस्कारों का भट्ठा बैठ जाएगा। खैर! विपक्ष वालों का पर्दा हटवाने पर अड़ना तो स्वाभाविक था, पर सुप्रीम कोर्ट भी उनकी बातों में आ गया। सरकार ने आखिर-आखिर तक समझाया कि यह तो लेने वाले और देने वाले के बीच क...