Tuesday, March 19

लेख-आलेख

सुदामा और उसके चावल (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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सुदामा और उसके चावल (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

ये तो विपक्ष वालों की अच्छी बात नहीं है। मोदी जी ने पहले ही चेता दिया था कि कृष्ण और सुदामा का रिश्ता पवित्र है। उनका लेन-देन पार्थिव लेन-देन नहीं, दैवीय प्रेमोपहारों का आदान-प्रदान है। कम-से-कम ऐसे दैवीय दोस्ताने पर किसी को उंगली नहीं उठानी चाहिए। लेकिन, विपक्ष वाले चिकने घड़े ठहरे। अपनी राजनीति के लिए कृष्ण और सुदामा के रिश्ते तक को कलंकित कर रहे हैं। चुनावी बांड जैसे प्रेमोपहार में घूसखोरी से लेकर धंधेबाजी तक, न जाने क्या-क्या इंसानी बुराइयां खोज लाए हैं। इसी के अंदेशे से तो मोदी जी की सरकार ने पहले ही कहा था कि इस लेन-देन को पर्दे में ही रहने दो। पर्दा जो उठ गया, तो भारतीय संस्कृति और संस्कारों का भट्ठा बैठ जाएगा। खैर! विपक्ष वालों का पर्दा हटवाने पर अड़ना तो स्वाभाविक था, पर सुप्रीम कोर्ट भी उनकी बातों में आ गया। सरकार ने आखिर-आखिर तक समझाया कि यह तो लेने वाले और देने वाले के बीच क...
वरिष्ठ पत्रकार चंद्र शेखर शर्मा की बात बेबाक
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वरिष्ठ पत्रकार चंद्र शेखर शर्मा की बात बेबाक

*नर्म गद्देदार सोफे पर बैठा होगा कहीं ,* *सांप अब पिटारों में कहाँ मिलता है ।* *चलते चलते -* *गोरहीन टुरी - महराज आजकल दबंग अउ इनामदार वर्दी वाले साहब मन बोल के अपराधी मन ल छोड़ देथे कुछु सेटिंग वेटिंग चलत हवय का ।* *लपरहा टुरा - तै नई समझस पगली मलाईदार कुर्सी पाना हे त खादी अउ खाकी के मितानी जरूरी हवय ।*
वरिष्ठ पत्रकार चंद्रशेखर शर्मा की बात बेबाक
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वरिष्ठ पत्रकार चंद्रशेखर शर्मा की बात बेबाक

बचपन मे एक कहावत सुनी थी " झूठ बोले कौवा काटे " हमारे बाप दादा इस कहावत के जरिये हमे डरा धमकाकर सच बोलने की नसीहतें देते नही थकते थे । झूठ बोलते पकड़े जाने पर जमकर ठुकाई भी होती थी । जैसे जैसे कौवो की प्रजाति विलुप्त होती जा रही वैसे वैसे झूठ बोलने से कौवे के काटने का डर खत्म होते जा रहा आम आदमी तो आम आदमी नेता तक झूठ बोलने के आदी और किये वादों को भूलने लगा है । छत्तीसगढ़ की राजनीति भी इन दिनों मतिभ्रम , वादाखिलाफी , भूलने भुलाने की बातों के इर्दगिर्द घूम रही है । कांग्रेसी मोदी की गारंटी के नाम पर वादाखिलाफी व किसानों से धोखा को ले भाजपाइयों को घेरने भिड़े है तो भाजपाई कका राज के गोबर घोटाले से लेकर शराब , कोयला घोटाले के नाम पर लट्ठ ले पीले पड़े है । लकड़ी की कुर्सी जिस पर बैठ कर फीलगुड महसूस होता है राजनीति का केंद्र बिंदु है जिस पर बैठने की चाहत आदमी को नेता और नेता को लबरा बना देती है । ...
पेपर लीक की गारंटी (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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पेपर लीक की गारंटी (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

भई, अपने योगी जी के साथ ये तो बड़ी नाइंसाफी है। बताइए, कहां तो भगवाइयों की गारंटियों का इतना शोर है। मोदी जी तो आए दिन गारंटियों पर गारंटियां देते जा रहे हैं। कभी मुफ्त राशन की गारंटी, कभी नल के पानी की गारंटी, कभी सिर पर पक्की छत की गारंटी, तो कभी बैंक खाते की गारंटी, कभी सोलर बिजली की गारंटी, तो कभी विदेश में कॉलर खड़ा करवाने वगैरह की गारंटी। कांग्रेस-मुक्त, भ्रष्टाचार-मुक्त, धर्मनिरपेक्षता-मुक्त, विकसित आदि, आदि भारत की गारंटियां ऊपर से। सब के ऊपर से गारंटी पूरी होने की भी गारंटी। यानी गारंटियां ही गारंटियां, चुन तो लें। फिर भी बेचारे योगी जी ने जरा सी पेपर लीक की गारंटी क्या कर दी, उसी पर हल्ला मच गया कि क्या करते हो, कैसे करते हो? पहले पुलिस भर्ती का पेपर लीक हुआ, तो पब्लिक ने सोचा डिजिटल के जमाने में, पेपर लीक तो होता ही रहता है। हो गया होगा अपने आप, पेपर लीक। फिर आरओ-एआरओ का पेपर ली...
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी ये संसद मे 100% , वे संसद में जीरो,मनोज मण्डावी, भागीरथ नेता, सनी, शत्रुहन हीरो
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वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी ये संसद मे 100% , वे संसद में जीरो,मनोज मण्डावी, भागीरथ नेता, सनी, शत्रुहन हीरो

  कुल 274 बैठकें हुईं 17 वीं यानि पिछली लोकसभा में संसद सत्र के दौरान। इन पांच सालों में शानदार और शाबाशी के लायक परफाॅर्मेन्स रहा छत्तीसगढ़ के कांकेर लोकसभा क्षेत्र के भाजपाई सांसद मोहन मण्डावी और अजमेर से भाजपाई सांसद भागीरथ चैधरी। संयोग से दोनों को सीटें भी आसपास मिलीं थी और संयोग ये कि दोनों का रिजल्ट हण्ड्रेड परसेन्ट रहा। यानि दोनों ने ही 274 में से 274 बैठकें अटैण्ड कीं। इसके ठीक विपरीत जीरो परसेन्ट परफाॅर्मेन्स वाले सांसदों का नाम लिया जाए तो बेहतरीन इंसान और सर्वाधिक लोकप्रिय अभिनेता धर्मेन्द्र के पुत्र डैशिंग हीरो सनी दओल तथा अपनी अकड़ के लिये जाने जाने वाले और खामोश बोलकर सबको खामोश करा देने वाले धाकड़ अभिनेता शत्रुहन सिन्हा का। इन दोनो ने ही एक भी बैठक अटैण्ड नहीं की। सब को पता है कि सिन्हा ने काफी कोशिश की सांसद बनने की और भाजपा और समाजवादी पार्टी यत्र-तत्र काफी हाथ-पैर ...
 गांधी मैदान ने नानी याद दिलाई : परिवार की ढूंढ-तलाश में निकले मोदी (आलेख : बादल सरोज)
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 गांधी मैदान ने नानी याद दिलाई : परिवार की ढूंढ-तलाश में निकले मोदी (आलेख : बादल सरोज)

जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें करीब आ रही हैं, मोदी और उनकी पार्टी, जिसका नाम अभी तक भाजपा है, की बेचैनी और घबराह्ट बढ़ती ही जा रही हैं। स्वाभाविक भी है, एक झूठ को बार-बार बोलकर, हजार बार बोलकर दूसरों के लिए उसके सच होने का भरम तो पैदा किया जा सकता है, लेकिन खुद को तो मालूम है जन्नत की हकीक़त सारी ... इसलिए खुद को बहलाने का मुगालता कैसे पाला जा सकता है। ऐसे में जो होता है, वही हो रहा है, ऊपर से नीचे तक अवा का अवा तप-तप कर बेहाल हुआ जा रहा है। उधर इलेक्टोरल बांड्स को लेकर शुरू हुआ सुप्रीम कोर्ट और स्टेट बैंक वाला पंगा, लगता है पूरी तरह नंगा करने की ही ठाने बैठा है। जितनी देर हो रही है, उतनी ही नयी ताज़ी कब्रें खुल रही हैं और हरेक में से कोई-न-कोई जीता जागता घोटाला, भ्रष्टाचार भस्मासुर बन निकल कर खड़ा हो रहा है। कुल मिलाकर ये कि रायता ऐसा फ़ैल रहा है कि समेटे नहीं सिमट रहा। ऐसे में जितनी जोर से 'अबकी...
क्या विकास उपाध्याय डटे रहेंगे बृजमोहन के सामने,,, 0जवाहर नागदेव
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क्या विकास उपाध्याय डटे रहेंगे बृजमोहन के सामने,,, 0जवाहर नागदेव

अनजान रहे मर्ज से, न की कोई दवा, न समझे हालात, खराब कांग्रेसी हवा, एक से ‘पाव’ हो गयी कांग्रेस, और भाजपा एक से ‘सवा’ वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी... खरी... ऐसा ही दलबदल, ऐसी ही भागदौड़, कांग्रेस में ऐसी ही चिल्लमचिल्ली 2004 में उस वक्त भी दिखी थी जब अटलबिहारी बाजपेई के नेतृत्व मे प्रमोद महाजन और उनकी टीम ने इण्डिया शाईनिंग का नारा दिया था। वैसे तब की तुलना में इस वक्त चिल्लपों ज्यादा मची है। उस वक्त मची हाहाकार को संभाला था सोनिया गांधी ने। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और डूबती कांग्रेस में जान आ गयी। इसके बाद उन्होनें न सिर्फ कांग्रेस को संभाल लिया, ईधर-उधर कूदफांद पर रोक लग गयी बल्कि कांग्रेस ने सरकार भी बना ली। कांग्रेस का विकास और बृजमोहन का विकास कांग्रे्रस के एक समय के काफी लोकप्रिय विधायक विकास उपाध्याय को पार्टी ने इस बार 2023 ...
पब्लिक के डबल मज़े, डेमोक्रेसी भी, तानाशाही भी! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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पब्लिक के डबल मज़े, डेमोक्रेसी भी, तानाशाही भी! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

अब तो मोदी जी के विरोधियों को भी झख मारकर मानना ही पड़ेगा; मोदी जी अपने भारत को वाकई डेमोक्रेसी की मम्मी बना दिए हैं। अब तो वी-डेम इंस्टीट्यूट वालों ने भी इसकी तस्दीक कर दी है। जी हां, स्वीडन के वी-डेम इंस्टीट्यूट वालों ने। उसी वी-डेम इंस्टीट्यूट वालों ने, जो दुनिया भर में डैमोक्रेसी की ही नाप-जोख करते फिरते हैं और सूत-सूत नाप कर बताते रहते हैं कि किस की डैमोक्रेसी की गाड़ी, किस से पीछे रह गयी, किस से आगे निकली और कहां तक पहुंच गयी। और यह भी कि किसकी डैमोक्रेसी में कितनी डैमोक्रेसी बची और कितनी तानाशाही घुस आयी, वगैरह। याद रहे कि यह नाप-जोख भी गुजरे वक्त का नहीं है, आज का है, एकदम रीयल टाइम। यानी मोदी जी ने अपने भारत को पुराने जमाने के लिए तो डेमोक्रेसी की मम्मी बनवाया था और सारी दुनिया से मनवाया था, सो तो सब जानते हैं। पर दर्ज करने वाली बात यह है कि एकदम आज भी, रीयल टाइम में सारी दुनिय...
एसबीआई 2014 से ही है खालाजी का घर (टिप्पणी : बादल सरोज)
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एसबीआई 2014 से ही है खालाजी का घर (टिप्पणी : बादल सरोज)

बात 2014 की है। अभी सेहरा बंधने के निशान मिटे भी नहीं थे - संसद की सीढियां उन पर बहाए गए आंसुओं से अभी भी गीली थी ... और जिस तरह नयी नयी साईकिल सीखने वाला चौराहे की दूकान से माचिस लेने भी साईकिल से जाता है, उसी तरह नए नवेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'विदेश यात्राओं की लूट है, लूट सके तो लूट' की धुन ठाने ताबड़तोड़ विश्व-भ्रमण में लगे थे। अकेले जाने में शायद डर लगता रहा होगा, सो जहां भी जाते थे, सखा गौतम अडानी को लेकर जाते थे/आज भी जाते है। 🔵 ऐसी ही एक यात्रा में वे नवम्बर 14 के तीसरे सप्ताह में ऑस्ट्रेलिया पहुंचे। यहाँ कोई कंगारू-वंगारू उन्हें भेंट नहीं होना था -- न सिडनी-विडनी, मेलबोर्न-वेलबोर्न, पर्थ-वर्थ ही घूमना था। सखा अडानी "मैया, मैं तो चंद-खिलौना लैहौं। जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं॥" की तरह मचल रहे थे -- यहाँ की कोयला खदान पर उनका दिल आ गया था, सो उनका सौदा करवाना था। ...
ये भी, वो भी, सब परिवार! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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ये भी, वो भी, सब परिवार! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

विपक्ष वालों की ये शिकायत ठीक नहीं है कि ये चुनाव का सीजन नहीं, भगवा पार्टी की विपक्षी नेताओं की खरीददारी का सीजन है। डबल इंजन वाले जब भी पार्टी दफ्तर से बाहर निकलते हैं, दूसरी पार्टियों के पूर्व और अभूतपूर्व नेताओं को अपने झोले में डालकर ही बाजार से लौटते हैं। बस फिर पट्टा दान, माइक दान या टिकट दान; जैसी जिसकी औकात हो! पर विपक्ष वालों की गलती नहीं है कि उन्हें इस सब में सिर्फ खरीद-फरोख्त दीख रही है, दल-बदल दीख रहा है। उनकी सोच ही इतनी नेगेटिव है। वर्ना सारा देश देख रहा है कि देश में अभी ‘मैं भी परिवार’ का सीजन चल रहा है। लालू जी ने मोदी जी को उनके भूले हुए परिवार की जरा-सी याद क्या दिला दी, देश भर में खुद को मोदी का परिवार घोषित करने की होड़ लग गयी है। आखिरकार, मोदी जी के कहने पर 140 करोड़ लोग उनका परिवार के बनने को भले खड़े न हों, कम से भक्त हजारों में तो खड़े हो ही सकते हैं। जब पि...