Saturday, July 27

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स्मृति लेख:   प्रभात झा: लोकसंग्रह और संघर्ष से बनी शख्सियत -प्रो.संजय द्विवेदी
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स्मृति लेख:  प्रभात झा: लोकसंग्रह और संघर्ष से बनी शख्सियत -प्रो.संजय द्विवेदी

  यह नवें दशक के बेहद चमकीले दिन थे। उदारीकरण और भूमंडलीकरण जिंदगी में प्रवेश कर रहे थे। दुनिया और राजनीति तेजी से बदल रहे थी। उन्हीं दिनों मैं छात्र आंदोलनों से होते हुए दुनिया बदलने की तलब से भोपाल में पत्रकारिता की पढ़ाई करने आया था। एक दिन श्री प्रभात झा जी अचानक सामने थे, बताया गया कि वे पत्रकार रहे हैं और भाजपा का मीडिया देखते हैं। इस तरह एक शानदार इंसान, दोस्तबाज,तेज हंसी हंसने वाले, बेहद खुले दिलवाले झा साहब हमारी जिंदगी में आ गए। मेरे जैसे नये-नवेले पत्रकार के लिए यह बड़ी बात थी कि जब उन्होंने कहा कि" तुम स्वदेश में हो, मैं भी स्वदेश में रह चुका हूं।" सच एक पत्रकार और संवाददाता के रूप में ग्वालियर में उन्होंने जो पारी खेली वह आज भी लोगों के जेहन में हैं। एक संवाददाता कैसे जनप्रिय हो सकता है, वे इसके उदाहरण हैं। रचना,सृजन, संघर्ष और लोकसंग्रह से उन्होंने जो महापरिवार बनाया ...
एक ही सुर के गायक — हिंदू-मुस्लिम! (आलेख : राजेंद्र शर्मा)
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एक ही सुर के गायक — हिंदू-मुस्लिम! (आलेख : राजेंद्र शर्मा)

कहावत है, पूत के पांव पालने में ही दीख जाते हैं। मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले करीब पचास दिनों में ही, अपने पांव बखूबी दिखा दिए हैं। और ये पांव बताते हैं कि हरेक संकट से उबरने का उसे एक ही रास्ता दिखाई देता है — सांप्रदायिक ताप बढ़ाया जाए। हैरानी की बात नहीं है कि इसका सबसे खुलेआम प्रदर्शन उस उत्तर प्रदेश से ही शुरू हुआ है, जहां आम चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगियों को, कम-से-कम उनके हिसाब से अप्रत्याशित रूप से भारी हार का सामना करना पड़ा है। न सिर्फ भाजपा राज्य की कुल अस्सी सीटों में से 33 पर आ गयी और 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 29 सीटें नीचे चली गयी, बल्कि राम मंदिर निर्माण पर केंद्रित अपनी तमाम प्रचार आंधी के बावजूद, उसने अयोध्या-फैजाबाद की अपनी सीट भी गंवा दी और वह भी सामान्य सीट से समाजवादी पार्टी द्वारा मैदान में उतारे गए, एक दलित उम्मीदवार के हाथों। इतना ही नहीं, इस राज...
रूको, झुको या… ठुको छत्तीसगढ़ शासन की चेतावनी वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…
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रूको, झुको या… ठुको छत्तीसगढ़ शासन की चेतावनी वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…

पुराने जमाने की फिल्मों में आपने सोल्जर्स को देखा होगा जिनकी कैप में घासफूस लगी होती थी और आज भी सोल्जर्स की पोशाक का रंग हरा घास के रंग से मेल खाता होता है। मकसद ये कि छिपना चाहें तो झाड़-झंखाड़ में खो जाएं और दूर से न दिखें। इस मकसद से नक्सलियों ने भी बारिश मे पेड़-पौधों की बीच छिपने के लिये ऐसी पोशाक बनवाई है जिसमें पत्ते और फूल लगे हैं और झाड़ियों के बीच खड़े होने से दूर से कोई ये नहीं भांप सकता कि कोई इंसान है। ऐसे कुछ सूट फोर्स ने बरामद भी किये हैं। इसमे कोई संदेह नहीं कि वक्त के साथ-साथ नक्सली अपडेट होते जाते हैं और अत्याधुनिक हथियार और अत्याधुनिक तकनीक के चलते वे कोई बड़ा संग्राम पैदा कर सकते हैं। नक्सलियों की ऐसी तैयारियों से हमारी फोर्स निपट नहीं पाती,ऐसा नहीं है। हमारे जवान न सिर्फ इन्हें मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं वरन् किसी भी प्रकार के हमले में बीस पड़ सकते हैं। इस वर्ष नक्स...
हिंदू बहुसंख्यकवाद के ख़तरों और चुनौतियों की शिनाख्त़ करती एक ज़रूरी किताब (आलेख : संजीव कुमार)
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हिंदू बहुसंख्यकवाद के ख़तरों और चुनौतियों की शिनाख्त़ करती एक ज़रूरी किताब (आलेख : संजीव कुमार)

ज्यादा दिन नहीं हुए, 'द स्क्रॉल' में एक दिलचस्प लेख पढ़ा था — Civil Society Emerges as Quiet but Formidable Challenger to Modi Govt in the 2024 Elections. लेख की मुख्य स्थापना यह थी कि भाजपा अगर इस चुनाव में हारती है, तो यह मुख्यतः नागरिक समाज की कोशिशों की वजह से होगा और विपक्ष के राजनीतिक दल उसके आकस्मिक लाभार्थी होंगे। 4 जून के बाद इसी नागरिक समाज को लोकतंत्र की हिफ़ाज़त के लिए अपनी कमर कसनी पड़ सकती है, क्योंकि पूरी आशंका है कि अगर भाजपा की हार हुई, तो वह दफ़्तर ख़ाली करने से इनकार कर दे। इसका कारण यह है कि केंद्र सरकार के उन दफ़्तरों में उसके 10 साल के काले कारनामों के सारे रहस्य और सबूत दफ़न हैं, जिन्हें अगले शासन द्वारा खोद कर निकाला जाना उन्हें काफ़ी महंगा पड़ सकता है। यही वजह है कि वे किसी भी क़ीमत पर चुनाव हारने को तैयार नहीं है और इसकी खातिर छल-प्रपंच, गुंडागर्दी, भयादोहन से लेकर प्रशासनिक...
पर्यावरण रक्षक चिंतक शुभांगी आप्टे ने कहा कश्मीर में लोग प्लास्टिक का कम उपयोग करते है
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पर्यावरण रक्षक चिंतक शुभांगी आप्टे ने कहा कश्मीर में लोग प्लास्टिक का कम उपयोग करते है

आज मेरा परम सौभाग्य कि मैंने कश्मीर की पावन धरती पहलगाम के फ्रेश वाटर रिसॉर्ट के पर्यावरण पूर्ण प्राकृतिक वातावरण में पौधा रोपण और नो प्लास्टिक कैंपेन का कार्यक्रम किया। यहां उन्होंने बहुत सारी सब्जियां भी लगाई है,जब मैने उनसे बात कि पौधा रोपण के लिए तो वे सहर्ष तयार हो गए और होटल के ओनर और सभी स्टाफ ने सहयोग दिया।मेरे साथ श्री संजय आप्टे ,मेरी बहन सौ नीरजा बोधनकर और मोहन बोधनकर का भी सहयोग रहा।तभी इतना सुंदर वीडियो और फोटोज बने हैं।हमने दो पौधे जिनिया के लगाए तथा थैली वितरण भी किया।उनके होटल में भी वो प्लास्टिक का उपयोग बहुत कम करते है।मैं जहां भी जाती हूं कुछ थैलियां जरूर रखती हूँ, जब भी मौका मिलता है,मेरा काम कर लेती हूँ।जल्दी ही मेरा 50000 का लक्ष्य पूरा हो जाएगा।वैसे ही पहलगाम बहुत ही स्वच्छ और सुंदर है। हम यात्री ही जहां जाते है,हम ही गंदगी फैलाते है,जब तक हमारी मानसिकता नहीं बदलेंग...
रोजगार, कौशल विकास से जुड़ी 5 योजनाओं के लिए दो लाख करोड़ का प्रावधान क्रांतिकारी कदम
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रोजगार, कौशल विकास से जुड़ी 5 योजनाओं के लिए दो लाख करोड़ का प्रावधान क्रांतिकारी कदम

0 बजट प्रतिक्रिया  रोजगार पर फोकस रोजगार, कौशल विकास से जुड़ी 5 योजनाओं के लिए दो लाख करोड़ का प्रावधान क्रांतिकारी कदम है। 4.1 करोड़ युवाओं को इससे लाभ मिलेगा। बजट में शिक्षा,रोजगार और कौशल के लिए 1.48 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। प्रो.(डा.) संजय द्विवेदी, पूर्व महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली      प्रतिवर्ष एक लाख छात्रों को सीधे ई-वाउचर उपलब्ध कराने का फैसला स्वागतयोग्य है। जिसमें ऋण राशि का तीन प्रतिशत ब्याज अनुदान दिया जाएगा। इसके अलावा सरकार नौकरी बाजार में प्रवेश करने वाले 30 लाख युवाओं को एक महीने का पीएफ अंशदान देकर प्रोत्साहन देगी। 500 शीर्ष कंपनियों में 1 करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप के अवसर प्रदान करने की योजना बहुत खास है। इसमें 5000 रुपये प्रति माह इंटर्नशिप भत्ता और 6000 रुपये की एकमुश्त सहायता दी जाएगी। 2 लाख युवाओं की इंटर्नशिप, मुद्रा लोन की सीमा...
संविधान हत्या दिवस से क्षुब्ध विपक्ष, फॉर्म में हैं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, योगी सरकार-आदेशःदुकानों में नाम लिखना जरूरी, हो गया बवाल वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…
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संविधान हत्या दिवस से क्षुब्ध विपक्ष, फॉर्म में हैं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, योगी सरकार-आदेशःदुकानों में नाम लिखना जरूरी, हो गया बवाल वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…

  अचानक खबर आई कि सबके सारे अधिकार ध्वस्त। बोलने की, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतम, विरोधियों को बिना कारण बताए अंदर किया जाने लगा। कोर्ट में दुहाई की भी छूट नहीं। यानि कोई सुनवाई नहीं। हालात इतने खराब कि अखबारों को कुछ भी छापने की स्वतंत्रता समाप्त। छापने के पहले खबर सरकार से एप्रूव्ह करानी होती। सरकार के खिलाफ छपा नहीं कि पुलिस ने धरा नहीं। जिसके घर का कोई सदस्य अंदर हो गया उनको ये खबर तक नहीं कि कहां है किस हाल में है, वापस कब आएगा, आएगा भी कि नहीं, ज़िन्दा भी है या नहीं। शादीशुदा तो शादीशुदा, अविवाहित भी पकड़ में आ जाए तो नसबंदी कर दी। ज़िदगी भर बच्चा पैदा न कर पाए। यानि घोर अत्याचार। पूरी हिटलरशाही। इस जुल्म में कई मासूम बिना कारण सिधार गये। ये सब हुआ था 25 जून 1975 को, जब अपनी जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निरस्त करने से क्षुब्ध तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश म...
नरेंद्र मोदी से इतनी नफरत क्यों करता है पश्चिमी मीडिया? 0प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी,
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नरेंद्र मोदी से इतनी नफरत क्यों करता है पश्चिमी मीडिया? 0प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी,

  नरेंद्र मोदी से इतनी नफरत क्यों करता है पश्चिमी मीडिया? - प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी, पूर्व महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने दोनों कार्यकालों में पश्चिमी नेताओं के साथ अब तक के सबसे अच्छे संबंध रहे हैं। लेकिन पश्चिमी मीडिया के साथ ऐसा नहीं है, जिसने उन्हें 'ताकतवर' से लेकर 'तानाशाह' तक, कई तरह के शब्दों से संबोधित किया है। अब जबकि 2024 के लोकसभा चुनावों के अंतिम परिणाम आ चुके हैं और नरेंद्र मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, तब पश्चिमी मीडिया द्वारा फैलाए गए भारत-विरोधी और मोदी-विरोधी एजेंडे का त्वरित मूल्यांकन करना जरूरी हो जाता है। भारत ने लोकसभा चुनावों के दौरान विदेशी पर्यवेक्षकों को भारतीय चुनावी प्रक्रिया देखने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन पश्चिमी मीडिया ने मोदी सरकार पर अल्पसंख्यकों के प्रति “घृणा” ...
आपातकाल : घोषित और अघोषित के बीच (आलेख : मज़्कूर आलम)
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आपातकाल : घोषित और अघोषित के बीच (आलेख : मज़्कूर आलम)

आह! एक दिन पहले देश आपातकाल की घोषणा के पचासवें साल में प्रवेश कर गया। 26 जून 1975 की सुबह देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो से यह घोषणा की थी कि राष्ट्र पर आंतरिक अशांति का ख़तरा है ; इसी आधार पर राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल लगाया है। अब ज़रा देखते हैं कि आंतरिक अशांति के ख़तरे का मूल्यांकन इंदिरा सरकार ने कैसे किया? वह भी इतनी बड़ी कि मौखिक ही मंत्रिपरिषद की संस्तुति कर दी राष्ट्रपति से। इसके लिए ज़्यादा नहीं, 26 जून से क़रीब एक पखवाड़े पीछे चलते हैं। *इंदिरा पर अचानक आई विपदाओं की बाढ़* 12 जून! 1975 की यही वह तारीख़ थी, जिसने आपातकाल की आधारशिला रखी। यह दिन निजी तौर पर इंदिरा गांधी के लिए हथौड़े की तरह था, जिसकी चोट घम्म से भारतीयों पर पड़ी। इंदिरा के दिन की शुरुआत उनके बेहद क़रीबी डीपी धर (दुर्गा प्रसाद धर) के निधन की सूचना से हुई। वह दुख की बदली...
इन्द्रदेव ने पानी बरसाने से मना कर दिया, हार्वेस्टिंग की अनदेखी करने वालों को पकड़ो, वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…
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इन्द्रदेव ने पानी बरसाने से मना कर दिया, हार्वेस्टिंग की अनदेखी करने वालों को पकड़ो, वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…

  कुछ दिन पूर्व एक खबर आई कि राजस्थान के एक बुजुर्ग वकील ने पानी की समस्या से त्रस्त होकर आत्महत्या कर ली। कई लोगों ने इस खबर को पढ़ा होगा और फिर नज़रअंदाज कर दिया होगा। क्योंकि हम लोगों को न तो पानी की समस्या का अंदाजा लग पा रहा है, न ही किसी की आत्महत्या में दिलचस्पी है। खैर... एक मित्र ने एक किस्सा सुनाया कि उसने इन्द्रदेव को फोन लगाया कि हे इन्द्रदेव पानी क्यों नहीं बरसा रहे हो ? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, क्या नाराजगी है ? इन्द्रदेव बोले ‘आप लोगों को पानी देने का कोई मतलब नहीं है, न तो आप लोग पानी का महत्व समझते हो, न पानी संभाल पाते हो। कुएं आप लोगों ने पाट दिये। तालाबों की जगह बिल्डिंगें खड़ी कर दीं, नदी नालों को प्रदूषित कर रखा है। हार्वेस्टिंग सिस्टम की अविष्कार हुआ तो पालन नहीं करते हो। आप लोगों को पानी देना व्यर्थ है, जल का अपमान है।’ ‘लेकिन प्रभु हमने नियम तो बनाय...