Saturday, September 7

इन्द्रदेव ने पानी बरसाने से मना कर दिया, हार्वेस्टिंग की अनदेखी करने वालों को पकड़ो, वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…

 

कुछ दिन पूर्व एक खबर आई कि राजस्थान के एक बुजुर्ग वकील ने पानी की समस्या से त्रस्त होकर आत्महत्या कर ली। कई लोगों ने इस खबर को पढ़ा होगा और फिर नज़रअंदाज कर दिया होगा। क्योंकि हम लोगों को न तो पानी की समस्या का अंदाजा लग पा रहा है, न ही किसी की आत्महत्या में दिलचस्पी है।

खैर… एक मित्र ने एक किस्सा सुनाया कि उसने इन्द्रदेव को फोन लगाया कि हे इन्द्रदेव पानी क्यों नहीं बरसा रहे हो ? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, क्या नाराजगी है ? इन्द्रदेव बोले ‘आप लोगों को पानी देने का कोई मतलब नहीं है, न तो आप लोग पानी का महत्व समझते हो, न पानी संभाल पाते हो। कुएं आप लोगों ने पाट दिये। तालाबों की जगह बिल्डिंगें खड़ी कर दीं, नदी नालों को प्रदूषित कर रखा है। हार्वेस्टिंग सिस्टम की अविष्कार हुआ तो पालन नहीं करते हो। आप लोगों को पानी देना व्यर्थ है, जल का अपमान है।’

‘लेकिन प्रभु हमने नियम तो बनाया है। हार्वेस्टिंग के लिये नगर निगम का नियम है कि हर नये घर में, बड़े भवनों में, सरकारी भवनों में पेड़ भी लगाया जाए और वाटर हार्वेस्टिंग भी कराया जाए। ये अनिवार्य है।’

घूस खाने के काम आता है
हार्वेस्टिंग का नियम

इन्द्रदेव ज़ोर से हंसे ‘निगम का नियम… ? नगर निगम के किसी भी काम में कभी भी यदि एक भी नियम का पूरी तरह पालन हुआ हो… तो मुझे बताना, मैं अपना पानी का अधिकार छोड़ दूंगा।’ ‘आपके अधिकारियों को टैंकरों से पानी मिल जाता है, उन्हें क्या चिन्ता। उन्हें तो केवल अपना घर भरने की चिन्ता होती है।’

‘मैने तो यहां तक सुना है कि हार्वेस्टिंग के लिये जो पैसा निगम मंे जमा कराया जाता है, वो मकान बनने के बाद भी कोई वापस लेने नहीं आता। जबकि वो रिफण्डेबल होता है यानि वापस होता है।’
मकान बनाने वाला मकान नक्शे के अतिरिक्त मकान बना लेता है और चाहता है कि निगम का कोई आदमी वहा न फटके नहीं तो घूस मांगेगा। इसलिये वो निगम जाता ही नहीं और जिनकी जवाबदारी होती है इंस्पैक्शन की, वो तो आॅफिस में ही बैठे-बैठे अपना हिस्सा पक्का कर लेते हंै, फील्ड में जाने की जरूरत ही नहीं समझते।’

मित्र पसीने से तरबतर नींद से जागा। उसे याद आया कि एक बार उसके नल में पानी नहीं आ रहा था तो वो टुल्लू पम्प से पानी खींचने वालों की शिकायत लेकर निगम पहुंचा।
साहब ने साफ कहा ‘सब खींचते हैं तो तुम भी खींचो। हम जब भी कार्यवाही करते हैं तो वहां के पार्षद पैरवी करने चले आते हैं। व्यर्थ में चिल्लाचिल्ली करते हैं। इसलिये आप भी वहीे करो जो सब कर रहे हैं।’

मकान बनाने का भी वही हाल है, यदि निगम आपत्ति करे तो पार्षद का रोल चालू हो जाता है। और फिर जब अफसर को खुद को घूस में इंटरेस्ट है नियम के पालन में नहीं तो हार्वेस्टिंग होगी कैसे… ?
वृद्ध वकील की आत्महत्या से हम नहीं चेत रहे लेकिन इस भविष्यवाणी को तो गंभीरता से लेना चाहिये कि पानी की किल्लत को देखते हुए विश्व में त्राहि-त्राहि मचेगी और एक दिन पानी तृतीय विश्व युद्ध का कारण बनेगा।

सजा ही हल

यदि वास्तव में आने वाली पीढ़ी को पानी के लिये सरफुटौव्वल से बचाना है तो कानून कड़ा बनाना पड़ेगा। जो मकान मालिक को नियमों की अनदेखी करने पर बड़ा जुर्माना करे और उससे भी बड़ा जुर्माना और सस्पेंशन उस अफसर का करे जिसकी ड्यूटी क्षेत्र की निगरानी की हो। जब दोनों की जवाबदारी तय कर कड़ी सजा मिलेगी तब कानून का पालन होगा, तब मानवता की रक्षा होगी।

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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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