Sunday, September 8

संविधान हत्या दिवस से क्षुब्ध विपक्ष, फॉर्म में हैं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, योगी सरकार-आदेशःदुकानों में नाम लिखना जरूरी, हो गया बवाल वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…

 

अचानक खबर आई कि सबके सारे अधिकार ध्वस्त। बोलने की, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतम, विरोधियों को बिना कारण बताए अंदर किया जाने लगा। कोर्ट में दुहाई की भी छूट नहीं। यानि कोई सुनवाई नहीं।

हालात इतने खराब कि अखबारों को कुछ भी छापने की स्वतंत्रता समाप्त। छापने के पहले खबर सरकार से एप्रूव्ह करानी होती। सरकार के खिलाफ छपा नहीं कि पुलिस ने धरा नहीं।
जिसके घर का कोई सदस्य अंदर हो गया उनको ये खबर तक नहीं कि कहां है किस हाल में है, वापस कब आएगा, आएगा भी कि नहीं, ज़िन्दा भी है या नहीं।
शादीशुदा तो शादीशुदा, अविवाहित भी पकड़ में आ जाए तो नसबंदी कर दी। ज़िदगी भर बच्चा पैदा न कर पाए। यानि घोर अत्याचार। पूरी हिटलरशाही। इस जुल्म में कई मासूम बिना कारण सिधार गये।
ये सब हुआ था 25 जून 1975 को, जब अपनी जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निरस्त करने से क्षुब्ध तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश मे आपातकाल यानि इमर्जेन्सी की घोषणा कर दी थी। जनता त्राहिमाम्-त्राहिमाम् करती रही।

किसी पुरानी फिल्म में अत्याचारी राजा द्वारा दिखाये जाने वाले जुल्म अपने देश में साक्षात सड़कों पर दिखने लगे थे।
बस इन्हीं सब कड़़वे अनुभवों के मद्देनजर केन्द्र सरकार ने 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का ऐलान किया है क्योंकि वस्तुतः इस दिन संविधान के घोर विरोध में जाकर सभी के सारे अधिकार निरस्त कर दिये गये थे।

विपक्ष बेहद नाराज़

दरअसल लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस द्वारा भाजपा संविधान खत्म कर देगी ऐसा काल्पनिक डर दिखाया गया, जिसका फायदा भी मिला कांग्रेस को।
इस झूठ से मात खाई भाजपा ने इसके जवाब में जनता को इमर्जेंसी यानि आपातकाल से रूबरू कराकर कांग्रेस की पोल खोलने के लिये ये कदम उठाया है।
हुआ भी वही जो भाजपा चाहती है। संविधान हत्या दिवस की इस घोषणा से कांग्रेस बेतहाशा बौखला गयी है। सबसे अधिक आश्चर्य तो इस बात का है कि वे नेता भी बौखला गये हैं जिनके पूर्वज कांग्रेस के इन अत्याचारों को झेल चुके हैं। लेकिन अब वे कांग्रेस के साथ खड़े नजर आ रहे हैं, सत्ता की लालच में।

योगी सरकार का एक और कदम
विपक्ष की नाराजगी का कारण

एक और बौखलाहट का प्रदर्शन यूपी सरकार के नये आदेश से भी समूचे विपक्ष सहित कांग्रेस कर रही है। वो आदेश है कांवड़ यात्रा के मार्ग की सभी दुकानों पर मालिक का नाम लिखना जरूरी है। कई बार गैर हिंदुओं द्वारा दुकानों-होटलों का नाम हिंदु के नाम पर रखने से क्षुब्ध हिंदुओं ने ये मांग की थी।
हालांकि खबर है कि नाम लिखने संबंधी नियम पहले से है जिसमें नाम के साथ लाईसेंस जीएसटी नंबर तथा कुछ और जानकारी लिखना होता है। अधिकारियों की अनदेखी और लापरवाही के चलते इसका पालन नहीं हो रहा था।

यूं ही नहीं बदनाम है अफसरशाही

अफसर बेहद ढीठ और झूठे होते हैं और जनता को हमेशा भ्रमित करते हैं पर अब वे मुख्यमंत्री के साथ भी ऐसा अवांछित व्यवहार करने से नहीं डर रहे। शायद उन्हें पता है कि आज सस्पेण्ड होंगे तो कल जुगाड़ लगाकर फिर से नौकरी पा जाएंगे। अपने देश में सरकारी आदमी को सजा बड़ी मुश्किल से मिलती है।
लेनिक विष्णुदेव साय की कार्यप्रणाली कुछ अलग, लीक से हटकर मालूम होती है। छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने गलत रिपोर्ट देने और लापरवाही के लिये जलजीवन मिशन के 6 इंजीनियरों को सस्पेण्ड कर दिया है और 4 को कारण बताओ नोटिस दिया है।
निस्संदेह ये अच्छा कदम है। जल से बढ़कर कुछ नहीं, फिर भी सरकार की जनहितकारी योजनाओं पर स्वार्थवश लापरवाही करना और फिर शासन को भ्रमित करना नितान्त निंदनीय है। ऐसे अमानवीय अधिकारियों को निलंबित करना और सजा देना मुख्यमंत्री का अच्छा कदम कहा जा सकता है।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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