Saturday, September 7

वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी…. खरी….. क्या फिर जमेगी राहुल की पारी या छिटक जाएंगे रिश्ते,जो होते थे आभारी

दो दिन बाद 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसे केस की सुनवाई है जिस पर सारे देश की नजर लगी है। राहुल गांधी पर ‘मोदीज़’ के अपमान का केस है। निचली अदालत और फिर गुजरात उच्च न्यायालय से उन्हें सजा हुई है। जिसमें उन्हें दो साल की जेल की सजा  और आठ साल चुनाव से वंचित किया गया है। इसका नतीजा क्या होगा, इस पर थोड़ा ठहर कर बात करेंगे। पहले ये देखिये कि आज कांग्रेसी किस मानसिकता से काम कर रहे हैं। निर्णय लेना कठिन हो रहा है कि ईधर ही रहें या उधर लपक लें।
जरा वर्तमान पर गौर करें। जो लोग कभी राहुल गांधी के अहसान तले दोहरे हुए जाते थे। उनका छाता छोड़िये, चप्पल उठाने को आपस में लड़ते थे उनकी नज़रों में उठने के लिये। आज आलम ये है कि कांग्रेस को डूबता जहाज समझ कर वहां से दुबक लेना चाहते हैं प्रायः तो उनसे नज़र बचाकर विरोधी दल यानि भाजपा के चरणों के निशान ताक रहे हैं कि किसी तरह उन पर चलकर भाजपा के दर तक पहुंच जाएं और किसी तरह उसके घर के अंदर एंट्री मिल जाए।
कई बड़े नेता जो उनके दाएं-बाएं हाथ बांधे खड़े होते रहे हैं, लंबे समय से उनसे निराश और उनके राजनैतिक भविष्य का अहसास कर हताश हैं। इसलिये अच्छा मौका मिलते ही बाहर की ओर लपक लेते हैं। जैसे ही नया ठिया मिलता है, बरसों के संबंधों को त्याग कर नये संबंध बना लेते हैं।

आज्ञाकारी विद्रोही हुए,यूं तो बात बड़ी है
फिर भी कांग्रेस आत्मविश्वास से खड़ी है

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जो पटकनी दी कांग्रेस को, उसे तो गांधी परिवार कभी भूल नहीं पाएगा।  कपिल सिब्बल को समाजवादियों के पास बल मिला तो वे अखिलेश के यार बन गये। गुलाम नबी आजाद ने आजादी की सांस कांग्रेस से बाहर आकर ली।
अपनी नयी पार्टी बनाकर वेट एन वाॅच की स्थिति में हैं। गाहे बगाहे उनके भाजपा के साथ गाना गाने की बातें सुनाई पड़ने लगी हैं। संभावना है कि वे भी देश की राष्ट्रभक्त, हिंदुरक्षक और निष्पक्ष पार्टी भाजपा के साथ सुरताल बिठा लें।
इसके इतर दूसरा पहलू ये है कि कांग्रेस का आत्मविश्वास कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश जीतने के बाद काफी हद तक बढ़ गया है। इस वर्ष होने वाले चुनावों में छत्तीसगढ़ में आगे और मध्यप्रदेश और राजस्थान में टक्कर में खड़ी दिख रही है।

बचा विद्रोही भला कौन
सारे दिख रहे शांत और मौन

कांग्रेस में काफी कमजोरियों के बाद भी राजनैतिक चातुर्य से तीनों ही राज्यों में फैल रही संघर्ष की आग को आराम दे दिया है। छत्तीसगढ़ में सिंहदेव को ‘डिप्टी’ पर ही मना लिया है। अब वे चीफ मिनिस्टर पद की बात नही ंकर रहे। मध्यप्रदेश में कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने के बाद कोई विरोध नजर नहीं आ रहा। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ, आज हैं साथ-साथ। राजस्थान में सचिन पायलट का विद्रोही उड़नखटोला फिलहाल सुस्ता रहा है और उसका रूख गहलोत को टाॅरगेट नही ंकर रहा है। इस सारे समझौतों को लाभ कांग्रेसियों को समझ आ रहा है।

कांग्रेस में फिर दम दिख रहा जमकर
राज्यों में भाजपा को दे सकती है टक्कर

भाजपा के मुकाबले कांग्रेस में दम नहीं और भाजपा कहीं भी कम नहीं। तो अच्छे लीडर और अच्छे लोग भाजपा का ही दामन थामने में भविष्य सुरक्षित समझ रहे हैं। ऐसे बहुत सारे नेता हैं जो राहुल गांधी परिवार की मनमानी और घमण्ड का आरोप लगाकर कांग्रेस से किनारा कर लिये हैं। ये तो फिर भी चलता है पर इस उपेक्षा के बदले यदि सत्ता सुख भी न मिले तो फायदा ही क्या ऐसी गुलामी करने का। यदि वफादारी के बदले सत्ता सुख तो आवश्यक है।

रस्ते से हटाने की रेलमपेल
अपने ही पहुंचाना चाहें जेल

बड़े असमंजस में हैं राहुल गांधी किस पर विश्वास करें, किस पर शक। चर्चा ये भी है कि पहले उनके चाहने वालों ने उनके केस में ढिलाई बरती, और सलाह गलत देकर भरमा दिया कि माफी… और आप उंह… कभी नहीं….। और इन्हीं गलत सलाहकारों के चलते  उन्होंने माफी नहीं मांगी। नतीजा सामने है…  लेने के देने पड़ गये।
अब जेल जाने से चाहे बच जाएं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में कदाचित् कुछ ही दिनों में निर्णय आ जाए। संभव है कि उनके कद को देखते हुए कोर्ट उनकी जेल की सजा माफ करके जेल से उन्हें निजात दे दे और केवल जुर्माना लगा दे, लेकिन चुनाव पर रोक और संसद सदस्यता से वंचित रखना भी कांगंेस या यूं कहें कि गांधी परिवार को खल जाएगा।
दूसरी ओर कुछ नामुराद ऐसे भी हैं जो उन्हें जेल जाने की सलाह दे रहे हैं कि भैया जेल चले जाओ, सहानुभूति बटोर लो। पार्टी जीत जाएगी। राहुुल सोच रहे हैं ‘बलि का बकरा बनूं मैं…. और जीत जाओ आप लोग’,। ‘मैं रहूं जेल की कोठरी में आप लोग जमकर मजे लो संसद के… ?
आजादी की लड़़ाई में शहादत देने वालों ने तो जान न्यौछावर कर दी देश पर और मजे कर रहे हम और आप। क्या ऐसा ही कुछ कांग्रेस में दोहराया जा सकता है ?

लुब्बोलुआब ये कि…

लुब्बोलुआब ये कि यदि परसों यदि राहुल गांधी की सजा जस की तस बरकरार रखी गयी तो कांग्रेसी बेकरार हो जाएंगे और कदाचित् बेचैनी से भागमभाग भी मच जाए। क्योंकि दो साल कैद और 8 साल चुनावी बंदिश नेता को किनारे लगाने में अहम् योगदान दे सकती है। लेकिन अगर मामूली सजा होती है तो राहुल को बेहिसाब सहानुभूति मिल सकती है। कांगंे्रस की स्थिति राज्यों में और मजबूत कर सकती है।
हालांकि ये सारा कुछ इस बात के लिये होगा कि भाजपा की लोकसभा में विशाल जीत को कैसे कम किया जा सके। क्योंकि भाजपा मोदीजी के कांधे पर सवार होकर एक विशाल जीत की ओर अग्रसर है। उसे हराना तो लगभग नामुमकिन सा लग रहा है। बस उसकी सीटें कुछ कम की जा सकें तो यही विपक्ष की कामयाबी होगी।

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