*छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य में है यहां की लोककला का प्राणतत्व*
*यह मानव जीवन के उल्लास-उमंग-उत्साह के साथ परंपरा के पर्याय*
*अनंत व असीम है छत्तीसगढ़ की नृत्य परंपरा*
*1 से 3 नवंबर तक राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में होगा जनजातीय नृत्यों का प्रदर्शन*
मनोज सिंह, सहायक संचालक
रायपुर, 28 अक्टूबर 2022/
छत्तीसगढ़ी लोककला में लोकनृत्य संपूर्ण प्रमुख छत्तीसगढ़ के जनजीवन की सुन्दर झांकी है। राग-द्वेष, तनाव, पीड़ा से सैकड़ों कोस दूर आम जीवन की स्वच्छंदता व उत्फुल्लता के प्रतीक लोकनृत्य यहां की माटी के अलंकार है। छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य सुआ, करमा, पंथी राउत नाचा, चंदैनी, गेड़ी, नृत्य, परब नृत्य, दोरला, मंदिरी नृत्य, हुलकी पाटा, ककसार, सरहुल शैला गौरवपाटा, गौरव, परथौनी, दशहरा आदि हैं। छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य में यहां की लोककला का प्राणतत्व है। यह मानवीय जीवन के उल्लास - उमंग-उत्साह के साथ परंपरा के पर्याय हैं। समस्त सामाजिक, धार्मिक व विविध अवस...