Saturday, September 7

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ढाई दिन की बदशाहत क्या बदशाहत नहीं होती! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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ढाई दिन की बदशाहत क्या बदशाहत नहीं होती! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

देखा ना, मोदी विरोधियों की एंटीनेशनलता खुलकर सामने आ ही गयी। इनसे दुनिया पर भारत की बादशाहत तक नहीं देखी जा रही। उसमें भी पख लगाने लगे। बताइए, जब तक जी-20 की अध्यक्षता नहीं आयी थी, तब तक तो कह रहे थे कि अपना नंबर कब आएगा। इंडोनेशिया तक का नंबर आ गया, अपना नंबर कब आएगा? और अब मोदी जी दुनिया की बादशाहत ले आए हैं, तो भाई लोग कह रहे हैं कि जी-20 की अध्यक्षता तो इकदम्मे टेंपरेरी है। अग्निवीर से भी ज्यादा टेंपरेरी -- सिर्फ एक साल के लिए। और वह भी रोटेशन से। आज टोपी एक के सिर, तो कल वही टोपी किसी और के सिर। टोपी मत देखो, टोपी के नीचे का सिर देखो, जो हर साल बदलता रहता है। वह भी अपने आप। न ज्यादा जोश से सिर लगाने से टोपी, उसी सिर से चिपकी रह जाएगी और न लापरवाही से पहनने से, टैम पूरा होने से पहले उडक़र टोपी किसी और के सिर पर जाकर बैठ जाएगी। अव्वल तो टोपी है, उसे किसी का बादशाहत मानना ही गलत है। फिर भ...