Sunday, September 8

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इस संविधान के प्रति संघ-भाजपा को इतनी नफरत क्यों है? (आलेख : सुभाष गाताडे, अनुवाद : संजय पराते)
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इस संविधान के प्रति संघ-भाजपा को इतनी नफरत क्यों है? (आलेख : सुभाष गाताडे, अनुवाद : संजय पराते)

वाजपेयी सरकार ने संविधान को बदलने की कोशिश की थी, लेकिन 2004 के चुनाव में हार गई। हमें सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि हिंदू वर्चस्ववादी ताकतों द्वारा फिर से इसी तरह का राग अलापा जा रहा है। ... भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य बनाएं और भारत के सभी लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की गारंटी और सुरक्षा प्रदान करें ; बिना किसी भेदभाव के अवसरों की समानता और कानून के समक्ष समानता ; और मौलिक स्वतंत्रता -- भाषण, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था, पूजा, व्यवसाय, संघ और कार्रवाई की -- कानून और सार्वजनिक नैतिकता के अधीन ; और यह भी सुनिश्चित करें : अल्पसंख्यकों, पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों के लिए और दबे-कुचले और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान किए जाएं। (संविधान सभा में उद्देश्य संकल्प के अंश, पंडित नेहरू द्वारा 13 दिसंबर, 1946 को पेश किया गया और 22 जनवरी, 1947 को संव...
एमएसपी कानून की गलत आलोचनाओं का खंडन (आलेख : विकास रावल, अनुवाद : संजय पराते)
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एमएसपी कानून की गलत आलोचनाओं का खंडन (आलेख : विकास रावल, अनुवाद : संजय पराते)

किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाले कानून की अक्सर सुनी जाने वाली आलोचनाओं का जवाब देने के लिए यह आलेख है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की प्रणाली 1960 के दशक से अस्तित्व में आई है और इसका उद्देश्य है, किसानों के लिए न्यूनतम लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करना। इस प्रणाली को लागू करते समय यह वादा किया गया था कि सरकार कृषि उपज की किसी भी मात्रा को खरीदेगी, जिसे किसान न्यूनतम मूल्य पर बेचने में असमर्थ हैं। हालाँकि, यह वादा कभी पूरा नहीं किया गया और सरकारी खरीद की प्रणाली केवल कुछ फसलों के लिए बनाई गई और केवल कुछ राज्यों में ही इसे लागू किया गया। न्यूनतम कीमत की समस्या हाल के वर्षों में एक बड़ी समस्या बन गई है, क्योंकि किसी भी वर्ष, कई फसलों की बाजार कीमतें एमएसपी से काफी नीचे के स्तर पर रहती हैं। इसी संदर्भ में लाभकारी मूल्य की गारंटी की मांग उठ रही है। वर्ष 2014 के ल...
उत्तराखंड समान नागरिक संहिता : एक बहुसंख्यकवादी संहिता — न समान, न सिविल(आलेख : बृंदा करात, अनुवाद : संजय पराते)
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उत्तराखंड समान नागरिक संहिता : एक बहुसंख्यकवादी संहिता — न समान, न सिविल(आलेख : बृंदा करात, अनुवाद : संजय पराते)

उत्तराखंड विधानसभा द्वारा मंजूर की गई उत्तराखंड समान नागरिक संहिता इस बात का एक अच्छा उदाहरण है कि क्यों न्यायमूर्ति एस.बी. चौहान की अध्यक्षता वाले 21वें विधि आयोग ने इस पर विचार करते हुए इसे "न तो आवश्यक और न ही वांछनीय" बताया था। उत्तराखंड विधानसभा द्वारा पारित की गई संहिता न केवल कई मामलों में त्रुटिपूर्ण है, बल्कि कुछ मामलों में यह प्रतिगामी है और मौजूदा अधिकारों को समाप्त करता है। जब भाजपा प्रवक्ता इस संहिता की सराहना करने के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ में तीन तलाक और हलाला जैसी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, यह इस कानून के घोर महिला विरोधी, अलोकतांत्रिक और कुछ मामलों में कठोर चरित्र को छिपाने के लिए है। इसके कई प्रावधानों में यह एक वयस्क महिला की यौन स्वायत्तता पर सीधा हमला है और नैतिक पुलिसिंग और सतर्कता के लिए एक कानूनी लाइसेंस है। यह राज्य, सरकार और नौकरशाही को व...
संवैधानिक नहीं, केवल एक राजनैतिक निर्णय (आलेख : फली एस नरीमन, अनुवाद : संजय पराते)
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संवैधानिक नहीं, केवल एक राजनैतिक निर्णय (आलेख : फली एस नरीमन, अनुवाद : संजय पराते)

राजनैतिक दृष्टि से यह अच्छी बात है कि भारत के संविधान में एक अस्थायी प्रावधान (अनुच्छेद 370) अब प्रभावी नहीं रह गया है। सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के तीन निर्णयों (एक मुख्य और दो सहमति वाले) में 11 दिसंबर को केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा गया है : इससे जम्मू और कश्मीर का भारत संघ में पूर्ण एकीकरण करने की सुविधा मिल गई है। अगर इतना ही हुआ होता, तो इस सर्वसम्मत फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए था। लेकिन केवल इतना ही नहीं हुआ।h मेरे विचार में, केंद्र द्वारा वास्तव में जो किया गया, वह संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं था, न ही संघवाद के सुस्थापित सिद्धांतों के अनुसार, जो कि हमारे संविधान की एक बुनियादी विशेषता है और जिसे 1994 में नौ न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ के फैसले में रेखांकित किया गया था। भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 370 को 1954 के राष्ट्रपति...
मैं ‘द केरल स्टोरी’ क्यों नहीं देखना चाहता? (आलेख : टी नवीन, अनुवाद : संजय पराते)
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मैं ‘द केरल स्टोरी’ क्यों नहीं देखना चाहता? (आलेख : टी नवीन, अनुवाद : संजय पराते)

'कश्मीर फाइल्स' से प्रेरित होकर फिल्मों और फिल्म निर्माताओं की एक नई नस्ल उभर रही है। एक सरकार जो 'गुजरात फाइल्स', 'गोडसे फाइल्स' को छिपाना और बंद करना चाहती है, वह चाहती है कि 'कश्मीर फाइल्स', 'केरल स्टोरी', 'दिल्ली फाइल्स' और 'रजाकार फाइल्स' जैसी फिल्में सामने आएं। 'द केरला स्टोरी' नाम की यह फिल्म 5 मई को रिलीज हुई है। फिल्म सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित और विपुल अमृतलाल शाह द्वारा निर्देशित है। फिल्म का टीजर पिछले साल 2 नवंबर को रिलीज हुआ था और ट्रेलर 27 अप्रैल को रिलीज हुआ था। ये दोनों इस बात का संकेत देने के लिए काफी हैं कि फिल्म किस बारे में है। मैं 'द केरला स्टोरी' क्यों नहीं देखना चाहता, इसके ये कारण हैं : एजेंडा और प्रचार से संचालित फ़िल्म अपने पूर्ववर्ती फिल्मों के अनुरूप, यह फिल्म भी एजेंडा और प्रचार से संचालित है। इसका उद्देश्य 'मुस्लिम' पुरुषों द्वारा प्रेम के नाम पर 'निर...