Sunday, September 8

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एनडीटीवी : मसला सिर्फ एक चैनल या पत्रकार का नहीं है (आलेख : बादल सरोज)
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एनडीटीवी : मसला सिर्फ एक चैनल या पत्रकार का नहीं है (आलेख : बादल सरोज)

एनडीटीवी के जबरिया और तिकड़मी टेकओवर पर देश भर में विक्षोभ और चिंता की लहर सी उठी है। मीडिया के भविष्य को लेकर फ़िक्र बढ़ी है - ज्यादातर लोगों ने इसे ठीक उसी तरह लिया है, जिस तरह लिया जाना चाहिए और वह यह कि : एनडीटीवी का अधिग्रहण उसे चलाने के लिए नहीं, उसे उसके मौजूदा स्वरूप में न चलने देने के लिए किया गया है। यह अधिग्रहण भारत के इतिहास में अब तक की सबसे देशघाती और निरंकुश हुकूमत को चलाने वाले गंठजोड़ के अपकर्मों को उजागर करने वाली हर छोटी–बड़ी संभावना को समाप्त करने के लिए है। सूचना के हरेक छोटे–बड़े स्रोत को गोद में बिठाकर उसे मालिक की अपनी आवाज - हिज मास्टर्स वॉइस - में बदल देने के लिए है। ठीक यही वजह है कि इस अधिग्रहण को सिर्फ रवीश कुमार या एनडीटीवी तक सीमित रखकर देखना समस्यापूर्ण नजरिया है। निस्संदेह रवीश कुमार हमारे समय के बड़े पत्रकार हैं, एक बेहद कठिन समय में उन्होंने पत्रकारिता की लाज...