Saturday, September 7

Tag: There is a shortage of ideas in Kosal

कोसल में विचारों की कमी है, संघ-भाजपा को हराना जरूरी है! (आलेख : जवरीमल्ल पारख, संक्षिप्तिकरण : संजय पराते)
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कोसल में विचारों की कमी है, संघ-भाजपा को हराना जरूरी है! (आलेख : जवरीमल्ल पारख, संक्षिप्तिकरण : संजय पराते)

हिंदी कवि श्रीकांत वर्मा के कविता संग्रह 'मगध' में एक कविता संकलित है, ‘कोसल में विचारों की कमी है’। इस कविता की अंतिम दो पंक्तियां हैं : कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता,/कोसल में विचारों की कमी है!’ यदि कोसल को हम भारत का लोकतंत्र समझें तो उस पर यह कविता पूरी तरह से लागू होती है। एक युद्ध चल रहा है, जनता और शासक के बीच, ग़ैरबराबरी का। युद्ध एकतरफ़ा है और किसे जीतना है, पहले से तय है। लेकिन कविता कहती है कि जीत के बावजूद ‘कोसल’ टिक नहीं सकता, क्योंकि हमारे लोकतंत्र में विचारों की सचमुच कमी है। हम आज उस मुक़ाम पर पहुंच गये हैं, जहां ‘कोसल’ यानी भारतीय लोकतंत्र के अधिक दिन तक टिकने की संभावना भी क्षीण होती जा रही है। हमारे लोकतंत्र का सबसे जीवंत ग्रंथ और हमारा पथ प्रदर्शक संविधान है और उसी पर सबसे अधिक कुठाराघात हो रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है? *हमारा अतीत और आज़ादी के संघर्ष का वैचारिक पक्ष* ...