Saturday, September 7

खरी खरी ,बाबा रामदेव हिंदुवादी, राष्ट्रभक्त होने से परेशान, तब गोविंदा ने “किया होता” तो आज जीत होती 0 जवाहर नागदेव वरिष्ठ पत्रकार

चुनावों का चक्कर बड़ा बुरा होता है। मोटी चमड़ी वाले तो आराम से हार स्वीकार कर लेते हैं। दूसरे आराम से वे नेता सह लेते हैं जिन्होनंे चुनावी चन्दे के रूप् में अच्छी-खासी कमाई कर ली होती है। लेकिन भावुक लोग हार आसानी से पचा नहीं पाते।
जीत की उम्मीद में चुनाव लड़ने वालों को हार बहुत खलती है।
इस नये दौर में काम करना बहुत जरूरी हो गया है। काम न करने वालों को जनता चुनाव में बिना किसी रहम के निपटा देती है।

कोई एक बार किसी लहर में जीत भी जाए तो दोबारा उसे मौका नहीं देती है। एक बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत चुके गोविंदा दोबारा शिवसेना के बैनर पर मैदान में हैं।
इस बात का दावा करना कठिन है कि वे जीत ही जाएंगे।
देश का बेहतरीन महानगर महाराष्ट्र का मुम्बई, जो अपनी दादागिरी, अपनी पुलिस अपने ग्लैमर और अपने व्यापार के लिये जाना जाता है। इस नगर के सफलतम् ग्लैमरस हीरो गोविन्दा को किसी नाम की जरूरत है। वो अपने आप में सुप्रसिद्ध हैं।
नब्बे के दशक मे वे वहां के एक क्षेत्र से सांसद भी रहे हैं। तब एक बार शायद पहली बार बहुत ही अधिक बाढ़ आई थी मुम्बई में। चारो तरफ त्राहि-त्राहि मच गयी थी।

बहुत से लोग बेहद परेशान हो गये और खून के आंसू बहाते दिखे। बहुत से लोगों को कई सामाजिक संस्थाओं ने राहत कार्य कर बचा भी लिया। सरकार ने भी काफी सराहनीय काम किये।

तब गोविंदा ने हाथ-पैर चलाए होते
तो जनता ने सम्मान में गीत गाए होते

उस कठिन दौर में मेरे एक लेख में मैने लिखा था कि ऐसी तकलीफ के समय जो काम आता है जनमानस उसे कभी भुला नहीं पाता।

आजीवन याद रखता है। ऐसे में गोविंदा को एक काम करना था कि भोजन क,े दवाओं के और कपड़ों के पैकेट बनवा कर अपने क्षेत्र में बंटवा देने थे।
खुद रेनकोट पहनकर बोट में चढ़कर लोगों के बीच उतर जाना था। गोविंदा कोई आम आदमी नहीं थे कि डूब जाते या बीमार पड़ जाते।

एक लोकप्रिय हीरो होने के नाते भी और एक सांसद होने के नाते भी उन्हें सरकार से भरपूर संरक्षण और भरपूर फण्ड प्राप्त होता जिससे वे राहत कार्य को अंजाम देते। इसी को कहते हैं हींग लगी न फिटकरी फिर भी रंग चोखा।
पर वे ऐसा कुछ नहीं कर पाये और मेरे विचार से चूक गये।
यदि वे तीन दिन लगातार लोगों के बीच उतर जाते तो उनका सिक्का हमेशा के लिये जम जाता। उन तीन दिनों को वे तीस साल तक भुनाते रहते। कठिन समय में काम आए व्यक्ति को इंसान कभी भी भूलता नहीं।

आज जब वे फिर से चुनाव मैदान में हैं तो उस समय की कीर्ति और उस समय के फोटो उन्हें बहुत सपोर्ट करते।
लोग ये अवश्य कहते ‘वा यार इतना बड़ा आदमी खुद बारिश में, बाढ़ में सड़कों पर उतर आया।

काश वे उस समय कर लेते तो आज उसका फल मिलना आसान हो जाता। बाबा रामदेव भी कहते हैं करने से होता है।
एक समय का बाबा रामदेव का डायलाॅग बड़ा प्रसिद्ध था ‘करने से होता है’। बस यही बात नेताओं पर भी लागू होती है कि काम करने से जीता जाता है। काम न करने से जनता निपटा देती है।

हिंदुवादियों को निपटाने में लगीं
विदेशी सहयोग से देशी ताकतें

बाबा का नाम आया है तो ये धारणा बलवती हो जाती है कि हमारे देश में हिंदुवादी, राष्ट्रवादी संतों, इंसानों, संस्थाओं को विदेशी शह पर परेशान करने का प्रयास किया जाता है।
बाबा के बारे में कहा जाए तो ये सत्य प्रतीत होता है कि उन्होंने अपने व्यापार का विस्तार कर विदेशी कंपनियों को धता बता दी है। कदाचित् यही कारण है कि विदेशी कंपनियों के भारत में मौजूद एजेन्ट उनके विरूद्ध काम पर लग गये हैं

हर हिंदुस्तानी को भारत के हितचिंतक को ऐसी हिंदुवादी संस्थाओं का भरपूर सहयोग करना चाहिये। थोड़ी बहुत कमी, थोड़ी बहुत गलतियां तो हर किसी में होती हैं। इन्हें नजरअंदाज करके चलना चाहिये।

उन पर उंगली उठाने वालों की नीयत देश का अहित करके भी विदेशी कंपनियों की दलाली करना है और माल कमाना है।
हमारा सिस्टम इतना खराब है कि सरकारें कई बार चाह कर भी कुछ नहीं कर पातीं। लेकिन अब सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे। हम ये नहीं कहते कि गलत करने वाले हिंदुओं पर कार्यवाही मत करो।

पर हां यदि गलत करने वाले केवल हिंदुओं पर कार्यवाही होगी, उन्हें सताया जाएगा और गैर हिंदुओं को छूट मिलेगी तो भैया अब वे दिन हिंदुस्तान में लद गये हैं। अब हिंदुओं को सताने वाला सिस्टम अंतिम सांसे गिन रहा है।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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