राजनीति और चमचागिरी एक दूसरे के पर्याय बन गए है आजकल राजनीति में सबसे बड़ा गुण चमचागिरी का माना जाता है । जितना बड़ा चमचा नेताजी का उतना करीबी । वैसे आजकल चमचा की जगह भक्त संबोधन का भी उपयोग किया जाने लगा है । हिंदी में भले ही इसका पर्यायवाची खुशामदी, चाटुकार, चापलूस, जीहजूर, टिलवा, भट्ट, भाट, मुसाहिब है किंतु राजनीति में भक्त शब्द को चमचागिरी का पर्यायवाची माना जाने लगा है । आजकल राजनीति में हमारे नेताओ को चमचा पालने का जो चाव चढ़ा है । ये आदत उन्हें धीरे-धीरे विलासी और चापलूसी पसंद बना रही है । देखा जाय तो एक तरह से ये सही भी है आखिर अपनी ढपली का अपना राग गाने वाला भी तो कोई होना चाहिए । जिस नेता का कोई चमचा वमचा नहीं होता समझ लो वो खुद किसी न किसी का चमचा होगा और चमचा नही होगा तो राजनीति की दुकानदारी में दरी उठाते और बिछाते ही जीवन बीत रहा होगा । जितना बड़ा नेता होगा उसके घर के बाहर उतने ही ज्यादा चमचों या भक्तो की फौज खड़ी मिलेगी , जो चौबीसों घंटे सोते जागते बस अपने नेता की रामधुनी में लीन रहते हैं ।
चमचा चिपकने के साईड इफेक्ट भी है । जब नेता चमचो से घिर जाए तो फिर उनका विलासी हो जाना स्वाभाविक है और ऐसे में उनकी मिठलबरी बाते सुन सुन कर काम करने में आलस आने लगता है । तब वे निखट्टू, कामचोर, निर्लज्ज और भोंपू किस्म के बन जाते हैं, जो दिन रात अपनी कैसेट चमचों के सहारे दुनिया में बजवाते फिरते हैं ।
भैया विरोधी नेता को निपटाना है तो काहे जोड़ तोड़ फोड़ फाड़ में भिड़े हो हज़ार पांच सौ चमचे भेज दो अपोजिशन की पार्टी में बाकी के काम चमचासुर कर लेगा । वैसे चमचे यह जानते है कि उनका उपयोग मतलब के चलते डिस्पोजल की तरह किया जा रहा है फिर भी वे अपनी चमचागिरी की दुकान चलाते अपना उल्लू सीधा कर ही लेते है वही असल चमचे है । अब जिधर देखो चमचो का राज हो चला है ,क्या करें चमचो का जमाना जो है ।
चलते चलते दो सवाल :-
(1) कौन सा विभाग है जहां काम पहले निविदा बाद में का सूत्र वाक्य अपनाया जाता है ?
(2) चिल्फी बैरियर में लठैत किसके सरकारी या वसुलीबाज अफसर के ?
और अंत में :-
सुनते है वफादार बहुत होते है कुत्ते ,
दुम उनसे कही ज्यादा हिला सकते है चमचे।
गिरगिट से ये पूछा कि तेरे रंग है कितने ,
बोला कि सही गिनती बता सकते है चमचे ।।
#जय_हो 10 अक्टूबर 2024 कवर्धा (छत्तीसगढ़)