जिस के लिये राहुल ने फटा कुर्ता दिखाया
आज कोर्ट ने उस बात को सही ठहराया
छह साल पहले 2016 में 8 नवंबर की ‘दो नंबरियों’ के लिये वो खौफनाक रात थी जब आठ बजे प्रधानमंत्री ने हजार और पांच सौ के नोटों को ‘इल्लीगल’ घोषित कर दिया था। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि रात 12 बजे के बाद ये नोट नहीं चलेंगे। उनकी इस घोषणा से उन लोगों की धड़कनें चलने में अटक आने लगी जिनके पास इफरात दो नंबर का पैसा था। क्योंकि पुराने नोटों को नये नोटों से बदलने का प्रोग्राम रखा गया था। अब जो अपने पुराने नोट बैंक जाकर बदलता या खाते में जमा करता उसे बाद में बताना भी तो पड़ता न कि वो पुराने कहां से आए थे।
सब जानते हैं कि देश में ऐसे नगण्य हांेगे जिनके पास पूरा पैसा एक नंबर का होगा। कहीं न कहीं टैक्स पटाने के लिये सारी आबादी कुछ न कुछ पेंच डालकर ही चलती है। क्योंकि टैक्स देना एक सरकारी जुल्म लगता है। और जैसे-जैसे टैक्स बचाने के प्रयास होते हैं वैसे-वैसे कालाधन उत्पन्न होता है। ऐसे में कुछ ही दिनों में मार्केट से पैसा गायब हो गया। एक व्यक्ति को लंबी लाईन में लगकर केवल चार हजार मिलते। कई लोगों की लाईन में लगे-लगे मौत हो गयी ऐसी खबरें भी आईं।
ऐसे में राहुल गांधी भी बहती गंगा में हाथ धोने के मकसद से एक बार लाईन में लगे और फिर कुर्ते की जेब में हाथ डालकर अपनी फटी जेब दिखाकर फोटो खिंचाई। हालांकि इस एक्शन से देश ने उनकी नौटंकी पर उनका माखौल उड़ाया। राहुल गांधी उतने ही बड़े गरीब हैं जितने बड़े वे हिंदु हैं। तो न अब हिंदु-हिंदु बोलने पर देश उन्हें गंभीरता से लेता रहा है और न तब गरीबी के प्रदर्शन पर उन्हें गंभीरता से लिया था। बहरहाल विपक्ष को ढिंढोरा पीटना था। पीटा। जोरदार पीटा। लेकिन आम आदमी तकलीफों के बाद भी न जाने क्यों मोदी का भक्त बना रहा। आम आदमी को अपनी तकलीफ से ज्यादा खुशी बड़ें लोगों के चेहरों पर उड़ती हवाईयों से मिल रही थी। लोग काले धन पर किये इस अटैक से भारी प्रसन्न थे। परन्तु नाखुश लोगों को ये सही नहीं लगा लिहाजा उन्होंने इस मामले को न्यायालय में खींचा।
58 याचिकाएं माननीय सर्वोच्च न्यायालय मे ंदाखिल की गयीं जिन पर 2 जनवरी को फैसला आया। इसमें सुनावाई के बाद माननीय न्यायालय ने सारी याचिकाओं को खारिज कर दिया।
लुब्बोलुआब ये कि देश को ये पता है कि कोई कदम केंद्र सरकार का सही या गलत पड सकता है लेकिन कंेद्र सरकार की नीयत में साफ देशभक्ति है और आम आदमी का जीवन कैसे सरल और संपन्न किया जा सके ये सोच है। ये बात सच है कि तब से जो व्यापार बैठा है तो फिर उठ नहीं सका। हालांकि तमाम परेशानियों और बढ़ते कर्जों के बीच मध्यम वर्ग ने बड़ी तकलीफों का सामना किया लेेकिन इस पूरे दौर के मजे भी देश ने लिये।
लुब्बोलुआब ये कि देश को ये पता है कि कोई कदम केंद्र सरकार का सही या गलत पड सकता है लेकिन कंेद्र सरकार की नीयत में साफ देशभक्ति है और आम आदमी का जीवन कैसे सरल और संपन्न किया जा सके ये सोच है। ये बात सच है कि तब से जो व्यापार बैठा है तो फिर उठ नहीं सका। हालांकि तमाम परेशानियों और बढ़ते कर्जों के बीच मध्यम वर्ग ने बड़ी तकलीफों का सामना किया लेेकिन इस पूरे दौर के मजे भी देश ने लिये।
शो कर सकने लायक पैसा बैंक में जमा किया जाता। यदि किसी के खाते में इतना पैसा जमा हो जाता कि वो उसे एक नंबर में साबित न कर सके तो उसे जेल की सलाखें नजर आने लगतीं। ऐसे माहौल में एक पति ने अपनी पत्नी को फंसाने के लिये बैंक जाकर मैनेजर को छह लाख दिये और अपनी पत्नी के खाते में जमा करने को कहा। ताकि वो डेढ़ लाख के उपर के साढ़े चार लाख का विवरण न दे पाए और पकड़ी जाए। तब मैनेजर ने उससे कहा कि आप थोड़ा लेट हो गये सुबह ही आपकी पत्नी ने आपके खाते में आठ लाख रूप्ये जमा करा दिये हैं।
इस बात पर भी ढेरों मजाक चलते रहे कि कई करोड़पति नयी करेंसी न होने के कारण बाजार से बीस रूप्ये का समोसा खरीदने के लिये तरस गये। निश्चित रूप् से ये देश के इतिहास में एक क्रांतिकारी कदम था।