संसद में मोदी ने जो हुंकार लगाई तो विपक्ष चारों खाने चित्त हो गया… अंदर से….; और भाजपा के अन्य नेताआंे ने जो दलीलें दीं राहुल गांधी और उनके परिवार पर जो पुराने भ्रष्टाचार के जो-जो आरोप उजागर किये, उससे विपक्ष दहल गया…. अंदर से… । हालांकि बाहर से तो अपना आत्मविश्वास दिखाना जरूरी होता है इसलिये विपक्ष जोर लगाता रहा… लगातार नारे लगाता रहा और मोदी-अडानी भाई-भाई के नारों से संसद भवन गूंजता रहा। इसी शोरगुल में मोदीजी का भाषण चलता रहा। लेकिन इसमें कोई दो मत नहीं कि मोदीजी ने अकेले ही सारे विपक्ष का दम निकाल दिया। साथ ही जता भी दिया और बता भी दिया कि उनके लिये मोदी अकेला ही काफी है…. भारी है। देश ने भी इस पूरे एपिसोड में मोदीजी को गंभीरता से सुना और निश्चित रूप् से मोदीजी के नंबरों में कोई कमी नहीं आई। हालांकि एक सर्वे के हिसाब से भारत यात्रा के बाद रागा के नंबर बढ़े हैं। फिर भी मोदी का मुकाबला नहीं… ।
यहां बात निकली है तो बता दें कि बंगाल में चुनाव के समय एक बार ऐसा हुआ कि मोदीजी की सभा थी और भीड़ के रैले के रैले आते जा रहे थे। व्यवस्था चरमरा रही थी। मोदीजी की बार-बार अपील के बावजूद भीड़ आउट आॅफ कंट्रोल हो रही थी। आलम ये था कि आयोजकों की नाक में दम हो गया था। पुलिस की सांस फूल गयी थी। तब मजबूरन मोदीजी को अपना भाषण शाॅर्ट में निपटाना पड़ा और समय से पहले सभा विसर्जित करनी पड़ी। ऐसा शायद इतिहास में पहली बार हुआ हो।
इसी तरह का अद्भुत वाकया हैदराबाद में 2013 में हुआ था जब मोदीजी को सुनने के लिये लोगों ने पांच-पांच रूप्ये की टिकट ली थी। जी हां सही पढ़ा आपने। सुनने वालों को पैसे देकर बुलाया जाना तो हमेशा सुनते हंै, यहां तो सुनने के लिये लोगों ने पैसे दिये। कहते हैं यहां मोदीजी ने इतिहास बना डाला था।
जुर्माना लगा है
बेचारे अधिकारी, कैसे भरेंगे जुर्माना
छह माह पूरे हो गये। मामला वहीं का वहीं है। जमीन के मामलों में निपटाने में तहसीलदारों की मनमानी का कोई सानी नहीं है। लोकसेवा अधिनियम के तहत् ऐसे मामलों को 3 महीनों में निपटाने का नियम है लेकिन आराम-आराम से काम करने के आदि सरकारी लोग जनता के सामने अपना कद दर्शाने में कहीं कमी नहीं करते और मनमाना समय लेते हैं। छह महीने से लेकर डेढ़ साल तक के उदाहरण मिल जाएंगे। कभी-कभी समय सीमा की बैठक में कलेक्टर साहब नाराजगी भी दिखाते हैं। कलेक्टर साहब के नाराज होने से तहसीलदारों के हाथ-पांव कांपने लगते हैं। कलेक्टर साहब सजा ही ऐसी देते हैं। पूरे एक हजार का जुर्माना। जी हां पूरे एक हजार। आखिर डरेंगे नहीं क्या तहसील के राजा। एक हजार के जुर्माने से उनकी सात पीढ़ियां कांपने लग गयीं। हजार रूप्ये भरना पड़ जाएगा मेरे प्रदेश के अधिकारियों को तो क्या भूखे नहीं मर जाएंगे ? बेचारे गरीब अधिकारी… ? कलेक्टर साहब ये आपका जुल्म है। इतना जुर्माना इतना मेरे प्रदेश का अधिकारी कहां भर पाएगा… ? कृप्या इसे कम करें और पांच से दस रूप्ये करें, जो ये दे पाएं।
केंद्र का पैसा अफसरों के घरों मे…
मति मारी गयी है इन भाजपा प्रवक्ताओं की जो कहते हैं कि केन्द्र सरकार करोड़ों रूप्ये देती है प्रदेश के विकास के लिये, जो विकास में तो खर्च होता नहीं बल्कि कांग्रेस के खास अफसरों के घरों से निकलता है। भाजपा के मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी ने पिछले दिनों अपने बयान में कहा कि केन्द्र सरकार ने विभिन्न मदों में एक लाख 70 हजार करोड़ रूप्ये पिछले वर्षों में राज्य को दिये हैं। जबकि मनमोहन सरकार ने केवल 85 हजार करोड़ दिये थे वो भी पूरे दस सालों में। हालांकि बात इनकी सही है तो उनकी भी यानि कांग्रेस नेता की भी सही है। कांग्रेस नेता ने केन्द्र को उलाहना देते हुए कहा कि धान खरीदी में राज्य सरकार ने अपने दम पर रिकाॅर्ड बनाया है। केन्द्र ने कोई मदद नहीं की है। यानि अपनी ढपली अपना राग।
अब देखिये जरा एक तरफ अफसर करोड़ों रूप्यों का फटका लगा रहे हैं। दूसरी तरफ कलेक्टर साहब उन पर एक हजार का जुर्माना लगाकर अपनी काॅलर उंची करने पर तुले हैं। जिन सीएमओ साहब को पिछले महीने मंत्री शिव डहरिया ने सस्पेण्ड कर दिया था, उन्हें भी बचाने की वहां के कलेक्टर ने काफी कोशिश की थी। हां क्यों नहीं भाई… भाईचारा तो होगा ही छत्तीसगढ़ को चरने में…
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
mo. 9522170700