लगता है कि मोदी ने इन विरोधियों के लिए हैरान होने के सिवा और कोई काम छोड़ा ही नहीं है। लीजिए, बेचारे एक बार फिर हैरान होकर दिखा रहे हैं। अब ये हैरान हैं कि कुश्ती के ओलम्पिक खिलाड़ी, दिल्ली पुलिस के हाथों पिट गए। किसी के कपड़े, तो किसी का सिर फटा। कहते हैं कि ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था। पर मोदी जी ने तो शुरू में ही कह दिया था कि जो सत्तर साल में नहीं हुआ, सो होगा। जो कहा, सो ही कर रहे हैं, फिर शिकायत क्यों?
पर मजाल है कि विपक्षी, मोदी जी-शाह जी की जोड़ी को, सत्तर साल में महिला पहलवानों को पहली बार पिटवाने का क्रेडिट भी देेने को तैयार हों। उल्टी दलील दे रहे हैं कि पहले कभी पदक विजेता महिला पहलवानों को कुश्ती फैडरेशन के अध्यक्ष की बदसलूकी की शिकायत भी तो नहीं करनी पड़ी थी। शिकायत करनी भी पड़ी हो, तुरत-फुरत निपटा दी गयी होगी, उसके बाद जंतर-मंतर पर धरना नहीं देना पड़ा था। और जब धरना ही नहीं देना पड़ा था, तो पुलिस के हाथों कैसे पिटते? यानी जो नया हुआ है, उसका भी श्रेय ये विरोधी, मोदी जी को देने राजी नहीं हैं। पर पता है, इस क्रोनोलॉजी में असली चीज मिसिंग है। मिसिंग है सब का कर्ता — जो केवल एक है। ब्रजभूषण जी को कुश्ती संघ का अध्यक्ष बनवाया किस ने? महिला पहलवानों की शिकायतों को ठंडे बस्ते मेें डलवाया किस ने? न कुश्ती संघ से इस्तीफा, न गिरफ्तारी, साफ बचाया किस ने? एक जो कर्ता है, उसने सब किया, तब ना पहलवानों ने जंतर-मंतर पर डेरा जमाया! तब ना पुलिस को गुस्सा आया। पुलिस ने लट्ठ बजाया, तभी तो सत्तर साल में जो नहीं हुआ था, वह करने का रिकार्ड बन पाया।
फिर मोदी जी के राज के नाम, पदक विजेता महिला पहलवानों के सिर पर लट्ठ बजवाने का ही नया रिकार्ड थोड़े ही है। ‘‘बजरंग बली’’ के जैकारे की गदा से कर्नाटक में 40 परसेंट कमीशन की सरकार बनवाने की आस लगाने, प्रैस की स्वतंत्रता के सूचकांक में भारत को 180 देशों में 161वें नंबर पर पहुंचाने आदि, आदि के और बेशुमार रिकार्ड उनके ही नाम हैं। इत्ते सारे नये रिकार्ड बनाए हैं कि काल का ही नाम बदलकर अमृतकाल रखना पड़ गया है।