क्यों विफल हुई कांग्रेस
एक कवि सम्मेलन में एक कवि ने एक चुटकुला सुनाया। उसका एक हिस्सा कुछ इस तरह है कि भाई ये पाकिस्तान को कैसे निपटाया जाए ? जवाब-पाकिस्तान को निपटाने के लिये राहुल गांधी को वहां भेज दो… सवाल-राहुल गांधी को ? वो क्या कर लेंगे ? जवाब-अरे भाई जिसने 140 साल पुरानी कांग्रेस को निपटा दिया वो भला पाकिस्तान को नहीं निपटा पाएगा…
मजाक तो मजाक है। लेकिन मजाक भी जीवन के यथार्थ से निकल कर आता है। बात राहुल गांधी की करें या कांग्रेस की, दोनों बात एक ही है। जो गांधी चाहते हैं वो कांग्रेस में होता है।
इस दयनीय अवस्था में आकर भी गांधी के बिना कांग्रेस का अस्तित्व कहीं नज़र नहीं आता।
क्यों विफल हुई
इंदिरा गांधी के निधन के बाद जो जीत राजीव गांधी को मिली, वो अपने आप में इतिहास है। न भूतो…. लगभग असंभव भविष्यति… ।
आज मोदीजी 400 पार का नारा देते हैं तो ये यकीन और ये आत्मविश्वास भी उन्हें कांग्रेस ने ही दिया है।
अनायास ही 414 सीटांे से देश में राज करने वाली आज 40 सीटों के लिये मशक्कत कर रही है तो निश्चित ही उसकी बड़ी नाकामी है। 2014 में 44 पर और आज 52 पर सिमट कर रह गयी।
हिंदु है या नहीं है
ये तय नहीं कर पाई
कांग्रेस की सबसे बड़ी दुविधा ये है कि वो वोटर्स के बीच मे ये तय नहीं कर पाई कि वो हिंदु है या हिंदु नहीं है।
कभी तो हिंदु दिखाने का ड्रामा करती तो कभी हिंदुओं को दुत्कार कर मुसलमानों की खैरख्वाह बनने का।
याद कीजिये मोदीजी एक मुस्लिम मंच पर गये थे वहां उन्हें टोपी पहनाने का प्रयास किया गया तो उन्होंने मंच पर ही सार्वजनिक रूप् से इन्कार कर दिया।
इससे क्या संदेश गया ?
इससे ये संदेश गया कि मोदीजी हिंदु हैं और मुसलिम परम्पराओं को नहीं मानते। थोड़ी भत्र्सना भी हुई,
मगर मोदीजी ने एकाएक हिंदुओं को ध्यान आकर्षित कर लिया। वे हिंदुओं को जोड़ने में सफल होते चले गये।
शिव के भक्त का
राम से घोर विरोध
हिंदुओं को पचा नहीं
राहुल गांधी का शर्ट के उपर जनेउ धारण करना, तिलक लगाना और अपना गोत्र दूसरे से पूछकर बताना ये बचकानी हरकतें उन्हें हिंदुओ से जोड़ने मे नाकाम रहीं बल्कि वे हंसी के पात्र जरूर बन गये।
सबसे ज्यादा ठेस हिंदुओं को तब लगी जब उन्होंने और उनके भक्तों ने उन्हें परम् शिवभक्त बताने का प्रयास किया।
एक बार एक कांग्रेसी नेता ने कांग्रेस कार्यालय को भगवा रंग से रंगवा दिया। और गर्जना की कि धर्म पर किसी का एकाधिकार नहीं है, जितने हिंदु आप हैं उतने हम भी हैं। लेकिन दूसरी ओर लगातार मुसलमानों को अपना बनाने के प्रयास में कांग्रेस हिंदु हितों पर कुठाराघात करती चली गयी।
राम मंदिर के विरोध में कोर्ट में खड़े होना, राम को केवल कल्पना बताना, राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा में न जाना ये सब क्या दर्शाता है ?
गांधी के ईगो ने
पुराने रूठे साथियों को
मनाना जरूरी नहीं समझा
कांग्रेस राम के विरोध में है इसलिये कांग्रेस छोड़ी, हिंदुत्व विरोधी है कांग्रेस, रास नहीं आई, सनातन को खत्म करना चाहती है इसलिये कांग्रेस छोड़ी, हम अपमानित होते थे इसलिये कांग्रेस छोड़ी। कांगे्रस को डूबता देखकर ऐसे कई तर्क देकर कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़ते चले गये और योग्यतानुसार भाजपा ने उन्हें लपक लिया।
भाजपा उन तमाम लोगों के लिये सशक्त विकल्प के रूप् में उभर कर आई जो अंदर ही अंदर कांग्रेस आलाकमान के आगे सर झुकाकर खड़े रहने से आहत होते रहते थे।
जिनसे अधिक महत्व कांग्रेस हाईकमान के कुत्ते को मिलता था। सभी को तत्काल भाजपा ने हाथोंहाथ लिया।
नतीजा भाजपा मजबूत होती गयी और कांगे्रस कमजोर… ।
उंगलियों के इशारे पर नाचते दरबारियों से घिरा गंाधी परिवार इस परिवर्तन को समझ ही नहीं पाया।
कांग्रेस के पांच दशकों पर भारी
भाजपा के दस वर्ष
भाजपा ने मोदीजी के नाम से लंबी छलांगें लगाईं और आश्चर्यजनक रूप् से सफल होती गयी। धर्म, सामाजिक न्याय, सुधार, जनता की आवश्यकताओं को गंभीरता से समझना, दूसरी ओर बड़े राष्ट्रवाद के मुद्दे एक-एक कर भाजपा ने निपटाने शुरू किये तो कांग्रेस से उखड़ा आम अवाम खासतौर पर हिंदु आश्चर्य चकित होकर सुकून में नजर आने लगे।
कांगे्रस सिर्फ सरकार के कामों पर तल्ख विरोधी प्रतिक्रिया देती रही।
सही है कि विपक्ष का काम ही यही है। पर यहां दांव उल्टा पड़ता गया।
भाजपा काम की घोषणा करती, कांग्रेस मजाक उड़ाती, फिर भाजपा काम पूरा करके दिखाती और कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ती। उदाहरण के लिये राममंदिर बनाने के मामले में विपक्ष भाजपा पर कटाक्ष करता था कि मंदिर वहीं बनाएंगे पर तारीख नहीं बताएंगे।
और जब मंदिर बन गया तो बोलती बंद हो गयी।
दूसरी मात खाई कांगे्रस ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाकर। कांग्रेस असमंजस मंे रही। बोली इनका मंदिर में कोई योगदान नहीं ये तो कोर्ट के आॅर्डर से बन रहा है।
जब भाजपा का कोई योगदान नहीं है तो ताना भाजपा को क्यों मारते थे ?
फिर समारोह में न जाकर मुसलमान वोटर्स को यकीन दिलाने की कोशिश की कि वो उनके लिये हिंदुओं को आहत करने से पीछे नहीं हटने वाली।
ऐसी नासमझी भरी उछलकूद से कितना मुसलमानों को जीत पाई ये जल्द ही पता चल जाएगा।
मोदीजी घोषणा कर-कर के गर्जना के साथ काम करते रहे। न थके, न झुके, न झुंझलाए। धर्म का काम किया, पूरे देश से आतंकवाद का सफाया कर दिया, विदेशों में छाप छोड़ी और सुरक्षा की तो क्या बात करें।
यूपी जैसे टोटली क्रिमिनल स्टेट में अमन चैन स्थापित कर दिया। छोटे से लेकर बड़े तक हर गुण्डे बदमाश के मन में कानून का भय और आम आदमी के मन में सुरक्षा का भाव पैदा कर सारे देश के आम आदमी का मन जीत लिया।
मजाक तो मजाक है। लेकिन मजाक भी जीवन के यथार्थ से निकल कर आता है। बात राहुल गांधी की करें या कांग्रेस की, दोनों बात एक ही है। जो गांधी चाहते हैं वो कांग्रेस में होता है।
इस दयनीय अवस्था में आकर भी गांधी के बिना कांग्रेस का अस्तित्व कहीं नज़र नहीं आता।
क्यों विफल हुई
इंदिरा गांधी के निधन के बाद जो जीत राजीव गांधी को मिली, वो अपने आप में इतिहास है। न भूतो…. लगभग असंभव भविष्यति… ।
आज मोदीजी 400 पार का नारा देते हैं तो ये यकीन और ये आत्मविश्वास भी उन्हें कांग्रेस ने ही दिया है।
अनायास ही 414 सीटांे से देश में राज करने वाली आज 40 सीटों के लिये मशक्कत कर रही है तो निश्चित ही उसकी बड़ी नाकामी है। 2014 में 44 पर और आज 52 पर सिमट कर रह गयी।
हिंदु है या नहीं है
ये तय नहीं कर पाई
कांग्रेस की सबसे बड़ी दुविधा ये है कि वो वोटर्स के बीच मे ये तय नहीं कर पाई कि वो हिंदु है या हिंदु नहीं है।
कभी तो हिंदु दिखाने का ड्रामा करती तो कभी हिंदुओं को दुत्कार कर मुसलमानों की खैरख्वाह बनने का।
याद कीजिये मोदीजी एक मुस्लिम मंच पर गये थे वहां उन्हें टोपी पहनाने का प्रयास किया गया तो उन्होंने मंच पर ही सार्वजनिक रूप् से इन्कार कर दिया।
इससे क्या संदेश गया ?
इससे ये संदेश गया कि मोदीजी हिंदु हैं और मुसलिम परम्पराओं को नहीं मानते। थोड़ी भत्र्सना भी हुई,
मगर मोदीजी ने एकाएक हिंदुओं को ध्यान आकर्षित कर लिया। वे हिंदुओं को जोड़ने में सफल होते चले गये।
शिव के भक्त का
राम से घोर विरोध
हिंदुओं को पचा नहीं
राहुल गांधी का शर्ट के उपर जनेउ धारण करना, तिलक लगाना और अपना गोत्र दूसरे से पूछकर बताना ये बचकानी हरकतें उन्हें हिंदुओ से जोड़ने मे नाकाम रहीं बल्कि वे हंसी के पात्र जरूर बन गये।
सबसे ज्यादा ठेस हिंदुओं को तब लगी जब उन्होंने और उनके भक्तों ने उन्हें परम् शिवभक्त बताने का प्रयास किया।
एक बार एक कांग्रेसी नेता ने कांग्रेस कार्यालय को भगवा रंग से रंगवा दिया। और गर्जना की कि धर्म पर किसी का एकाधिकार नहीं है, जितने हिंदु आप हैं उतने हम भी हैं। लेकिन दूसरी ओर लगातार मुसलमानों को अपना बनाने के प्रयास में कांग्रेस हिंदु हितों पर कुठाराघात करती चली गयी।
राम मंदिर के विरोध में कोर्ट में खड़े होना, राम को केवल कल्पना बताना, राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा में न जाना ये सब क्या दर्शाता है ?
हो गयी।
दूसरी मात खाई कांगे्रस ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाकर। कांग्रेस असमंजस मंे रही। बोली इनका मंदिर में कोई योगदान नहीं ये तो कोर्ट के आॅर्डर से बन रहा है।
जब भाजपा का कोई योगदान नहीं है तो ताना भाजपा को क्यों मारते थे ?
फिर समारोह में न जाकर मुसलमान वोटर्स को यकीन दिलाने की कोशिश की कि वो उनके लिये हिंदुओं को आहत करने से पीछे नहीं हटने वाली।
ऐसी नासमझी भरी उछलकूद से कितना मुसलमानों को जीत पाई ये जल्द ही पता चल जाएगा।
मोदीजी घोषणा कर-कर के गर्जना के साथ काम करते रहे। न थके, न झुके, न झुंझलाए। धर्म का काम किया, पूरे देश से आतंकवाद का सफाया कर दिया, विदेशों में छाप छोड़ी और सुरक्षा की तो क्या बात करें।
यूपी जैसे टोटली क्रिमिनल स्टेट में अमन चैन स्थापित कर दिया। छोटे से लेकर बड़े तक हर गुण्डे बदमाश के मन में कानून का भय और आम आदमी के मन में सुरक्षा का भाव पैदा कर सारे देश के आम आदमी का मन जीत लिया।
गांधी नाम के बोझ तले दबी कांग्रेस
चूकती गयी, चूकती गयी,
और खुद चुक गयी
ऐसे काम कांग्रेस कर सकती थी। हजारों मौके थे। लोकसभा में अजेय थी। ताकतवर। मगर कभी जनता की नहीं सोची। केवल अपना ओर अपनों का घर भरा। कालाधन बेतहाश इकट्ठा किया जो अब धीरे-धीरे निकल रहा है और आगे तेजी से निकलेगा।
व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये जूतमपैजार करने वाली कांग्रेस अब अगर डूब रही है तो वो खुद ही जिम्मेदार है। साॅरी… कांग्रेस पार्टी नहीं, गांधी परिवार जिम्मेदार है जिसने कभी पार्टी को महत्व न देकर चाटुकारों को महत्व दिया और बदलते परिवेश में खुद को ढाल न सकी।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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