छुपाने तो दो यारो! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

मोदी जी के विरोध के चक्कर में ये विरोध वाले लगता है कि एंटीनेशनलता की सारी हदें ही पार कर के मानेंगे। बताइए! मुंबई में डबल इंजन की सरकार झुग्गी-झोंपडिय़ों को हरे-केसरिया पर्दे के पीछे छुपाने की कोशिश कर रही है, तो इन्हें इससे भी परेशानी है। कहते हैं, गरीबी को पर्दे के पीछे क्यों छुपाया जा रहा है? यह तो गरीबों को ही, जी-20 वाले मेहमानों की नजरों से छुपाने की कोशिश है। इन्हें गरीबी से नहीं, गरीब के दिखाई देने से दिक्कत है। चाहते हैं कि गरीब बस किसी तरह अदृश्य हो जाए। जहांपनाह की फोटो खराब नहीं करे, बस!

हद तो यह है कि भाई लोग इसमें भी गुजरात मॉडल ले आए हैं। कहते हैं, ट्रम्प की मोहब्बत में अहमदाबाद से शुरू हुआ दृश्य गरीब हटाओ मॉडल, मुंबई तक पहुंच गया है। जी-20 की सरदारी के एक साल में यह मॉडल देश भर में फैलाया जाएगा; जी-20 वाले मेहमानों को, ढूंढे से भी कोई गरीब नजर नहीं आएगा! पर हम पूछते हैं कि इसमें बुराई क्या है? जी-20 वाले मेहमानों को हिंदुस्तानी गरीब देखना ही क्यों है? अब मोदी जी मेहमानों की आंख पर तो पूरी तरह पट्टी बांध नहीं सकते हैं, पर गरीबों को तो पर्दे के पीछे छुपा ही सकते हैं। और क्यों न छुपाएं? माना कि देश में नेहरू जी की छोड़ी थोड़ी-बहुत गरीबी अब भी बच गयी होगी, वर्ना मोदी जी को अस्सी करोड़ के लिए मुफ्त राशन की रेवड़ी का चुनाव-दर-चुनाव एक्सटेंशन क्यों करना पड़ता; पर विदेशी मेहमानों को गरीबी क्यों दिखानी? दुनिया भर में अपनी गरीबी का मुजाहिरा क्यों करना? असल में विरोधियों की शुरू से यही प्राब्लम है। ये गरीबी दिखाना चाहते हैं। बातें करते हैं गरीबी मिटाने की और हरकतें हैं दुनिया भर को गरीबी दिखाकर देश को बदनाम करने की। रही मिटने-मिटाने की बात, तो गरीबी नजरों से हटेगी, तब ही तो किसी ताल-पोखर में पडक़र मिटेगी! छुपाना भी तो मिटाना ही है, वह भी बिना हल्दी और फिटकरी लगे!

उघाड़-उघाडक़र देश की गरीबी दिखाना तो विरोधियों का एंटीनेशनल बेशर्म रंग ही है। अमृतकाल में बेशर्म रंग किसी का नहीं चलने दिया जाएगा, न गरीबी उघाडू बेशर्म रंग और न दीपिका का टांग उघाडू बेशर्म रंग। केसरिया से दोनों को अच्छी तरह ढांप दिया जाएगा। अब ढांपने को बेशर्म रंग किसने बोला!

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