चंद शेखर शर्मा(पत्रकार)
कलफदार सफेद झक कुर्ते की चमक और राजनीति की माया किसे आकर्षित नहीं करती ? चाहे समाज सेवक हों, अभिनेता हो, बाबा हो, योगाचार्य हों या डॉक्टर ,आईएएस आईपीएस हो या फिर कवि । इसकी मारीचिका हर किसी को मोहित कर भ्रमित करती है । आखिर हो भी क्यों न ? जिसे गलती से भी एक मौका मिल गया, उसका खुद का ही नहीं सात पुश्तों तक का जीवन धन्य हो जाता है ! छत्तीसगढ़ में भी बाबा से लेकर नौकरशाह , डॉक्टर से लेकर कवि तक राजनीति की मोहमाया से आपने आप को नही बचा पाए । चुनवों के वक्त पैराशूट लैंडिंग वाले नेताओं से सालो से क्षेत्र में छट्ठी बरही शादी वगैरह में पहुँच , खर्च कर छवि बनाने वाले नेता व दरी छाप कार्यकर्ता तनिक चिंतित नजर आ रहे है । नौकरशाह और बाबा या कहें धर्मगुरु किस सेवा भाव से राजनीति में आ रहे है ये तो वो ही जाने , पर राजनीति काजल की कोठरी सरीखी है जो एक चक्रव्यूह से कम नही है । जिस तरह पुराने समय मे होने वाले युद्ध में जीत के लिए चक्रव्यूह रचे जाते थे जिनमें सात द्वार का उल्लेख था । महाभारत की कथा इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है । अब चक्रव्यूह होगा तो उसे भेदने का गुण होना आवश्यक है वरना अधूरे ज्ञान से हश्र अभिमन्यु जैसा होता है । इसी तरह राजनीति के चक्रव्यूह को भेदने के लिए भी सात विशेष गुणों छल- कपट, धन, बल, माया, बेशर्मी, भीतरघात , मौकापरस्ती और चापलूसी की आवश्यकता होती हैं , जो इन गुणों से सम्पन्न होता है, वही आज की राजनीति में सफल हो सकता है। बेदाग व सौम्य छवि वाले लोगो के राजनीति में प्रवेश को लेकर फ़िल्म चाइना गेट में जगीरा का डायलाग याद आ जाता है ..”मेरे सामने खड़े होने की हिम्मत तो जुटा लोगे पर मेरे जैसा कमीनापन कहाँ से लाओगे”…..
याद रखें ये राजनीती की चौपड़ है आपका दुश्मन जगीरा (तमाम विपक्षी विरोधी दल) है और अगर उनसे लड़ना है तो खुद के अंदर अपने दुश्मन से ज्यादा कमीनापन भरना होगा तभी राजनीति में अपना जलवा बिखेर पाओगे ।
और अंत में :-
दुकानदार तो मेले में लुट गये यारों ,
तमाशबीन दुकानें लगा के बैठ गये ।