बात बेबाक – कुर्सीनामा भाग – 16 चंद्र शेखर शर्मा (पत्रकार)

जिले की पंडरिया विधानसभा की टिकट को लेकर चल रही घुड़दौड़ के बीच सोशल मीडिया में चल रही सूची के नाम से राजनैतिक गलियारे में हड़कंप मचा हुआ है । जिसको देख आमिर खान अभिनीत फिल्म “जो जीता वही सिकंदर ” का गाना –
“नहीं समझे हैं वो हमें ,तो क्या जाता है ,
हारी बाज़ी को जीतना हमें आता हैं ।”
वर्तमान के राजनैतिक हालात पर अनायास ही जुबाँ पर आया साथ ही इस पर पैरोडी अनायास निकल पड़ी-
“नहीं समझे हैं वो जनता की भावना , तो हमारा क्या जाता है ,
जिन्हें जीती बाज़ी को हारने में मजा आता हैं ।”
जिले में टिकट की चल रही उठा पटक के बीच भाजपा पंडरिया में पिछड़ों को साध 2018 में हारी बाजी जितने की तैयारी कर रही है , हांलाकि जिले में जातिवाद का फंडा कभी सफल नही हुआ है भले ही अपनी संतुष्टि और दबाव के लिए नेता जातिगत समीकरणों में उलझ गुणा भाग लगाते रहे है । जातिगत समीकरण सटीक बैठता तो डॉ रमन , मोहम्मद अकबर या धर्मजीत कोई चुनाव नहीं जीत पाते । जिले में इनकी जात के झंडे उठाने वाले लोग काफी कम है । जातिवाद के आधार पर टिकट मांगना आजकल फैशन हो चला है । जातिवाद का जहर फैलाने वालों से एक सवाल तो पूछना बनता है कि क्या उनकी जात ने गद्दारों की कौम पैदा की है ? क्या उनकी जात के नेता जो दूसरी पार्टियों में है वो अपनी जात से या अपनी पार्टी से गद्दारी करेंगे ? नही तो फिर किस आधार पर जात की मुंडी गिना टिकट मांगते है ?
खैर वर्तमान राजनीति में जात , धर्म और झंडे इन तीनो का ही बोल बाला है और यहां बात जो जीता वही सिकंदर फ़िल्म के गाने को ले याद आई पैरोडी :-
“नहीं समझे हैं वो जनता की भावना , तो हमारा क्या जाता है ,
जिन्हें जीती बाज़ी को हारने में मजा आता हैं ।”
को लेकर चालू हुई थी जो भाजपा पर चरितार्थ होता दिख रहा है । ज्ञातव्य हो कि विगत चुनाव में ममता चन्द्राकर को टिकट मिलते ही भाजपा मुगलाते में थी कि हम चुनाव जीत गए किन्तु मिली करारी शिकस्त । पिछली बार भाजपा ने जातिवाद का झुनझुना थाम ममता को कमजोर समझ हार का मजा चखा था इस बार फिर जातिवाद का झुनझुना थाम गलती दोहराती दिख रही है । जिला पंचायत सदस्य श्रीमती भावना बोहरा 5 सालों से विधायकी के ख्वाब देखते क्षेत्र में जनसेवा व धार्मिक आयोजन के जरिये अपनी अलग पहचान बना चुकी है उनके द्वारा चलाये जा रहे निःशुल्क एम्बुलेंस , पैथोलैब , स्कूली छात्राओं के लिए कालेज तक बस सेवा , निशुल्क सिलाई मशीन , व्हील चेयर आबंटन की सर्वत्र चर्चा है जो काम बड़े बड़े नेता और उद्योगपति, समाज सेवा का ढिंढोरा पीटने वाले तथाकथित समाज सेवी नही कर पाये वो भावना ने कर दिखाया है । मरीजो तक सीधी पहुंच का अकबर फार्मूला अपना रही भावना पंडरिया के टिकट वितरण में जातिवाद के भंवर जाल में उलझती दिख रही है ।
सोशल मीडिया की खबरो को सच माने तो पूर्व गौसेवा आयोग के अध्यक्ष की टिकट लगभग फाइनल मानी जा रही है जिसके पीछे संघ का दबाव हावी होना बताया जा रहा है अब यह कितना सच है यह तो टिकट बांटने वाले जाने किन्तु पूर्व गौसेवा आयोग के अध्यक्ष के विगत सालों के राजनैतिक सफर के कोई उल्लेखनिय सफरनामा नज़र नही आता है ना इन विगत के वर्षों में वे जनता के बीच चहते नेता बन पाए ऐसे में टिकट मिलने पर विरोध के स्वर उठना स्वाभाविक भी है । पंडरिया क्षेत्र में जनता के बीच भाजपा से कोई नाम सामने आया है तो वो समाजसेवा और सुनियोजित तरीके से राजनीति कर रही भावना का आया है । जनता के बीच चर्चा में चल रहे नाम को नकारना भाजपा को भारी भी पड़ सकता है । हांलाकि जनता और कार्यकर्ता भावना पर निर्दलीय लड़ने का दबाव जरूर बना रही है किंतु भावना जनता व कार्यकर्ताओं की मांग का आदर करते निर्दलीय मैदान में उतरती है या पार्टी के आदेश को सरमाथे पर ले अनुशासित रह भाजपा के लिए काम करती है यह तो आने वाला समय बताएगा फिलहाल , संगठन की बेरुखी जिला पंचायत में उपाध्यक्ष की लड़ाई में अपनों से धोखा खाने के बावजूद जिले की राजनीति में अपने नाम का डंका बजाने वाली लड़की जातिवाद के भंवर से लड़ टिकट ला पाती है या नही समय के गर्भ में है ।
और अंत में :-
गम तो ये है , मेरे खरे पन का ,
खोटे सिक्को ने , इम्तिहान लिया ।
#जय_हो 08अक्टूबर23 कवर्धा (छत्तीसगढ़)

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