लीजिए, अब ये क्रिसिल वाले भी महंगाई का राग अलापने लगे। अरे ऋण रेटिंग एजेंसी हो, अपने काम से काम रखो ना भाई। किसी की ऋण रेटिंग बढ़ाओ, किसी की घटाओ, पब्लिक की बला से। उसे न ऋण मिलना है, न किसी रेटिंग की जरूरत पड़नी है। पर ये क्या कि महंगाई-महंगाई राग अलापने लगे। और वह भी पब्लिक की खाने-पीने की चीजों की महंगाई का राग। कह रहे हैं कि पिछले महीने शाकाहारी थाली की कीमत पूरे 34 फीसद बढ़ गयी है। यानी पब्लिक महीने भर पहले खाने पर जितना खर्च कर रही थी, उससे 34 फीसद ज्यादा पैसा जुटाए या फिर अपना खाना ही एक-तिहाई घटाए। यानी पहले तीन रोटी खाती हो, तो अब दो रोटी में ही काम चलाए! और बाकी सब भी उसी हिसाब से घटाती जाए।
कमाल ये है कि उसी क्रिसिल के हिसाब से मांसाहारी थाली की कीमत भी बढ़ी जरूर है, लेकिन शाकाहारी थाली के मुकाबले काफी कम। शाकाहारी थाली की कीमत में 34 फीसद बढ़ोतरी के मुकाबले, मांसाहारी थाली की कीमत 13 फीसद ही बढ़ी है। हम पूछते हैं कि क्रिसिल वालों के यह बताने का क्या मतलब है? क्रिसिल वाले क्या यह कहना चाहते हैं कि मोदी जी की सरकार मांसाहारियों पर ज्यादा मेहरबान है? क्या वे मोदी सरकार पर मांसाहार को बढ़ावा देने की तोहमत लगाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं? वर्ना अलग से इसका आंकड़ा देने का क्या मतलब है कि शाकाहारी थाली की कीमत, मांसाहारी थाली की कीमत से ज्यादा बढ़ी है!
इस तरह के थाली-भेद को बढ़ावा देने वाला आंकड़ा ही नहीं, हम तो कहते हैं कि कोई भी आंकड़ा देने का मतलब ही क्या है? अगर बहस के लिए यह भी मान लिया जाए कि खाने की थाली महंगी हो गयी है, तब भी उसका आंकड़ा बताने से क्या हासिल है? आंकड़ा बताने से क्या पब्लिक की तकलीफ कम हो जाएगी? उल्टे आंकड़ों से तो लोगों की तकलीफ ही बढ़ जाती है। जिन्हें पहले नहीं पता चला था, उन्हें भी पता चल जाता है कि उनकी थाली महंगी हो गयी है। और तो और, जिन्हें कभी थाली भर खाने नसीब नहीं होता है, वे भी थाली के महंगी हो जाने का शोर मचाने लगते हैं। ऊपर से शाकाहारी और मांसाहारी का झगड़ा और कि किसे बढ़ावा दे दिया, किस को हतोत्साहित कर दिया। इसीलिए तो मोदी जी की सरकार, आंकड़ों का चक्कर ही निपटाने में लगी है। न रहेंगे आंकड़े और न होगी इसकी कांय-कांय कि यह लुढ़क गया, वह गिर गया। और जो कोई बाहर वाला आंकड़े बताने की कोशिश करेगा, तो उसका हाथ के हाथ खंडन कर दिया जाएगा। फिर चाहे वह भूख में दुनिया के 121 देशों में अमृतकाल वाले भारत के 107वें नंबर पर होने का ही आंकड़ा क्यों न हो!
खैर, क्रिसिल वालों के ‘‘रोटी-राइस रेट’’ का मामला तो मोदी जी की सरकार को बदनाम करने के षडयंत्र का ही मामला लगता है। षड़यंत्र भी लोकल नहीं, ग्लोबल। क्रिसिल के नाम में इंडिया होने से क्या हुआ, अमरीकी स्टेंडर्ड एंड पुअर से उसका कनेक्शन भी तो है। अगर यह षड़यंत्र नहीं, तो और क्या है कि शाकाहारी थाली 34 फीसद महंगी होने की हैडलाइन बनवायी जा रही है, जबकि रिपोर्ट में अंदर यह माना जा रहा है कि इसमें से 25 फीसद बढ़ोतरी, सिर्फ टमाटर के दाम बढऩे से आयी है। यानी टमाटर को निकाल दें, तो शाकाहारी थाली में सिर्फ 9 फीसद बढ़ोतरी हुई है यानी मांसाहारी थाली से भी 4 फीसद कम! क्या क्रिसिल वालों को पता नहीं है कि सरकार ने पहले ही टमाटर को फल घोषित कर दिया है! और फल के दाम को पब्लिक की खाने की थाली में कौन जोड़ता है जी! क्रिसिल वालों को अगर पहले टमाटर के फल घोषित किए जाने का पता नहीं भी था, तो रिपोर्ट जारी करते समय तो यह अस्वीकरण जोड़ सकते थे। टमाटर का विकास कर मोदी जी ने उसे फल बना दिया, पर भारतविरोधी षड़यंत्र करने वाले अब भी उसे सब्जी-भाजी में ही जोड़ने पर तुले हैं।