जगदलपुर 16 अक्टूबर 2024/ मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने पुरखती कागजात पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण का विमोचन मुरिया दरबार कार्यक्रम में किए। बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के माध्यम से आदिवासी परम्परा, रीति-रिवाज, सांस्कृतिक विविधता एवं ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित तथा संवर्धित करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी तारतम्य में बस्तर संभाग अन्तर्गत देवी देवताओं की शक्तिशाली वाचिक परम्परा, इतिहास एवं उत्पति के बारे में गांव-गांव से गुनिया-बैगा, सिरहा, माटी पुजारी-पेरमा, मांझी, गांयता, पटेल से विस्तृत चर्चा करते हुये जानकारी संकलित कर आनेवाली पीढियों को अपने देवी-देवताओं की सेवा परम्परा से अवगत कराने के लिए ’पुरखती कागजात’ नामक पुस्तक तैयार किया गया। मुख्यमंत्री श्री साय ने पुस्तक के प्रकाशन पर प्राधिकरण को बधाई दी। कार्यक्रम में उपस्थित वन मंत्री श्री केदार कश्यप, सांसद बस्तर श्री महेश कश्यप, सांसद कांकेर श्री भोजराज नाग, बस्तर विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष एवं कोंडागांव विधायक सुश्री लता उसेंडी, विधायक श्री किरण देव, चित्रकोट विधायक श्री विनायक गोयल ने भी पुस्तक की सराहना की।
ज्ञात हो कि सामाजिक, सांस्कृतिक से परिपूर्ण बस्तर के देवी, देवता जागृत रूप में स्थित है। बस्तर के विविध जनजातियों को पृथक भौगोलिक निवास क्षेत्र हैं। बस्तर वासी अपनी पारम्परिक प्राचीन मान्यताओं के अनुसार साम्य देव और कुल देवी-देवताओं को पूजते हैं। कुछ कुटुम्बा स्तर पर, कुछ ग्राम स्तर पर, कुछ ग्राम समूहों में और कुछ परगना स्तर पर महत्व रखते हैं तथा कुछ देवी-देवता सम्पूर्ण बस्तर क्षेत्र में आराध्य हैं। बस्तर के धार्मिक संस्कारों में देवी-देवताओं के वंशज या परिवारों का विस्तार सदियों से होता आ रहा है और उनके वंशज या परिवार गाँव-गाँव में स्थापित है। बस्तर में देवी-देवताओं के नाम, लोक मान्यता और लोक विश्वास की परम्परा अद्भुत और सदियों पुरानी है। सेवा विधि भी अत्यन्त रोचक और ठेठ आदिम है। सदियों पूर्व इसके नियम बने हुए है कि किस देवता की सेवा किस कामना के लिए की जाए और कौन से देवता किस मनोकामना को पूर्ण करते हैं।
बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के अन्तर्गत बस्तर संभाग में आदिवासी आस्था के केन्द्र, मातागुड़ी, देवगुड़ी, सेवा-अर्जी स्थल आदि कुल 7055 स्थलों को चिन्हित किया गया है, यथा मातागुड़ियों में माँ दन्तेश्वरी, शीतलादई, कोला कासमीन, गांवदई, बंगेडोकरी, जलनदई, तुलमुते, कानीबूड़ी, आनामुण्डा, चिकलादई, पीरनता माता, बावड़ी मातागुडी, शीतलादई, चमलदई, समरैया आदि तथा देवगुड़ियों में गुमोरुगाल, इर्सहूंगा, चुडइंगा कुपेर, भीमाराज पेन, नंदराज पेन, हूंगा, वेला, बूम उसेण्डी, इंगल माइको, पालबोमड़ा, विज्जा मण्डा, फोतालगुडी, बरें हिड़मा दादी, हुर्रा मोरला दादो, हांदल कोसा, वूम हिर्रा, हिडमाराज, कोण्डराज, कर्रेओड आदि के साथ ही गोटूल और प्राचीन मृतक स्मारकों के नाम ’भुंईयां’ के माध्यम से खसरा के कैफियत कालम में दर्ज कर कुल 26000 हे. (7000 एकड़) भूमि बस्तर संभाग में संरक्षित किया गया है। उक्त स्थलों को अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 के अन्तर्गत धारा 3 (1) (ठ) के तहत् ग्राम सभा को सामुदायिक वनाधिकार पत्र जारी करके संरक्षित किया गया है।
प्राधिकरण द्वारा ’पुरखती कागजात’ पुस्तिका बस्तर अंचल के देवी-देवताओं, मान्यताओं के प्रति एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करेगी, साथ ही देवगुड़ियों, आदिवासी धर्मस्थलों, सामुदायिक सेवा-अर्जी स्थलों का दस्तावेजीकरण होने से बस्तर को एक अलग पहचान मिलेगी। इसी क्रम में बस्तर तथा युवाओं द्वारा इस पुरखती कागजात का अंग्रेजी अनुवाद की मांग के आधार पर ष्पुरखती कागजातष् का अंग्रेजी में अनुवाद कर विश्व स्तर पर बस्तर की सांस्कृतिक विविधता एवं ऐतिहासिक विरासत को अलग पहचान प्रदान करने का प्रयास किया गया है।