
निकट भूतकाल का जायजा लें तो समझ में आएगा कि किसी भी राज्य की लोकल पार्टी जो भाजपा के विरोध में है, कांग्रेस उसके साथ गलबहियां किये हुए है। जी हां ‘कांग्रेस ने’ गलबहियां की हुई हैं।
जबकि लोकल पार्टी थोड़ी एंेठन में है और उसका रूख कांग्रेस के प्रति थोड़ा उपेक्षा वाला ही है। लोकल पार्टी के भाव कांग्रेस के सामने बढ़े हुए झलकते रहे हैं।
तात्पर्य यह कि हालांकि कांग्रेस देश के हर राज्य में है यानि सबसे बड़ी पार्टी है, बावजूद इसके कई राज्यों में कांग्रेस वहां के स्थानीय दलों से भी कमजोर स्थिति में दिखने लगी है।
और आज की स्थिति में कांग्रेस से गलबहियंा करना, स्थानीय दलों को कांग्रेस का ‘गले पड़ने’ जैसा लग रहा है।
अन्य दलों की
कांग्रेस से दूरी
वर्तमान में कोई कांग्रेस का साथी कांग्रेस को पसंद नहीं कर रहा है। यहां तक कि एक समय में इण्डिया गठबंधन के सरताज बने राहुल गांधी अब गठबंधन के सदस्यों की आंख की किरकिरी बने हुए हैं।
पहले तो ममता बैनर्जी ने बगावत कर खुद ही खुद को प्रोमोट किया कि वे गठबंधन की कमान संभालने को तैयार हैं
यानि स्पष्ट तौर पर संदेश दिया कि राहुल को हटाओ और फिर सारे अन्य घटकों ने भी एक-एक कर कांग्रेस से किनारा करना शुरू कर दिया। सब कांग्रेस से छिटकने लगे।
नसमझी और अकड़
घटी साथियों पर पकड़
मोटे तौर पर देखें तो एक तो राहुल गांधी का बार-बार सियासी हलचल से दूर चले जाना यानि ऐन चुनावों के समय या हारने के बाद मंथन के समय विदेश चले जाना, जरूरत के समय अनुपलब्ध रहना, सियासी समझ का अभाव और स्वभाव मे शेष दलों के नेताओं के प्रति असम्मान का भाव होना है।
इन सब कारणों से वे बार-बार हारते नजर आते हैं और किसी के सगे नहीं बन पाते। इसलिये उनका भी इसी कारण कोई सगा नहीं बन पाता।
एक और भी मजेदार कारण है कि कांग्रेस के साथ होने का दिखावा करते हुए भी कोई भी छोटी पार्टी कांग्रेस को मजबूत होते नहीं देखना चाहती। सबको इस बात का अनुभव है कि मजबूत होते ही कांग्रेस सबसे पहले साथियों के ही पर काटना शुरू कर देगी।
माकन ने केजरीवाल को कहा गद्दार
इण्डी की टूट का बड़ा आधार
अजय माकन ने केजरीवाल के खिलाफ बयान क्या दिया केजरीवाल उन्हें कांग्रेस से निकलवाने को आतुर हो गये।
और अब हालात ये हैं कि केजरीवाल और कांग्रेस दो अलग ध्रुव नजर आ रहे हैं।
सबसे दिलचस्प ये है कि हर कोई दल कांग्रेस को ही कोस रहा है। हर दल केजरीवाल से सहानुभूति रखता दिख रहा है और कांग्रेस को आंखें दिखा रहा हैै। ऐसे मे कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि स्थिति दयनीय है कांग्रेस की।
और
स्थिति दयनीय है इण्डी गठबंधन की।
दिसंबर 2023 में इण्डी गठबंधन की अंतिम मीटिंग हुई थी उसके बाद से ये योद्धा एक साथ कभी बैठे नहीं।
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जवाहर नागदेव वरिष्ठ पत्रकार, चिंतक, विश्लेषक, मोबा. 9522170700‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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