Saturday, July 27

कुत्ते की जान की कीमत इंसान से भी ज्यादा, नाकामयाब डाॅग कैचर, वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…

 

रायपुर के 44 वर्षीय डाॅक्टर जब कटोरा तालाब में अपने एक परिचित से मिलने पहुंचे तो कार से उतरते ही एकाएक एक कुत्ता उन टूट पड़ा और उसने उन्हें इतना काटा कि उनकी मौत हो गयी।
ये कोई नयी खबर नहीं है। हालांकि कुछ ही माह पहले की खबर है। लेकिन इस टाईप की खबरें अक्सर पढ़े को मिल जाती हैं इसलिये इस खबर में कोई नयापन नहीं है। हर दिन ऐसी ही एक नयी खबर बनती है। जबकि सरकार इस दिशा में सिवाय खानापूर्ति के कुछ नही ंकर रही हैं। जब भी इस संबंध में शिकायत करो तो केवल इतना किया जाता है कि निगम कर्मचारी कुत्तों को पकड़कर ले जाते हैं और नसबंदी करके उसी स्थान पर छोड़ जाते हैं जहां से पकड़ा होता है।
इसमें सबसे दिलचस्प ये है कि जब वे कुत्तों को पकड़ने आते हैं तो कुत्ते ईधर-उधर भागने लगते हैं। ऐसे में वे कितना कुत्तों को पकड़ पाते हैं और कितनों की नसबंदी करते है। और करते भी हैं कि नहीं, ये संदेह के घेरे में है। कुल मिलाकर ये एक ढकोसला है जो सरकार झुनझुने के रूप में जनता को पकड़ाती है।

केरल हाईकोर्ट ने चिन्ता जताई

6 मार्च को केरल हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा कि इंसानों की फिकर कुत्तों से ज्यादा की जानी चाहिये। कुत्तों की सुरक्षा जरूरी है लेकिन इंसानों की जान की कीमत पर ये नहीं होना चाहिये। हाईकोर्ट ने कहा कि आवारा कुत्ते हमारे समाज में खतरा पैदा कर रहे हैं। लेकिन अगर आवारा कुत्तों के खिलाफ कोई कार्यवाही की गयी तो कुत्ते प्रेमी आकर उनसे लड़ने लगेंगे।’
ज्ञातव्य है कि रायपुर में ही नहीं पूरे देश में आवारा कुत्तों से जनता त्रस्त है। कुछ बरस पूर्व आवारा कुत्तों को मारने का प्रचलन था। बाद में मेनका गांधी के मंत्री बनने के बाद कुत्तों को मारने पर रोक लग गयी और इंसानों को कुत्तों के प्रकोप से बचाने के लिये कुत्तों की नसबंदी का रास्ता निकाला गया।
अब आलम ये है कि सारी काॅलोनियों में आधी रात को कुत्तों का सामूहिक आलाप प्रतिदिन सुना जाता है। लोग इस मर्ज से भयानक त्रस्त हैं। इसके अलावा कभी भी ये कुत्ते किसी इंसान पर टूट पड़ते हैं। चीरफाड़ कर देते हैं।
खासतौर पर बच्चों के लिये बेहद खतरनाक हालात हैं। हर दो-चार दिन बाद किसी न किसी बच्चे को कुत्ते के काटने से मौत की खबर मिलती रहती है। छोटे मासूम बच्चों को कुत्ते बुरी तरह नोच डालते हैं। दुख है कि सरकारें इस बाबत् कोई गंभीर नीति नहीं बना रही हैं और आम आदमी बेमौत मर रहा है।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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