सारंगढ़ बिलाईगढ़, 21 दिसंबर 2023/ विकसित भारत संकल्प यात्रा में एक आधार स्तंभ कार्यक्रम “धरती कहे पुकार के” का है, जिसमें स्कूली बच्चों, छात्राओं और स्व सहायता समूह के महिलाओं द्वारा धरती मां के दर्द और उपचार को बताया गया है। धरती मां कहती हैं ” मैं हजारो साल से बिना रुके, बिना थके अपने पथ पर चल रही हूं। मैं तब भी थी जब आप लोग नही थे और तब भी रहूंगी, जब आप लोग नही रहेंगे, पर अब ऐसा लगता है कि मै थक रही हूं। आपकी धरती माँ थक रही है। खेतो में इस्तेमाल किए गए रसायनो एवं रासायनिक खाद पानी और हवा में जहर घुल रहा है। मै थक रही हूं।खेतो मे इनके छिड़काव से मेरी मिट्टी वैसे ही जलती है। जैसे आपकी शरीर पर कोई तेजाब डाल दे।मेरे बच्चो को तो मेरा दुख का अंदाजा भी नही मेरी मिट्टी बंजर हो रही हूं। मिट्टी के पोषक तत्व खत्म हो रहे हैं।मेरा शरीर मिर्च की तरह जल रहा है। मेरी फसलो की पैदावर कम हो रही है। मै धीरे धीरे थक रही हूं, लेकिन मुझे याद है पुराने जमाने मे आप लोग ही तो थे,जब अपनी मॉ के रखवाले थे। आप लोग प्राकृतिक खेती करते थे। आप जानते थे कि प्राकृतिक खेती परम्परा भी है जरुरत भी है और हमारे सभ्यता मे तो प्रार्थना भी धरती कल्याण की है। ऊँ देव शांति अंतरिक्ष शांति पृथ्वी शांति औषद्या शांति वनस्पतया शांति ऊँ शांते ऊँ शांते,सब का कल्याण हो। “नदियां, जंगल, झरने, पर्वत रखना इन्हे संभाल के, इनको रौंदा, तुम न बचोगे धरती कहे पुकार के”।
मैं मौसम की वर्षा होती कही पर मिट्टी बंजर बनती बंजर मिट्टी और भी तपती धरती कहे पुकार के हजारो साल से मनुष्य धरती की गोद मे रहता आया है। धरती मॉ ने आप को सब कुछ दिया लेकिन मैं आप से पूछती हूं कि आप ने अपनी धरती मॉ को क्या दिया, ये जहरीले रसायन और अप्राकृतिक खाद, जो मिट्टी को बंजर कर रहे है। उत्पादकता को बर्बाद कर रहे हैं।आप अच्छे पैदावर के लालच मे जो रासायनिक खाद का नुकसान है। रासायनिक खाद जहर समान है और तो और फसल में पानी की खपत भी बढ़ गई है, जिससे खेती की लागत बढ़ रही है और पानी का स्तर जमीन के काफी नीचे जा रहा है। बच्चो मै तुम्हारी मां हूं। मैं तुम्हे सुख से जीने के लिए प्रर्याप्त संसाधन दिए हैं, पर तुम्हारी लालच की पूर्ति के लिए नही दिए। ऐसा लगता है थोडी सी अधिक पैदावर और अपनी लालच के लिए आप सब अपनी-अपनी बीबी अपनी बच्चो के भविष्य के बारे मे सोचना ही भूल गए है। सोचो क्या तुम अपने बच्चो को ऐसा खेत देना चाहते हो, जो बंजर हो। मै माटी हूं। मां होना मेरे नाम मे बसा है। पोषण करने के लिए ही मैने जन्म लिया है।करोड़ो साल तक धरती पर सांसों की डोर आगे बढ़ाई, पेट भरा जब सबका,तभी मैने संतुष्टी पाई, वो मां हूं मैं सबकी,जिसने जन्म न देकर भी,जीवन संभव बनाई। अन्नदाता मेरे पुत्र किसान तुमने ही तो, इसमें मेरा साथ निभाया। दिन रात सिंच पसीने से मुझको, हर मुंह तक रोटी पहुचाई। जब तुमने माथे मुझे लगाया। मै हरियाली बनकर मुस्काइ। याद रखना मिट्टी बंजर होने से और धरती के नुकसान से किसी एक देश, एक द्विप, एक समाज या एक धर्म का नुकसान नही है बल्कि सभी का है क्योकि सभी आपस में बंधे हैं। धरती की श्रृंखला टूटी,माला टूटी सब बिखार जायेंगे। सब खत्म हो जाएंगे। धरती एक परिवार की जैसी सबका भविष्य है केवल एक बचेगी धरती सभी बचेंगे। जीवन पथ की माला एक मेरा मालिक, माटी बना सबका रूप अनेक। बचेगी धरती सभी बचेंगे। जीवन पथ की माला एक।”