
राजनैतिक रूप से अरविंद केजरीवाल का दम टूट रहा है। जिसके बहुत से कारण है लेकिन मुहावरे की भाषा में कहें तो यही कहा जाएगा कि लंबी रेस को घोड़े को तेज नहीं दौड़ना चाहिये’। केजरीवाल जरूरत से ज्यादा तेज दौड़ने लगे और बस हफर गये।
सत्ता में आते ही उन्होंने अपना कद ‘बढ़ा’ समझ लिया। इतना बढ़ा समझा कि खुद को मोदी के बराबर आंकने लगे।
जब बात करते तो प्रधानमंत्री स्तर की करते। आरोप लगाते तो सीधे मोदी पर। वो भी बेहद बुरे ढंग से, खुद को निरंकुश समझने लगे।
आरोप और माफी
लेकिन उनके इस रवैये का परिणाम उनके लिये बुरा ही आया। एक तो उनके आरोप वे कभी साबित नहीं कर पाए और बाद में माफी मांगकर पीछा छुड़ा लिया। दूसरा उनका छल और झूठ जल्द ही जनता के सामने आने लगा तो जनता उनसे दूर होने लगी।
क्यांेकि इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा और मोदी की छवि अन्य पार्टियों के मुकाबले बहुत अच्छी रही जिससे उन पर उंगली उठाने से जनता में असंतोष छाता रहा, जिसका खामियाजा केजरीवाल को भुगतना पड़ा।
बेहूदे बचकाने आरोप
बेहद पढ़े-लिखे लेकिन झूठ से परहेज न करने वाले केजरीवाल ने ऐसे-ऐसे बचकाने और बेेहूदे आरोप लगाए कि जनता उनसे चिढ़ने लगी।
जैसे कि कहा कि हरियाणा की भाजपा सरकार ने यमुना मंे जहर मिला दिया ताकि दिल्ली वाले ये जहर वाला पानी पियें और मरें और आम आदमी पार्टी की सरकार बदनाम हो और चुनाव हार जाएं।
बड़ी दूर की कौड़ी लाए केजरीवाल। वो भी एक नंबर की धूर्ततापूर्ण।
मेरी उम्र के कई लोगों ने बचपन में बाल पाॅकेट बुक्स पढ़ी होगी। जो बड़ों के उपन्यास का विकल्प होती थीं। इसमे कोई काला बादल होता था जो पूरे शहर पर छा जाता था और हजारों लोग मर जाते थे और अंत में दो बच्चे चिंटू और पिंटू हीरो के रूप् में आते और उस काले बादल का अंत करते। कुछ ऐसी ही बचकानी बातें केजरीवाल करते दिखे।
झूठे वादे, झूठी कसमें, शराब में गोलमाल
दंगों मे भागीदारी, कोरोना में राजमहल
जनता चाहे बोले नहीं लेकिन एक के बाद केजरीवाल केे झूठे वायदे अपच पैदा कर रहे थे। बच्चों की झूठी कसमें हमारे देश के लोगों को बेहद नागवार गुजरीं।
शराब बंद कराने के वादे।
महिलाओं के कहने से शराब दुकानें बंद करने की घोषणा लेकिन शराब एक पर एक बोतल फोकट में देकर नया घृणित इतिहास बनाया। शराब में कोई छूट देता है भला मानों कोई जीन्स पेन्ट बेची जा रही हो।
हिंदुविरोध और मुस्लिम परस्ती तो कभी छिपी नहीं, लेकिन इनके बाशिंदों ने हिंदुविरोधी दंगों में भी बदनामी झेली।
कोरोना के समय जब लोग एक-एक सांस के लिये त्राहि-त्राहि कर रहे थे तो इनके अपने आॅक्सीजन सिलैण्डरों की ब्लैकमार्केटिंग कर माल कमा रहे थे। इससे शर्मनाक भला क्या होगा ?
ऐसे ही त्रासदी के समय नियमों में झोलझाल कर अपने लिये महल खड़ा कर लिया। पचपन करोड़ के इस महल पर हायतौबा मची तो प्रधानमंत्री के घर को कोसने लगे।
अरे भैया प्रधानमंत्री का घर कोई भाजपा या मोदी ने नहीं बनवाया, वो दशकों पहले कांग्रेस ने बनवाया था। और फिर दूसरे को कोसने से आपके अपने पाप कम हो जाएंगे क्या ?
आखिर जनता ने केजरीवाल को उसकी सही जगह पहुंचा ही दिया।
कदाचित् अब फिर कभी वे उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाएंगे जहां रहकर उन्होंने बेईमानी का गदर मचा दिया था।
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जवाहर नागदेव वरिष्ठ पत्रकार, चिंतक, विश्लेषक,
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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