इन विपक्षियों ने अधर्मीपन की क्या हद ही नहीं कर दी! बताइए‚ खुद ईश्वर के चुनाव पर भी सवाल उठा रहे हैं। जिसे खुद ईश्वर ने चुना है‚ उसके भी कामों में मीन–मेख निकाल रहे हैं। चलो जब तक मोदी जी ने यह राज छुपाए रखा था‚ तब तक विपक्षी विरोध करते थे‚ तो बात समझ में आती थी। ईश्वर की इच्छा हर कोई थोड़े ही जान सकता है। ईश्वर की इच्छा जानने के लिए भी ईश्वर की कृपा की जरूरत होती है।
लेकिन‚ अब तो मोदी जी ने खुद अपने मुंह से बता दिया है कि ईश्वर ने उन्हें चुना है। अब भी विरोध; यह डाइरेक्ट ईश्वर का विरोध नहीं, तो और क्या हैॽ हम तो कहते हैं कि इसके बाद तो चुनाव–वुनाव की बात सोचना भी अधर्म है। जब खुद ईश्वर ने अपना चुनाव कर दिया‚ उसके बाद हम इंसानों के चुनाव करने–कराने का मतलबॽ क्या हम ईश्वर की इच्छा को पलट सकते हैंॽ अगर नहीं पलट सकते हैं‚ अगर ईश्वर के कैंडीडेट का जीतना पहले से तय है, तो फिर भी चुनाव कराना ही क्योंॽ बेकार हजारों करोड़ का खर्चा। बेचारा विकास महीनों तक रुका रहेगा सो ऊपर से। सोचिए इतने महीनों में विकास कितना सफर तय कर सकता है। अडानी जी को दुनिया में नंबर एक नहीं भी सही, तो कम से कम फिर से नंबर तीन तो बनवा ही सकता है।
पर मान लो कि ईश्वर की इच्छा के खिलाफ हम इंसान चुनाव कर भी सकते हैं‚ तब भी ऐसा करना तो छोडि़ए‚ क्या सोचना भी हमें शोभा देता हैॽ क्या यह सरासर अधर्मीपन नहीं है। यह सिर्फ ईश्वर पर विश्वास करने–न करने का सवाल नहीं‚ यह तो बाकायदा ईश्वर के विरोध का‚ ईशद्रोह का मामला है। मोदी जी का विरोध करते–करते ये विरोधी क्या अब ईश्वर का भी विरोध करेंगे और वह भी ऐसे खुलेआम! जिसे खुद ईश्वर ने चुना है‚ उसका भी विरोध करेंगेॽ
पर एक शिकायत हमें ईश्वर से भी है। मोदी जी को चुना‚ वह तो ठीक है‚ पर उसके साथ खास कामों की शर्त लगाने की क्या जरूरत थी। माना कि पवित्र कामों की बात है‚ कई–कई कामों की बात है‚ पर है तो कामों की शर्त पर ही चुनाव। शर्तों पर अवतार का चुनावॽ और काम नहीं हुए तो; काम खत्म हो गए तो; आगे भारत वालों को कौन संभालेगा!
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*