राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश के प्रथम दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ (अंश)

New Delhi (IMNB). उत्तर प्रदेश की माननीय राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल और इस विश्वविद्यालय, राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय की कुलाधिपति है। राज्यपाल शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का उदाहरण हैं। उन्होंने यहां बड़े बदलाव किए है, उनमें से एक बदलाव मैने  नाम, प्रमाण पत्र और अंकतालिकाओं के रूप में देखा है जो इलेक्ट्रॉनिक रूप से अपलोड की गई हैं।

उत्तर प्रदेश की माननीय राज्यपाल बहुत दूरदर्शी हैं और जब मैं पश्चिम बंगाल का राज्यपाल था, तो उन्होंने मुझे कुलाधिपति की भूमिका निभाने में सहायता की। माननीय राज्यपाल ने कुलाधिपति की भूमिका को सर्वोच्च सद्गुण और प्रतिबद्धता के उदाहरण के रूप में परिभाषित किया है। वह दो बार यहां आ चुकी हैं और यह उत्तर प्रदेश राज्य का सौभाग्य है कि उसे शिक्षा के क्षेत्र के लिए ऐसे शिक्षाविद् और प्रेरणादायक राज्यपाल मिली हैं।

जब मैंने परिसर में कदम रखा तो हमने सबसे पहले एक काम किया महामहिम राज्यपाल ने और मैने ‘मां के नाम एक पेड़’ और जब यहां आकर देखा तो पर्यावरण से संबंधित वैदिक मंत्रोच्चार कितना विचारशील था।

हमें याद रखना पड़ेगा हमारे पास रहने के लिए पृथ्वी के अलावा कोई दूसरी जगह नहीं है इसी का सृजन करना पड़ेगा।

इसलिए मैं प्रत्येक छात्र, स्टाफ के प्रत्येक सदस्य, संकाय के सदस्य, यहां उपस्थित सभी लोगों से आग्रह करता हूं कि इस प्रांगण में मां के नाम पेड़ जरूर लगाए यहां देखा है मैंने सब ठीक उन्नति के ऊपर है पर यह पक्ष कमजोर है यह अति शीघ्र होना चाहिए। जलवायु परिवर्तन एक टाईम बम की तरह है जिससे निपटने के लिए हमें समय रहते कार्य करना होगा।

मित्रों, इस दीक्षांत समारोह में उपस्थित होना मेरे लिए सम्मान की बात है। इस विश्वविद्यालय का नाम एक देशभक्त, राष्ट्रीय नायक और स्वतंत्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर रखा गया है। इसके अलावा, बृजभूमि में होना हमेशा आध्यात्मिक रूप से फायदेमंद होता है। सभी स्नातक छात्रों, पदक विजेताओं और उनके गौरवान्वित माता-पिता और संकाय के सदस्यों को मेरी शुभकामनाएं और बधाई।

मेरे युवा मित्रों, आपकी उच्च शैक्षणिक योग्यताएं देश के लिए संपत्ति हैं और आप भारत की विकास गाथा का हिस्सा होंगे। भारत के विकास की कहानी के अगले 25 साल अपार संभावनाओं से परिपूर्ण हैं, जिनका आप सभी को पूर्ण प्रयोग करना है।

साथियों, आप जैसे उच्च योग्यता वाले युवा हमारी सबसे बड़ी ताकत है।

हमारी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं सुस्पष्ट हैं और यह भारत को वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प के रूप में परिलक्षित होती हैं।

भारत के युवा इस विकास यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण हितधारक हैं। भविष्य के नेता और सकारात्मक बदलाव के निर्माता के रूप में आप इस यात्रा को आगे बढ़ाएंगे और सभी को गौरवान्वित करेंगे। आप आर्थिक, तकनीकी और सामाजिक प्रगति को आगे बढ़ा रहे हैं।
हमारी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा वर्ष 2047 में एक विकसित राष्ट्र का विकसित हिस्सा बनने के रूप में निर्धारित है। भारत के युवा इस विकास यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण हितधारक हैं। भविष्य के नेता और सकारात्मक बदलाव के निर्माता के रूप में आप इस यात्रा को आगे बढ़ाएंगे और सभी को गौरवान्वित करेंगे। आप आर्थिक, तकनीकी और सामाजिक प्रगति को आगे बढ़ा रहे हैं। आपको अपनी योग्यता पर विश्वास करते हुए अपने दृष्टिकोण के अनुसार वांछित बदलाव लाना होगा।

मित्रों, यह वर्तमान शासन-प्रशासन का प्रमाण है कि यह विश्वविद्यालय इतने कम समय में शिक्षा के केंद्र के रूप में बेहतर ढंग से उभरकर सामने आया है, जिसका शिलान्यास मात्र तीन वर्ष पहले हमारे दूरदर्शी प्रधानमंत्री द्वारा किया गया था।

अनुकरणीय कानून और व्यवस्था, राजमार्ग, बुनियादी ढांचे के साथ यह उपलब्धि उत्तर दिशा में इसकी प्रगति और उत्थान के लिए शुभ संकेत है।

यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि सभ्यताएं संस्थाओं और अपने नायकों के आदेशों से जीवित रहती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा, तक्षशिला और ज्ञान तथा शिक्षा के कई अन्य वैश्विक दीपों की कल्पना करें। इस विश्वविद्यालय की स्थापना राजा महेंद्र प्रताप सिंह को अमर बनाने की दिशा में एक सही कदम है, जो अन्य लोगों की तरह एक नायक थे, जिन्हें हमारे स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए था। 1915 में, उन्होंने काबुल में भारत की पहली अनंतिम सरकार की स्थापना की, जो कि अंग्रेजों द्वारा 1935 के भारत सरकार अधिनियम की कल्पना करने से दो दशक पहले की बात थी। यह एक बहुत बड़ा प्रयास और स्वतंत्रता की घोषणा का एक विचार था, जो हमें बाद में मिला और उन्हें संसद सदस्य बनने का अच्छा अवसर मिला। हम आज एक स्वतंत्र वातावरण में उनके जैसे नायकों द्वारा किए गए बलिदानों के कारण ही फल-फूल रहे हैं।

दुर्भाग्य से ऐसे महान नायकों की प्रेरक कहानियों का हमारी पाठ्यपुस्तकों में अब तक संक्षिप्त या कोई उल्लेख नहीं किया गया है। स्वतंत्रता के इतिहास में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अडिग लोगों को श्रेय ना दिया जाना अत्यंत दुखद हैं।

हमारे युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम के असली नायकों के बारे में जागरूक करना हमारा परम कर्तव्य है। इतिहासकारों की अगली पीढ़ी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान ने इस पीढ़ी को प्रेरित किया हैं। हाल के दिनों में पूरे देश में अपने गुमनाम और सुप्रसिद्ध नायकों को याद किया जाना एक सुखद अनुभूति हैं।

1990 में डॉ. बीआर अंबेडकर को भारत रत्न का सर्वोच्च नागरिक सम्मान वर्ष 2023 में चौधरी चरण सिंह और कर्पूरी ठाकुर को दिया जाना सही दिशा में उठाया गया कदम है। मुझे दोनों ही मौकों पर संसद के रंगमंच पर रहने का सौभाग्य मिला। 1990 में मैं केंद्रीय मंत्री था और अब मैं उपराष्ट्रपति और राज्यसभा का सभापति हूं।

मैं खुद को धन्य महसूस करता हूं, लेकिन मुझे चिंता भी है। हमें अपने नायकों को पहचानने में इतना समय क्यों लगा?

इसी प्रकार, हाल ही में बहुत अच्छी प्रगति हुई है। हम 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। एक महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भगवान बिरसा मुंडा के बारे में जानकर आप उत्साहित होंगे और उनसे प्रेरणा लेंगे। वह युवावस्था में ही शहीद हो गए, लेकिन हमारे स्वतंत्रता संग्राम पर अमिट छाप छोड़ गए। यह दिन वीर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की याद को समर्पित है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां और वर्तमान पीढ़ी उनके बलिदानों और इस देश के बारे में जान सके।

इसी तरह, एक और महान नायक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जिसे उचित स्थान नहीं दिया गया, जो देश के लिए अदम्य साहस और निस्वार्थ सेवा के धनी थे। सरकार ने हर साल 23 जनवरी को उनके जन्मदिन को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है और यह सही भी है। जब मुख्य समारोह आयोजित किया गया, तो मुझे फिर से सौभाग्य और सम्मान प्राप्त हुआ।

जब मैं पश्चिम बंगाल राज्य का राज्यपाल था। तब माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस महान दिन का उद्घाटन एक बेहतरीन इंसान, बेहतरीन आत्मा, दूरदर्शी व्यक्ति को याद करते हुए किया, जिन्होंने देश की सेवा के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया।

साथियों, हमारे युवाओं को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि इन लोगों ने कठिन परिस्थितियों में भी जिस धैर्य का परिचय दिया है, उससे आप सभी में राष्ट्रवाद की भावना जागृत होगी।

शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले।

वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशां होगा॥

कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे।

जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमां होगा॥

 

यह आज चरितार्थ हो रहा है आजादी के लंबे समय बाद इसको हर पल महसूस किया जा रहा है हर दृष्टि से किया जा रहा है।

मेरे युवा मित्रों, मैंने आप सभी को यह याद दिलाने के लिए हाल के कुछ ऐसे कदम उठाए हैं कि राष्ट्रवाद के प्रति हमारी प्रतिबद्धता हमेशा अडिग और सर्वोच्च होनी चाहिए। राष्ट्र से ऊपर कुछ नहीं है। राष्ट्रीय हमारा धर्म हैनिजी हित या कोई भी हित हो राष्ट्रहित से ऊपर नहीं रह सकता यही हमारा संकल्प होना चाहिएयही हमारी संस्कृति का निचोड़ है।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह एक दूरदर्शी शिक्षाविद् भी थे, जिन्होंने शिक्षा की आवश्यकता को पहचानते हुए प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की थी।

मित्रों, इतिहास इस बात का गवाह है कि कोई भी देश तकनीकी क्रांति के बिना आगे नही बढ़ सकता। अगर हम पैक्स इंडिका को हकीकत बनते देखना चाहते हैं, तो हमें तकनीक में आगे रहना होगा।

हम वस्तुतः चौथी औद्योगिक क्रांति में रह रहे हैं, जहां कृषि से लेकर संचार तक सूचना हमारी सभी गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण है। आजकल सब कुछ संचार के इर्द-गिर्द घूम रहा है। प्रौद्योगिकी की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।

हमारे देश में सौभाग्‍य से इसका प्रभाव अत्यंत आवश्यक, पारदर्शी, जवाबदेह शासन, सेवा प्रदान करने में आसानी, तथा अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को लाभ मिलना है।

जैसे-जैसे हम ज्ञान अर्थव्यवस्था द्वारा संचालित विकसित भारत@2047 की ओर बढ़ रहे हैं, हमारा लक्ष्य विश्‍व में सर्वश्रेष्ठ संस्थानों के बराबर उत्कृष्टता के संस्थान बनाना होना चाहिए। चूंकि इस देश में वैश्विक उत्कृष्टता और प्रतिष्ठा के संस्थान थे, इसलिए विश्‍व भर से लोग ज्ञान प्राप्त करने के लिए यहां आते थे।

मैं उद्योगों और कॉरपोरेट्स से भारत के शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश करने की अपील करता हूं। शिक्षा में निवेश आपके वर्तमान में निवेश है, आपके भविष्य में निवेश है, आर्थिक विकास के लिए निवेश है, शांति के लिए निवेश है, सद्भाव के लिए निवेश है।

इस प्रयास को आगे बढ़ाया जाना चाहिए, अब यहां मेरी ओर से सावधानी का एक शब्द है। मैं इसे एक चेतावनी कह सकता हूं। हमें शिक्षा को कभी भी एक वस्तु नहीं बनाना चाहिए, हमें कभी भी शिक्षा को व्यापार नहीं बनाना चाहिए। यह प्रयास, यह उद्यम, यह भावना शिक्षा के वस्‍तुकरण और व्यावसायीकरण से प्रेरित नहीं होनी चाहिए बल्कि इसे हमारी पारंपरिक गुरुकुल प्रणाली के अनुरूप होना चाहिए। गुरुकुल में क्या होता था कोई फीस नहीं होती थीकोई रोक टोक नहीं होती थी और यही कारण है कि भारत के संविधान निर्माता ने बहुत सोच समझकर जो 22 चित्र संविधान में रखे हैं आपसे अपील करूंगा उन चित्रों का आप अध्ययन कीजिए। आजकल सोशल मीडिया गूगल सब आपकी मदद करेगा उसमें जहां सिटीजनशिप है वहां गुरुकुल का चित्र हैशिक्षा को क्या इंपोर्टेंस दी गई है। उन्हें चरित्र निर्माण की धुरी बनना होगा, उन्हें हमारे भारत के प्रति प्रतिबद्धता की भावना से भर देना होगा।

पाठ्यक्रम को आकार देने वाले, पाठ्यक्रम तैयार करने वाले, संकाय के सदस्यों से मेरा आग्रह है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सफल बनाएं। माननीय राज्यपाल और मैं स्वयं राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विकास में विभिन्न चरणों से जुड़े रहे हैं। हजारों हितधारकों के इनपुट पर विचार किया गया है। तीन दशक से अधिक समय के बाद यह हमारे पास है, यह हमारी शिक्षा प्रणाली को बदलने के लिए एक दूरदर्शी रोडमैप प्रस्तुत करता है। यह बहु-विषयक शिक्षा, कौशल विकास, नवाचार को बढ़ावा देता है। इसमें डिग्री पर बहुत अधिक जोर देने की आवश्यकता नहीं है। मैं चाहता हूं कि हर शिक्षक, हर प्रोफेसर, शिक्षा से जुड़ा हर व्यक्ति कृपया राष्ट्रीय शिक्षा नीति को जरूर पढ़ें। आप इसे तब तक लागू नहीं कर सकते जब तक आप इसे समझ नहीं लेते, आपको इसे लागू करने की मानसिकता के साथ समझना होगा।

सौभाग्य से विश्व के लिए एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर आज हमारा भारत प्रौद्योगिकी के मामले में एक बौद्धिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। मेरे युवा मित्रों, लड़के-लड़कियों, इस बारे में जानेंगे। हम पेटेंट दायर करने के मामले में पांचवें स्थान पर हैं। आप पेटेंट के महत्व को जानते हैं, आप इसके आर्थिक परिणामों को जानते हैं। आप महसूस कर सकते हैं कि यह एक सॉफ्ट डिप्‍लोमेसी वेपन भी है और 25 प्रतिशत की साल-दर-साल वृद्धि के साथ पेटेंट दायर करने के मामले में हमारी वार्षिक वृद्धि 25 प्रतिशत है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता में भारत अपने सघन मानवीय संपर्क और गहरी तकनीकी पैठ के साथ डेटा सेट निर्माण में अग्रणी होने के लिए तैयार है। वास्तव में हमारे डिजिटलीकरण, हमारी तकनीकी पैठ, सेवा वितरण के लिए उपयोग को वैश्विक संस्थाओं और विश्व बैंक द्वारा सराहा गया है। जब डिजिटलीकरण द्वारा सेवा वितरण की बात आती है तो भारत एक आदर्श मॉडल है, लेकिन भारत ने छह वर्षों में जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वे आमतौर पर चार दशकों से भी अधिक समय में प्राप्त नहीं की जा सकती हैं।

दोस्तों, हम तकनीकी क्रांति के अमृत काल में प्रवेश कर रहे हैं। इसे युवा दिमागों, आप जैसे प्रज्वलित दिमागों द्वारा संचालित किया जाना चाहिए। परिवर्तन निर्माता बनें, नवाचार का नेतृत्व करें और भारतीय समस्याओं के लिए भारतीय समाधान खोजें और वैश्विक बिरादरी को भी उपलब्ध कराएं।

2024 के स्नातक वर्ग को आपकी सफलता के लिए बधाई। राजा महेंद्र प्रताप सिंह जैसे नायकों से प्रेरणा लें, जिन्होंने राष्ट्रहित को हर चीज़ से ऊपर रखा। नए भारत द्वारा प्रस्तुत अवसरों का लाभ उठाएं, अपनी शिक्षा का बुद्धिमानी से और अधिक अच्छे के लिए उपयोग करें।

मित्रों, जैसे ही आप बाहर की दुनिया में प्रवेश करेंगे, कदम रखेंगे, आपके सामने चुनौतियां आएंगी, गंभीर चुनौतियां आएंगी, कुछ असफलताएं भी मिलेंगी, ये सब स्वाभाविक है।

यह आपके लिए एक स्वप्निल प्रवेश नहीं होगा, यह भयंकर प्रतिस्पर्धा होगी और ऐसा होना भी चाहिए। असफलता से कभी न डरें। कोई भी असफलता सफलता की सीढ़ी होती है, अगर आपके मन में कोई अच्छा विचार आता है, तो उसे पालें नहीं, उस पर अमल करें।

संबद्ध महाविद्यालयों और शिक्षाविदों से मेरी अपील है कि अपनी गतिविधियों को सुनिश्चित करें, इस उभरती हुई तकनीकी दुनिया के लिए स्नातकों को तैयार करें। उनमें राष्ट्रवाद की भावना पैदा करें।

आप प्रतिभाशाली हो सकते हैं, आप तकनीकी रूप से प्रतिभाशाली हो सकते हैं, आपकी प्रशंसा की जा सकती है लेकिन यदि राष्ट्रवाद के प्रति आपका लगाव कमजोर है, तो यह अच्छा नहीं है।

काट्यो काट्यो कपास हो जाए‘ कपास को जब काटते हैं तो धागा बनता हैतो थोड़ा भी मिस डायरेक्शन हो तो वापस कपास बन जाता है। आपके प्रयास व्यर्थ जाते हैं।

मित्रो, भारत में मानवता का छठा हिस्सा निवास करता है, जो इस ग्रह पर सबसे पुरानी सभ्यता है, जिसमें तेजी से आर्थिक वृद्धि हुई है। दुनिया का कोई भी देश 7.5 प्रतिशत से 8 प्रतिशत, जीडीपी ग्रोथ के साथ आगे नहीं बढ़ रहा है।

आंखों से देख रहे हैं जिसका सपना लेते हुए भी डर लगता था मेरी उम्र के लोगों को। पूरे देश में रेल, सड़क, कनेक्टिविटी, जलमार्ग, डिजिटलीकरण का विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा इस देश में बन रहा है।

यह हमारे युवाओं का समय है, अब मेरी आपसे विशेष अपील है, आप साइलो में हैं। लगता है नौकरी सरकार की ही है लगता है नौकरियां कहां है थोड़ा सा देखोगे तो पता लगेगा कि जो बॉस्‍केट ऑफ अपॉर्च्‍यूनिटीज़ है इज़ इनलार्जिंग।

एक जानकारी के अनुसार सिर्फ 10 प्रतिशत छात्रों को ही पता है कि कहां संभावनाएं हैं90 प्रतिशत को नहीं पता है। कृपया साइलो से बाहर आएं।

भारत को यदि आज के दिन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष कह रहा है कि यह अवसर, गंतव्य और निवेश की भूमि है, तो क्यों? नौकरी के लिए तो नहीं कह रहा। इसका अधिकतम उपयोग करें, अपने चारों ओर देखें, आप पाएंगे कि आपकी प्रतिभा का उपयोग समुद्र में नीली अर्थव्यवस्था में, अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में किया जा सकता है।

चाणक्य के शब्द बताता हूं आपको और चाणक्य का नाम आते ही चाणक्य का नाम लेते ही एकनई ऊर्जा अपने में आ जाती है जो चाणक्य का रोल करते हो वह कैसे बोलते हैंलगता है  चाणक्य कितना महान था। चाणक्य ने कहा था “शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है, एक शिक्षित व्यक्ति का हर जगह सम्मान होता है।”

और स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” जिसे आपको कभी नहीं भूलना चाहिए।

जो लोग बाहर जा रहे हैं, बाहर निकल रहे हैं, उस समूह और मौजूदा छात्रों को मेरी शुभकामनाएं। आप इससे ज्‍यादा भाग्‍यशाली नहीं हो सकते कि एक इकोसिस्‍टम मिल रहा है जहां आप अपने सपनों और आकांक्षाओं को साकार करने के लिए अपनी प्रतिभा और क्षमता का पूरा दोहन कर सकते हैं।

आज जिन लोगों को डिग्री मिली है, उनसे मेरी एक अपील है, आप बहुत ही प्रतिष्ठित श्रेणी में हैं, आप इस संस्थान के प्रथम छात्र हैं। आपको इस संस्थान से जुड़े रहना चाहिए, इस संस्थान से जुड़े रहना चाहिए, वार्षिक योगदान देना चाहिए। राशि मायने नहीं रखती, वित्तीय योगदान की मात्रा मायने नहीं रखती, वित्तीय योगदान ही सबसे महत्वपूर्ण है। इसे करें। आप पाएंगे कि वर्षों में यह गुब्बारे की तरह बढ़ता जाएगा और जरूरतमंद छात्रों की मदद करेगा। यह शिक्षा के क्षेत्र और आपके संस्थान के लिए एक बड़ी सेवा होगी।

अंत में एक बात कहूंगा आपको सदैव सचेत रहने के लिए एक सीख दे रहा हूं उसी को सदा यादरखना ‘नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः

इसका अर्थ अंग्रेजी में यह है कि आत्म-साक्षात्कार कमजोर इच्छाशक्ति से प्राप्त नहीं किया जा सकता। हम राहत पाना चाहते हैं पर अगर कमजोर इच्छाशक्ति है तो हम नहीं कर पाएंगे। इसलिए दृढ़ इच्छाशक्ति रखें, असफलता से कभी न डरें, असफलता के डर से कभी भी तनाव और अवसाद से ग्रस्त न हों। प्रयासों में ईमानदारी और प्रतिबद्धता ही सबसे महत्वपूर्ण है और यही वह शिक्षा थी जो भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दी थी जो आपके भविष्य के काम के लिए मार्गदर्शक सितारा होनी चाहिए।

मुझे पहला व्याख्यान, पहला दीक्षांत भाषण देने का सौभाग्य मिला है। यह हमेशा मेरी यादों में अंकित रहेगा। यह मेरे लिए इस धरती के सबसे महान सपूतों में से एक को श्रद्धांजलि देने का अवसर है।

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