आज यु ट्यूब पर अमिताभ व हेमा मालनी द्वारा अभिनीत 1983 में आई फ़िल्म अंधा कानून जिसमे गीतकार आनंद बक्षी के गीत को किशोर कुमार ने अपनी आवाज दी थी में एक गाना है –
“ये अंधा कानून है, ये अंधा कानून है ,
जाने कहाँ दगा दे दे, जाने किसे सज़ा दे दे ,
साथ न दे कमज़ोरों का, ये साथी है चोरों का ,
बातों और दलीलों का, ये है खेल वकीलों का,
ये इंसाफ़ नहीं करता, किसी को माफ़ नहीं करता ,
माफ़ इसे हर खून है ये अंधा क़ानून है…
को सुनकर वर्तमान में खादी खाकी के बीच पिसती जनता के हालात को देख कर याद आ गया । कहने को तो कानून के हाथ बड़े लंबे बताये जाते है पर कानून के लंबे हाथ अक्सर पद पैसा रुतबा रुआब के हिसाब के छोटा बड़ा होते दिखता है । गरीब की बेटी की इज्जत लुट जाय या ठगी का शिकार हो जाय बेचारा गरीब गुरबा की रिपोर्ट लिखाने में चप्पलें घिस जाती है कई बार दर्ज ही नही हो पाती वही रुतबा रुआब वाले अमीरों और खादी की जेब मे डाका डालने वालो को पकड़ने खाकी उड़न खटोले में सवार हो जाती है । गरीब की इज्जत अखबारों में एक कालम की खबर बन कर रह जाती है रसूखदारों की ब्रेकिंग खबर ।
खैर बात अंधा कानून फ़िल्म के गाने ये अंधा कानून है को लेकर चालू हुई थी खाकी की आमजनता और नेताओं को लेकर होनी वाली कार्यवाही कानून के रखवालों के अंधे होने की गवाही देती है । आजकल खाकी को सोशल मीडिया प्रेम इतना बढ़ गया है कि कार्यवाही हो या ना हो जनता के मानव अधिकारों का हनन करते लाइव बेइज्जती चालू हो जाती है । मीडिया तो मीडिया ट्रायल के नाम पर यूं ही बदनाम है खाकी तो आरोपी को अपराधी बना लाइव कर डालती है । लाइव स्ट्रीमिंग और सोशल मीडिया प्रेम आम जनता की इज्जत तार तार करता है वही वर्दीधरियो और खद्दरधारीयो पर कार्यवाही के नाम पर अंधा बन जाता है ।
आम जनता को ट्रैफिक कानून के उल्लंघन पर कार्यवाही के साथ सोशल मीडिया में वीडियो अपलोड कर इज्जत तार तार कर मानवाधिकार की धज्जियाँ उड़ाती खाकी देश के खद्दरधारियो की चुनावी रैलियों के समय सारे नियम कायदों में छूट प्रदान कर देती है जबकि नेताओ के आगे पीछे पोलिस की गाड़ियां दौड़ती है खद्दरधारीयो की रैलियों में पोलिस यातायात व्यवस्था बनाती दिखती है जिसमे सिपाही से ले कर आईजी तक निगरानी करते देखे जा सकते है । नेताओ को ट्रैफिक कानून की जगह भीड़ के बहाने मुंडी गिनाते ताकत दिखाने की चिंता रहती है रोड सेफ्टी जाय तेल लेने । आम जनता और नेताओं की रैलियों में ट्रैफिक कानून के नियम में समानता गायब हो जाती है ।
शासन प्रशासन व वर्दीधारियों की कार्यशैली को लेकर एक कहावत सटीक बैठ रही कि ” चढ़न लगे बारात तो ओटन लगे कपास ” । जब कोई बड़ी घटना या दुर्घटना घटती है मौतें होती है तब 2 – 4 दिन सब जाग कर कानून का पालन कराने जनता के पीछे लट्ठ ले पिल पड़ते है किंतु चुनावी रैलियों में रेलमपेल भीड़ के जुगाड़ के लिए ट्रेक्टर ट्रक छोटा हाथी जैसे वाहन जुटा दिए जाते है । रैली के बहाने रोड सेफ्टी की धज्जिया उड़ाते जिम्मेदार आंख बंद करे प्रशासन से जब पूछा जाय तो पता करते है , देखता हूं वाले रटे रटाये मोड पर जुबान चलती है । वैसे आज के समय मे आम आदमी आम की ही तरह हो गया है कोई भी उन्हें चूस लेता है कोई भी उन्हें काट देता है ।
वैसे भी ये देश ऐसा ही है जहां कानून किताबो की शोभा बढ़ाते है या विरोधियों को निपटाने के काम आते है (विरोधियों के निपटाने की बात से याद आया सत्ता पक्ष की सदस्यता लेते ही सारे अपराध सर्फ एक्ससल की धुलाई की तरफ साफ और सफेद हो जाते है ) कानून की कई धाराएं तो वाकई में कभी कभार बड्डे साहब की बत्ती पड़ जाय तो टारगेट पूरा करने के काम आ जाता है ,नही तो जांच अभियान के नाम पर साल भर वसूली और जेब गरम करने के काम ।
मेरी बातों और बहस को सुन गोबरहिंन टुरी कहती है महराज जैसे गुटखा पाऊच , सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान , शराब पीना सब कानूनन निषेध है । रात में 10 बजे के बाद DJ के बजाने पर कानूनन रोक है , पर कोई रुकता है क्या ? कोई किसी को रोकता टोकता है क्या ? नही ना फिर आप काहे अपना ब्लड प्रेशर बढ़ाये जा रहे है । खाकी को सट्टा जुंआ पकड़ने से फुर्सत और कान में ठूंसे ईयर फोन से मुक्ति मिले तो DJ का कानफोड़ू अश्लील गाना सुनाई भी पड़े । महराज आजकल अजीब रिवाज चल रहा गूंगो से कहा जाता है बहरो को पुकारो । वैसे भी जिसमे है दम वो कानून को जेब मे रख कर घूमता है उसे रोकने वाले का पता किसी को मालूम हो बताना जरूर ।
चलते चलते –
बिना पानी टँकी बने पाईप लाइन बिछा जल जीवन मिशन को भ्रष्टाचार मिशन बनाने वाले नेता और साहब की जुगलबंदी सत्ता परिवर्तन के बाद भी चलेगी या जाएंगे जेल पूछता है छत्तीसगढ़ ?
और अंत में –
कहां हारती हैं औरतें, उन्हें तो हराया जाता है ,
लोग क्या कहेंगे ,ये कहकर डराया जाता है ।
#जय_हो 20 अप्रैल 2024 कवर्धा (कबीरधाम )