बेचारे नीतिश कुमार को खुद को अपना इतना गम नहीं है जितना अन्य पार्टियों के नताओं को खास तौर पर भाजपा और उसकी समर्थक पार्टियों को ।
दरअसल मामला मोदी विरोधियों की एकता का है। सभी पटना में एकजुट हुए। नीतिश ने सबको पटना में पटाकर प्रमुख बन गये। और लगभग विरोधी गुट का ‘नेता’ बनना उनका तय हो गया। वहीं पर शिमला में सबके दिलों को ठण्डक देने की बात तय की गयी। फिर शायद ये लगा होगा कि कम्प्यूटर की नगरी में काम किया जाए तो बैंगलुरू मे तुरू… रू… रू… करने की तय किये। अब बैंगलुरू में भी जुटे।
नीतिश को किनारे कर दिया नामुरादों ने
अरमानों को दिया धक्का विपक्ष के दरादों ने
जोश ओ खरोश से जुटे। सारे के सारे। बड़ी आन, बान और शान से नीतिश, लालू और लालू पुत्र काॅलर को थोड़ा उपर चढ़ाके, मूंछों में थोड़ा तेलवा लगा के, चल पड़े थे फिक्र यारों धुंएं में उड़ाके… । बाल की खाल न निकालें। मूंछ को तेल लगाना यानि रौब दिखाना। तो रौब दिखाते तीनों चल पड़े।
नीतिश कुमार को पक्का यकीन था कि उन्हें ही इस बार नेता या संयोजक नियुक्त कर दिया जाएगा। लेकिन हो गया कुछ मामला गड़बड़। क्या हुआ ये पता नहीं लेकिन हुआ। क्योंकि शाम चार बजे प्रेसवार्ता के लिये भी तीनों नहीं रूके। बड़ी मासूमियत से बोले ‘धार्मिक मेला अटैण्ड करने जाना है’। लो कर लो बात। धार्मिक मेले के लिये कोई राजनीति छोड़ता है भला ? बहरहाल झूठ कितना भी बोलें देश को बात समझ मे आ गयी कि ‘दाल गली नहीं’ सियासत चली नहीं। बड़े बेआबरू होकर अपने ही प्रोग्राम से वो निकले’।
अब निकले तो निकले। मगर हायतौबा नहीं मचाई क्योंकि अपने अपमान का ढिंढोरा भला कौन पीटता है। लेकिन साहब एक तबका है जिसे नीतिश से भी ज्यादा दुख हुआ। वो है भाजपा। तो इस धक्के से जितना वे दुखी हुए इतना ही ये भी दुखी हुए। भाजपा वाले जार-जार आंसूं बहाने लगे।
सुबह का भूला झूल के झूला
शाम को लौट आए तो भूला नहीं कहते
भाजपा के नेता नीतिश के इस अपमान पर बड़े दुखी हुए और दुख के मारे लगे ताने मारने कि देखो हमारे पुराने साथी के साथ क्या कर दिया इन नामुरादों ने… । ऐसा दुख होना स्वाभाविक है। चर्चा है कि नीतिश कुमार अब बेहद भावुक हो गये हैं। और भाजपा का अपने प्रति ऐसा प्रेम देखकर फिर से घर वापस जाना चाहते हैं। उदार भाजपा भी देश हित में राष्ट्रवाद की दुहाई देकर दुत्कारेगी नहीं। फिर से गोद में बिठाल लेगी।
छत्तीसगढ़ में सिंहदेव के साथ अन्याय से
गला भर आया भाजपा का
ये कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। भाजपाई बड़े संवेदनशील होते हैं। ईधर सिंहदेव को छत्तीसगढ़ मंे उप मुख्यमंत्री बनाया उधर भाजपा नेता डाॅ रमनसिंह दुखी हों गये। बोेले ‘झुनझुना पकड़ा दिया’। डाॅ साहब ने ये नहीं बताया कि यदि सिंहदेव भाजपा ज्वाईन कर लेते तो डाॅ साहब उन्हें क्या पकड़ाते, पर झुनझुना पकड़ाने से वे दुखी थे।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने मोहन मरकाम को अध्यक्ष पद से हटाया और दीपक बैज को अध्यक्ष बनाया तो भाजपाई दुखी होकर हायतौबा मचाने लगे। इतने दुखी हुए, इतने दुखी हुए कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्रवित हो उठे। उन्होंने आव देखा न ताव… बस मोहन मरकाम को सीधे मंत्री बना दिया। देखिये कितने दरियादिल और संवेदनशील हैं भूपेश बघेल, भाजपा का दर्द देखा नहीं गया।
जाहिर तौर पर मरकाम को भी भाजपा का सम्मान करना चाहिये, आभार व्यक्त करना चाहिये। क्यांेकि भाजपा इतना दुखी नहीं होती तो कदाचित् बघेल भी इतना पसीजते नहीं। लेकिन पार्टी से निकाले जाने का डर है लिहाजा ऐसा कुछ फिलहाल कर नहीं रहे हैं।
सह सकते औरों पर सितम नहीं
मूणत उतारे गये मंच से, कांग्रेस को गम कम नहीं
ईधर जैसे ही कांग्रेसियों को खबर लगी कि प्रधानमंत्री की सभा से मंच से मूणत को उतार दिया गया तो सभी हाय तौबा मचा रहे हैं। सिलसिला अब तक जारी है और तब तक जारी रहेगा जब तक फिर से मूणत को किसी मंच पर स्थान न मिल जाए।
तो नेताओं में ऐसी संवेदनशीलता बहुत देखने को मिलती है। अपने दल के नेता की टांग चाहे टूट जाए या खुद ही उसे पंगु कर दें, लेकिन दुसरे दल के नेता को जुकाम भी हो जाए तो इनके अंदर कोहराम मच जाता है।
नंदकुमार साय जैसे वरिष्ठ और सज्जन नेता जब तक भाजपा में थे तो तवज्जो नहीं दी। लेकिन सहृदयता देखिये जैसे ही वे कांग्रेस में आए,भाजपा उनके लिये दुखी हो उठी। भाजपाई बोले भाजपा में केंद्र के बड़े पद पर रहे साय कांग्रेस में राज्य के इतने छोटे पद पर सुशोभित किये गये हैं…. कुछ अच्छा नहीं लग रहा….
—————————-
जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
——————————