प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन का शुक्रवार को तड़के 100 साल की उम्र में निधन हो गया. हीराबेन मोदी के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके भाइयों ने गांधीनगर के एक श्मशान घाट में उन्हें मुखाग्नि दी. हीराबेन मोदी को स्वास्थ्य संबंधी कुछ परेशानियों के चलते बुधवार को सुबह अहमदाबाद के ‘यू एन मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी एंड रिसर्च सेंटर’ में भर्ती कराया गया था. अस्पताल ने अपने बुलेटिन में बताया, ‘हीराबेन मोदी का यू एन मेहता हार्ट हॉस्पिटल में इलाज के दौरान 30 दिसंबर 2012 को तड़के करीब साढ़े तीन बजे निधन हो गया.’ हीराबेन गांधीनगर शहर के पास रायसन गांव में प्रधानमंत्री मोदी के छोटे भाई पंकज मोदी के साथ रहती थीं. उन्हें हीरा बा भी कहा जाता है.
हीरा बा का अंतिम संस्कार गांधीनगर के मुक्तिधाम में किया गया. मां हीराबेन के पार्थिव शरीर को पीएम मोदी और उनके भाइयों ने मुखाग्नि दी. इससे पहले पीएम मोदी ने अपनी मां के पार्थिव शरीर को कंधा दिया था और उनके साथ शववाहिनी में थे.
मोदी ने मां के संघर्षों को याद करते हुए कहा था, ‘बचपन के संघर्षों ने मेरी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था।’ मां-बेटे के 5 किस्से जो दिल छू जाते हैं।
पीएम मोदी का बचपन अभावों में गुजरा। वह कई बार बचपन के बारे में बता चुके हैं। इसी साल मां के 100वें जन्मदिन पर पीएम मोदी ने एक ब्लॉग लिखा। इसमें मां के संघर्ष से लेकर उनसे मिली सीखों का जिक्र है। मोदी ने लिखा है कि किस तरह उनकी मां परिवार के गुजारे के लिए दूसरों के घर के बर्तन मांजा करती थीं। उन्होंने लिखा है, ‘मां कभी अपेक्षा नहीं करती थीं कि हम भाई-बहन अपनी पढ़ाई छोड़कर उनकी मदद करें। वो कभी मदद के लिए, उनका हाथ बंटाने के लिए नहीं कहती थीं। मां को लगातार काम करते देखकर हम भाई-बहनों को खुद ही लगता था कि काम में उनका हाथ बंटाएं। मुझे तालाब में नहाने का, तालाब में तैरने का बड़ा शौक था इसलिए मैं भी घर के कपड़े लेकर उन्हें तालाब में धोने के लिए निकल जाता था। कपड़े भी धुल जाते थे और मेरा खेल भी हो जाता था।’ उन्होंने आगे लिखा, ‘घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं। समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे। कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं। उन्हें डर रहता था कि कपास के छिलकों के कांटें हमें चुभ ना जाएं।’
मोदी ने आगे लिखा है, ‘बचपन के संघर्षों ने मेरी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था। वो अपने परिवार में सबसे बड़ी थीं और जब शादी हुई तो भी सबसे बड़ी बहू बनीं। बचपन में जिस तरह वो अपने घर में सभी की चिंता करती थीं, सभी का ध्यान रखती थीं, सारे कामकाज की जिम्मेदारी उठाती थीं, वैसे ही जिम्मेदारियां उन्हें ससुराल में उठानी पड़ीं। इन जिम्मेदारियों के बीच, इन परेशानियों के बीच, मां हमेशा शांत मन से, हर स्थिति में परिवार को संभाले रहीं।’
‘मेरी मां जितनी सामान्य हैं, उतनी ही असाधारण भी’
मिट्टी की दीवारों और खपरैल से बना वो ‘घर’
मोदी ने ब्लॉग में अपने बचपन वाले घर का जिक्र किया। कैसे मां की मदद के लिए एक मचान बनवाई गई थी। मोदी ने लिखा, ‘वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वो बहुत ही छोटा था। उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था। कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था, उसी में मां-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे। उस छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी। वही मचान हमारे घर की रसोई थी। मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे।
मां समय की बड़ी पाबंद थीं। उन्हें भी सुबह 4 बजे उठने की आदत थी। सुबह-सुबह ही वो बहुत सारे काम निपटा लिया करती थीं। गेहूं पीसना हो, बाजरा पीसना हो, चावल या दाल बीनना हो, सारे काम वो खुद करती थीं। काम करते हुए मां अपने कुछ पसंदीदा भजन या प्रभातियां गुनगुनाती रहती थीं। नरसी मेहता जी का एक प्रसिद्ध भजन है “जलकमल छांडी जाने बाला, स्वामी अमारो जागशे” वो उन्हें बहुत पसंद है। एक लोरी भी है, “शिवाजी नु हालरडु”, मां ये भी बहुत गुनगुनाती थीं।’
‘कितनी भी दुर्गम स्थिति हो, कभी परेशान नहीं होती मां’
हीरा बा के बारे में मोदी ने लिखा कि ‘अपना काम किसी दूसरे से करवाना उन्हें कभी पसंद नहीं आया।’ पीएम ने अपने ब्लॉग में लिखा कि वडनगर वाले मिट्टी के घर में बारिश के मौसम से कितनी दिक्कतें होती थीं। लेकिन मां की कोशिश रहती थी कि परेशानी कम से कम हो। इसलिए जून के महीने में, कड़ी धूप में मां घर की छत की खपरैल को ठीक करने के लिए ऊपर चढ़ जाया करती थीं। वो अपनी तरफ से तो कोशिश करती ही थीं लेकिन हमारा घर इतना पुराना हो गया था कि उसकी छत, तेज बारिश सह नहीं पाती थी। बारिश में हमारे घर में कभी पानी यहां से टपकता था, कभी वहां से। पूरे घर में पानी ना भर जाए, घर की दीवारों को नुकसान ना पहुंचे, इसलिए मां जमीन पर बर्तन रख दिया करती थीं। छत से टपकता हुआ पानी उसमें इकट्ठा होता रहता था। उन पलों में भी मैंने मां को कभी परेशान नहीं देखा, खुद को कोसते नहीं देखा। आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि बाद में उसी पानी को मां घर के काम के लिए अगले 2-3 दिन तक इस्तेमाल करती थीं। जल संरक्षण का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है।’
‘मैं तो निमित्त मात्र हूं, वो तो भगवान का है…’
मां को पहले ही आभास हो जाता था कि बेटा क्या करने वाला है। हीरा बा के बारे में पीएम मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा, ‘मां को आभास हो रहा था कि मैं कुछ अलग ही दिशा में जा रहा हूं। मुझे याद है, एक बार हमारे घर के पास गिरी महादेव मंदिर में एक महात्मा जी आए हुए थे। वो हाथ में ज्वार उगा कर तपस्या कर रहे थे। मैं बड़े मन से उनकी सेवा में जुटा हुआ था। उसी दौरान मेरी मौसी की शादी पड़ गई थी। परिवार में सबको वहां जाने का बहुत मन था। मामा के घर जाना था, मां की बहन की शादी थी, इसलिए मां भी बहुत उत्साह में थीं। सब अपनी तैयारी में जुटे थे लेकिन मैंने मां के पास जाकर कहा कि मैं मौसी की शादी में नहीं जाना चाहता। मां ने वजह पूछी तो मैंने उन्हें महात्मा जी वाली बात बताई।
मां को दुख जरूर हुआ कि मैं उनकी बहन की शादी में नहीं जा रहा, लेकिन उन्होंने मेरे मन का आदर किया। वो यही बोलीं कि ठीक है, जैसा तुम्हारा मन करे, वैसा ही करो। लेकिन उन्हें इस बात की चिंता थी कि मैं अकेले घर में रहूंगा कैसे? मुझे तकलीफ ना हो इसलिए वो मेरे लिए 4-5 दिन का सूखा खाना बनाकर घर में रख गई थीं।
एक दिन आखिरकार मैंने मां-पिता को घर छोड़ने की इच्छा बताई और उनसे आशीर्वाद मांगा। मेरी बात सुनकर पिताजी बहुत दुखी हुए। वो थोड़ा खिन्न होकर बोले- तुम जानो, तुम्हारा काम जाने। लेकिन मैंने कहा कि मैं ऐसे बिना आशीर्वाद घर छोड़कर नहीं जाऊंगा। मां को मेरे बारे में सब कुछ पता था ही। उन्होंने फिर मेरे मन का सम्मान किया। वो बोलीं कि जो तुम्हारा मन करे, वही करो। हां, पिताजी की तसल्ली के लिए उन्होंने उनसे कहा कि वो चाहें तो मेरी जन्मपत्री किसी को दिखा लें। हमारे एक रिश्तेदार को ज्योतिष का भी ज्ञान था। पिताजी मेरी जन्मपत्री के साथ उनसे मिले। जन्मपत्री देखने के बाद उन्होंने कहा कि “उसकी तो राह ही कुछ अलग है, ईश्वर ने जहां तय किया है, वो वहीं जाएगा”।
मैंने जब घर छोड़ने का फैसला कर लिया, तो उसे भी मां कई दिन पहले ही समझ गई थीं। मैं मां-पिताजी से बात-बात में कहता ही रहता था कि मेरा मन करता है कि बाहर जाकर देखूं, दुनिया क्या है। मैं उनसे कहता था कि रामकृष्ण मिशन के मठ में जाना है। स्वामी विवेकानंद जी के बारे में भी उनसे खूब बातें करता था। मां-पिताजी ये सब सुनते रहते थे। ये सिलसिला कई दिन तक लगातार चला।’
मोदी ने आगे लिखा, ‘आज लोग मां के पास जाकर पूछते हैं कि आपका बेटा पीएम है, आपको गर्व होता होगा, तो मां का जवाब बड़ा गहरा होता है। मां उन्हें कहती है कि जितना आपको गर्व होता है, उतना ही मुझे भी होता है। वैसे भी मेरा कुछ नहीं है। मैं तो निमित्त मात्र हूं। वो तो भगवान का है।’