करवा चौथ को लेकर सोशल मीडिया पर कई जोक्स चलते रहते है क्यों नारी ही भूखी प्यासी रहे , पुरुष क्यो नही रखते पत्नी की लंबी उम्र के लिए व्रत , करवा चौथ की एक ही कथा क्यों अन्य क्यों नही जैसे कई सवाल उठाए जाते है किंतु सनातन हिन्दू धर्म और संस्कृति ने समय के साथ आये बदलाव को अंगीकृत किया है इसी का असर है कि हमारी भावनाएं इतनी जल्दी आहत नही हो पाती । उत्तरी भारत खास कर हरियाणा , राजस्थान व पंजाब का करवाचौथ बुद्धू बक्से की कृपा और स्टार प्लस जैसे चैनलों की नकल के चलते छत्तीसगढ़ में भी पहुंच गया अब छत्तीसगढ़ की नई पीढ़ी इसे अंगीकृत कर चुकी है । यही हिन्दू धर्म की अनेकता में एकता वाली विशेषता है कि हम अच्छी चीजों को अपने धर्म व संस्कृति में भी धीरे से समाहित कर लेते है । खैर बात करवा चौथ व्रत पर नारी मन की बात को लेकर चालू हुई थी । नारी मन की बात करते है ।
एक नारी मन आधुनिकता की दौड़ में जीन्स पेंट पहनने के साथ पूछता है आखिर मैं ही व्रत क्यों रखूं पतिदेव क्यों न रखे । फिरनारी मन के एक कोने से आवाज आती है आज मेरा दिन है मेरे भूले हुए गहने आज ही तो बाहर आते हैं । मंगलसूत्र , मांग टीका , कंगन, मेहँदी , सिन्दूर , मेरा गर्व है यह सब हमारे भव्य संस्कारों और संस्कृति का हिस्सा हैं। शास्त्र दुल्हन के लिए सोलह सिंगार की बात करते हैं। इस दिन सोलह सिंगार कर के फिर से दुल्हन बनूँगी विवाहित जीवन फिर से खिल उठेगा। आज मेरा दिन है तो मुझे ही लाड़ प्यार मिले मैं क्यों बाँटू अपने हिस्से के लाड़ को और हाँ ये भी जान लो जो मेरे लिए सब कुछ करता है। मैं व्रत करूंगी अपनी ख़ुशी से क्योंकि हमारा रिश्ता अन्न जल से भी महत्वपूर्ण है कीमती है ये मेरा अपना तरीका है मेरे जीवन के महत्वपूर्ण व्यक्ति के प्रति अपने प्यार को प्रकट करने का ख़ुशी मनाने का और हां परम्मपरा और संस्कृति को तर्क और लॉजिक के तारजु में मत तौलना लॉजिक हमेशा काम नही करता मानव जीवन मे चमत्कार की उम्मीद हमेशा अपना स्थान बनाये रखती है । तर्क शास्त्र के बीच चमत्कार की उम्मीद की आशा हमें नुकसान भी तो नही पहुंचाती है फिर हम सब जानते हैं लॉजिक हमेशा काम नहीं करता कहीं न कहीं कभी न कभी किसी चमत्कार की गुंजाईश हमेशा बनी रहती है ।
अरे हाँ याद आया मेरे वो अक्सर गाते है –
“चाँद सी मेहबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था ,
हाँ तुम बिलकुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था ।”
उनके इस गाने से इस दिन समझ आता है कि दरअसल ये वही रात है जब मैं चूल्हे चौके घर गृहस्थी की भगभाग वाली ज़िन्दगी में प्रकृति को अनुभव करूँ चन्द्रमा को देखूं और महसूस करूँ कि मुझे आखिर चाँद सी सुन्दर क्यों कहा गया है । हिन्दू धर्म और संस्कृति का मजाक उड़ाने वालो कभी करके देखो कैसा आत्मिक सुख मिलता है। कुतर्कों पर मत जाईये अंदर की श्रद्धा को जगाईये और याद रखो की यह देश सावित्री जैसी देवियों का है जो मृत्यु के द्वारा से अपने पति को खींच लायी थी ।
और अंत मे :-
“मेरी साँसों को गीत और आत्मा को साज़ देती है ।
ये करवचौथ हम सब को जीने का नया अंदाज़ देती है ।।”
#जय_हो 27 अक्टूबर 21 कवर्धा (छत्तीसगढ़)