Saturday, July 27

वरिष्ठ पत्रकार चंद्र शेखर शर्मा की बात बेबाक, चलो भाई गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल फिर से खुल गए है

कवर्धा । भवन की मरम्मत , शिक्षा व्यवस्था आदि अनादि का अधिकारी अफसर विद्यालयों का निरीक्षण करेंगे । निरिक्षण अनुशासन के लिए जरुरी भी है । मीडिया को भी कुछ ब्रेकिंग खबरे मिलेंगी कि आज फलाना स्कूल चेक हुआ और बच्चों से राजधानी , प्रधानमंत्री , राष्ट्रपति , मुख्यमन्त्री का नाम पूछा , 15 तक का पहाड़ा पूछा , अंग्रेजी और संसकृत में अनुवाद करवाया और बच्चों को कुछ नहीं आया, मध्यान्ह भोजन गुणवत्ताहीन मिला । हमारे देश जैसी अद्भुत प्रशासनिक व्यवस्था शायद ही दुनिया के किसी कोने में देखने को मिले जहाँ शिक्षा से ज्यादा जरूरी भोजन है । मध्यान्ह भोजन का संचालन कोई करेगा , खाना कोई और बनाएगा , सामान ख़रीदने की जिम्मेदारी की किसी और की पर निपटेगा गुरुजी । ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि ऐसा करके हम समाज में, लोगों को, अभिभावकों को क्या सन्देश दे रहे है कि सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को विषय का ज्ञान नहीं है? उनको हिन्दी, अंग्रेजी, गणित,विज्ञान आदि नहीं आती ? हो सकता कुछ फ़र्ज़ी डिग्रीधारी गुरूजी बन गए हो जिन्हें कुछ नहीं आता हो पर ऐसे लोगो पर कार्यवाही भी तो करो ?
लक्जरी गाडियो और एसी कमरो में बैठ कर शिक्षा निति बनाने और निर्णय करने वाले बुद्धिजीवी ,कम पढ़े लिखे जनप्रतिनिधियो की शिक्षा को लेकर साल दर साल प्रयोग करने की निति ने शिक्षा व्यवस्था को देश की जीती जागती सबसे बड़ी प्रयोगशाला बन कर कबाड़ा कर के रख दिया है । शिक्षा और अनुशासन के लिये भय भी जरूरी होता है । आज भय नाम की चीज छात्रो के मन से गायब हो गई है । कभी 8 वी तक सबको पास करने की निति तो कभी परीक्षा का फरमान ने बच्चों में गुरूजी नाम के जीव का भय समाप्त कर दिया ।
गुरुजी ने डांटा नही की बच्चा कह पड़ता है –
माना कि मैं पहाड़ा नही जानता हूं ,
पर उत्पीड़न की धारा अच्छे से पहचानता हूं।
अब समझ लीजिए बेचारे गुरुजी का दर्द ,
क्या पढ़ाये पढाना हो गया है मुश्किल ।
अफसरों के जो गीत गाते रहे ,
वही नाम-ओ-दाद पाते रहे ।
खैर बात यहां स्कूलो के निरिक्षण को ले कर हो रही थी यहाँ विचारणीय पहलू यह है कि अफसर आखिर किस उद्देश्य से स्कूलों का निरीक्षण करने जाते हैं?
अपनी अफसरी दिखाने…….?
या फिर व्यवस्था दुरुस्त करने …… ?
साहब बच्चों के सामने अधिकारिओ की फ़ौज मोबाईल कैमरे और गनमैन की तामझाम के साथ पहुँचोगे तो अच्छे अच्छों की फट जायेगी फिर तो वो मासूम बच्चे है । बच्चा बन्दूक देखेगा कैमरे वाले को देखेगा तो फटी में क्या सवालो का जवाब दे पायेगा ? बच्चों के बीच पालक अभिभावक गुरूजी और दोस्त बनकर अकेले बिना तामझाम के जाओ तो बच्चे भी बिना झिझक के खुल के मन की बात करेंगे ।
शिक्षा कोई जनमघुट्टी या पोलियो की दवा नहीं जो बच्चे का मुँह खोला और डाल दी दो बूँद शिक्षा की और बच्चे को मिल गई शिक्षा ।
आज की शिक्षा व्यवस्था को लेकर लगभग 5 दशक पहले श्रीलाल शुक्ल जी द्वारा राग दरवारी में लिखी बाते आज भी प्रासंगिक लगाती है …
“सरकारी शिक्षा रास्ते में पड़ी हुई एक कुतिया है, जिसको कोई भी ठोकर मारकर चला जाता है। जो भी मंत्री, अधिकारी आते हैं बजाय इसके कि वह शिक्षा व्यवस्था को ठीक करें, शिक्षकों को जिम्मेदार मानकर बात शुरू करता है। हर आदमी सरकारी शिक्षा के खिलाफ वक्तव्य देकर चला जाता है, मगर उसके लिए कुछ नहीं करता।”
लिखने को तो बहुत कुछ है – किंतु इतना लंबा पढ़ेगा कौन तो अपुन आज की बात बेबाक इधरीच ख़त्म करते है।
और अंत में :-
तेरे शहर के दर्ज़ी भी, तुझसे ही सितमगर निकले।
एक धागा खींचा नहीं ,के सारे ज़ख्म उधड़ गये।।
#जय_हो 08जुलाई23 कवर्धा (छ. ग.)

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