Saturday, September 7

वरिष्ठ पत्रकार चंद्रशेखर शर्मा की बात की बेबाक.. कल ‘अर्थ डे’ था ?

कुछ लिख नही पाया तो पाठकों का तगादा आ गया क्या महराज आज कल कुछ लिख नही रहे गर्मी हाय तौबा मचा रही है कल अर्थ डे भी था आपकी कलम से 2 शब्द नही निकल पा रहे क्या बात है । पाठकों की शिकायत सही है कुछ लिख नही पाया । कुछ लिखूं सोच ही रहा था कि गोरहीन टुरी गली से गुजरते पूछती है आज बहुत चिंता मगन हस का बात हे महराज ? बताया सब शिकायत कर रहे गर्मी , अर्थ डे पर आप कुछ नही लिखे उसी को सोच विचार कर रहा । तहु पगला हस का अब लोगन एसी कमरा में बैठ के ज्ञान बाँटही कंक्रीट की जंगल पैदा करही प्रकृति ले खिलवाड़ करही त गर्मी नई बाढही त का बाढही और जेखर करा अर्थ मतबल पईसा हावय ओखर आगू पाछु सब घुमथे । गोबरहिंन टुरी की बात सुनकर दिमाग की गुल बत्ती जल पड़ी और ख्याल आया मतलबी दुनिया मे अर्थ डे का मतलब वही ‘अर्थ’ तो नही जिसके छोटे छोटे टुकड़ों के लिए लाखों फाईले अधिकारी और बाबुओ के टेबल में खिसक नहीं पा रही , खैराती (सरकारी )अस्पताल में बिना अर्थ के कोई काम नहीं होता । पार्टियां इलेक्टोरल बॉन्ड के बहाने अर्थ के फेर में है । ईडी , एसीबी , आईटी , ईओडब्लू के छापे के बाद अर्थ के खेल में लगे खद्दरधारी , सरकार में बैठते ही घपलों घोटालों पर पहले कोरी भाषणबाजी कर फिर अर्थ के चक्कर में घनचक्कर बने फिर रहे । अर्थ का लालच सरकारों को बेईमान बना देता है फिर चावल ,शराब , कोयला , गोबर कुछ भी खाया पचाया जा सकता है । अर्थ के ही फेर में सड़के बनने के पहले उखड़ने लगती है , समान खरीदे बिना भुगतान हो जाता है , घटिया निर्माण , कमीशनखोरी नेता अधिकारी ठेकेदारो की मिलीभगत से बेख़ौफ़ जारी है नेता की चुप्पी के भी अपने अर्थ है ,अर्थ के चक्कर में केस कोर्ट में लंबित पड़े हैं। भाई अर्थ में सारा खेल अर्थ का ही है अर्थ का अर्थ सब अपने मतलब और जरुरत के हिसाब से लगा लेते है । अपुन को तो अर्थ डे का मतलब आज की रोजी कैसे निकले और नेता अधिकारी को सात पुस्तो का इंतजाम कैसे हो समझ आया समाज सेवी जरूर अर्थ रूपी अनुदान के फेर में दो चार पेड़ पौधे लगा फ़ोटो खिंचवा शोसल मीडिया में अर्थ डे मना रहे । बाकी असली ट्री मैन तेलंगाना के खम्मम जिले के रेड्डीपल्‍ली गांव में रहने वाले दरिपल्‍ली रमैया , भोजपुर के विष्णु , पीपल बाबा जैसे गिने चुने लोग है जिन्होंने वास्तविक रूप से अर्थ डे को प्रतिदिन सार्थक किया हुआ है जिनकी वजह से थोड़ी बहुत हरियाली बची है वरना जिम्मेदार तो जंगल मे मंगल मानते जल जंगल और जमीन बेचने में लगे है ।

चलते चलते :-

कमीशन का है चक्कर या है कोई और बात कि श्रम नियमो के पालन के बिना हो रहा लोकनिर्माण विभाग में ठेकेदारों को भुगतान ?

और अंत में :-

मेरी बेअदबी तो मशहूर हैं जमाने में,
फ़िक्र तो वो करें जिनके गुनाह पर्दे में हैं ।

#जय_हो 23 अप्रैल 2024 कवर्धा (छत्तीसगढ़)

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