कबीरधाम जिले के नक्सल प्रभावित वनांचल ग्राम लोहारीडीह माबलिचिंग कांड के बाद पुलिसिया बर्बरता की नृशंस कहानी बन कर रह गया है । दो परिवारों के बीच चली आ रही जमीनी दुश्मनी के बीच सरहदी जिले के जंगलों में शिवप्रसाद उर्फ़ कचरू साहू की फांसी पर लटकी मिली लाश को हत्या बताते परिजनों व ग्रमीणों ने क्रूर रूप अख्तियार किया और गांव के ही रघुनाथ साहू के पूरे परिवार को जिंदा जलाने की कोशिश की जिसमें रघुनाथ साहू की जिंदा जलकर मौत हो गई उनकी पत्नी 50 % से अधिक जलकर जीवन मृत्यु से संघर्ष कर रही है । आगजनी और हत्या के बाद दूसरे पक्ष की कई लोग पुलिसिया पिटाई से गंभीर है कुछ को ईलाज के लिए सूबे की राजधानी के सरकारी अस्पताल में भर्ती किया गया है । आरोपी परिवार के एक व्यक्ति प्रशांत साहू की पुलिसिया पिटाई से मौत भी हो जाती है उसके शरीर पर चोट के निशान पुलिसिया क्रूरता के जीते जागते सबूत है ।
चर्चाओं पर थोड़ा बहुत भी यकीन किया जाय तो आक्रोशित व आगजनी के आरोपी ग्रमीणों द्वारा रील मास्टर पुलिस कप्तान और अन्य पुलिस कर्मियों पर हमला और झुमाझपटी की गई थी जो रील मास्टर को गवारा नही हुआ और आरोपित ग्रामीणों की बेदर्दी की पराकष्ठा पार करते पिटाई की गई । इस पिटाई में महिला पुरूषों यहां तक बच्चो तक को नही बख्शा गया । एसपी के निर्देशन में एक बालिका की पिटाई का वीडियो भी वायरल हुआ है । जो वर्दी पर एक बदनुमा दाग है । मामले में सरकार की छीछालेदर होते देख प्रदेश की साय सरकार ने भले ही अपनी इज्जत बचाने एक प्रशिक्षु आईपीएस को रातों रात निलंबित जरूर किया किन्तु रील मास्टर के सामने पिटाई के वीडियो वायरल होने के बावजूद उनका सिर्फ स्थांतरण लोगो को पच नही रहा लोग चर्चा कर रहे कि वॉयरल रील भी कही रील प्रेम का हिस्सा तो नही थी। पुलिस मुख्यालय में रील मास्टर एसपी का स्थानांतरण कर भले ही साहू समाज और जनता के आक्रोश को कम करने कांग्रेस के हाथ से मुद्दा छीनने का प्रयास किया जा रहा है किंतु चर्चाओं का बाजार सरगर्म है कि महादेव की कृपा के चलते पुलिसिया क्रूरता के जीते जागते सबूत के बावजूद अभयदान दिए जाने से सरकार बैकफुट पर नजर आ रही है । हांलाकि सूबे के गृहमंत्री विजय शर्मा जांच उपरांत कठोर कार्यवाही की बाते कर रहे है उम्मीद है कठोर कार्यवाही भी होगी ।
इन सबके बीच सवाल तो यह भी उठाए जा रहे है कि शिक्षा से मनोरोग विशेषज्ञ और पेशे से पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव कानून के जानकार मामले की गंभीरता क्यों नही समझ पाए या फिर ग्रामीणों द्वारा उन पर उठे हाथ झुमाझपटी की (जैसा कि चर्चा है ) की बदले की कार्यवाही में ग्रामीणों की जमकर कुटाई पिटाई की गई है जिससे एक कि मौत हो गई । ला एंड ऑर्डर बनाने गई पुलिस ला एंड ऑर्डर ही बिगाड़ आई । आज पुलिसिया गलती से सरकार की छीछालेदर हो रही रही । कांग्रेस को बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया । पूरा प्रदेश आक्रोश की आग में झुलस रहा ।
प्रेस कांफ्रेंस लेने पहुंचे आईजी दीपक झा सवालों के जवाब नही दे पा रहे । 4 दिनों में शॉर्ट पीएम रिपोर्ट नही मिल पाती । चोटें जेल दाखिल के पहले की है या जेल के अंदर की का जवाब आईजी के पास नही है । सनद रहे रील मास्टर एसपी के ऐसे कई बयान है जिसमें निरापराध को आरोपी बना कर पेश कर केश जल्द हल करने का तमगा हासिल कर शोसल मीडिया के हीरो बने है । सिंघनपुरी थाना क्षेत्र में बच्चे की हत्या मामले में फारेस्ट गार्ड को बतौर आरोपी पेश कर वह वाही लूट तो ली किन्तु आरोपी दूसरा निकलने के बाद माफी मांगना तक उचित नही समझते ।
वैसे रील मास्टर साहब अपनी रील वाली छवि और सोशल मीडिया में छाए रहने के प्रेम ( कुछ लोग इसे मनोरोग भी कहते है जिसे मेडिकल भाषा में Histrionic Persanality Disorder भी बताया जाता है जिसमे आदमी को लाइम लाइट में रहने की आदत , अटेंशन पैदा करने की इच्छा , ड्रामा करना अच्छा लगता है ) के चलते रील बनवा लोगो की सामाजिक बेइज्जती करने में बड़ा गर्व महसूस करते है । नाबालिक बच्चो , लड़कियों व अन्य कई ऐसे लोगो को नियमो के उल्लंघन करते व गाड़ी चलाते पाए जाने पर धमकाते चमकाते कई रील सोशल मीडिया में तैर रहे है जो लाइक्स बटोरने और यू ट्यूब से कामाई का साधन हो सकते है किंतु किसी के समाजिक मानहानि का अधिकार नही मिल जाता , किन्तु पेशे से पुलिस अधीक्षक शिक्षा से मनोरोग विशेषज्ञ का ऐसा करने के पीछे क्या मनोविज्ञान है ये तो वही जाने । सरकार के रील बनाने के प्रतिबंध के बाद आज कल उनका डायलाग इसका वीडियो मीडिया ग्रुप में डालो चर्चित है कुल मिला कर कैसे भी करके अपनी रील डलवाने का मजा लेना शगल बन गया है ।
छोटे मोटे अपराधों में रील और वीडियो बनाकर डालने वाले साहब लोहारीडीह कांड के बाद से कवर्धा से रवानगी तक विभाग और पत्रकारों के बीच जानकारी साझा करने बनाये गए पुलिस मीडिया ग्रुप में कोई जानकारी दिए ना कोई विज्ञप्ति दिए जो खबरनवीसों के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है । आखिर गृह मंत्री के गृह जिले में पुलिस क्या और क्यों छुपाना रही थी । कही विभाग ने अपनी करतूतों पर पर्दा डालने गम्भीर आरोपियों को जेल तो दाखिल जबरदस्ती तो नही करा दिया था ? यदि गम्भीर थे तो जेलर की क्या भूमिका रही ? उन्हें इलाज समय पर क्यो नही मिल पाया ? जब सब सदस्य गिरफ्तार हुए तो उनकी गिरफ्तारी की सूचना पुलिस ने किसे दी और कब दी ? घर मे बचे नाबालिक छोटे छोटे मासूमो को घर में किसके भरोसे छोड़ गई पुलिस ? जैसे कई अनुत्तरतीत सवालों के जवाब कभी मिल पाएंगे या फाइलों के बोझ बनकर रह जाएंगे ये तो आने वाला वक्त और न्यायिक जांच की रिपोर्ट ही बता पाएगी ।
खैर बात यहां लोहारीडीह कांड में पुलिसिया क्रूरता को लेकर चालू हुई थी । पुलिसिया क्रूरता से प्रशांत की मौत ने सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है । साहू समाज न्याय की मांग को लेकर सड़क पर है । कांग्रेस मौके को भुनाने राजनीति की दुकानदारी सजाए बैठी है । सत्तापक्ष के नेता साहू समाज के वोटों को अपने पक्ष में बनाये रखने लोहारीडीह का दौरे पर दौरे कर ग्रामीणों के साथ भोजन कर उनके दुख को बांटने का काम कर रहे है । इन सबके बीच पूरे घर के सदस्यों के न्यायिक हिरासत में जाने के बाद बचे नाबालिक बच्चो के सामने पेट भरने की समस्या और भविष्य की चिंता अलग है । मामले के ठंडे होने के बाद धीरे धीरे नेता अपनी अपनी राजनीति में व्यस्त हो जिला जनपद के चुनावों में जुट जाएंगे । जनता अपनी आदतानुसार धीरे धीरे सब भूलने लगेगी अगली नई किसी घटना दुर्घटना में अपना उन्नमाद फिर से जगाने ।
और अंत में :-
झूठ से कहीं अधिक ख़तरनाक होता है अर्धसत्य,
इससे अश्वत्थामा नहीं मरता, द्रोणाचार्य मारे जाते हैं ।
#जय_हो 22 सितंबर 2024 कवर्धा (छत्तीसगढ़)