Saturday, July 27

वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की ताक… धिना… धिन नेता आएगा… अपने ‘काम’ से कामचोर तो भैया ‘गया काम से’

कुछ दशक पहले देश का जो माहौल था उसमें बड़े नेता अपने घर में आराम से कुर्सी तोड़ते थे और उनके कार्यकर्ता गली-मोहल्ले में केवल फाॅर्मेलिटी के लिये प्रचार करते थे। और ऐसे में भी वो नेता आराम से चुनाव जीत जाते थे। केवल पार्टी या केवल नेता का नाम ही काफी होता था। वोटर भी ईधर-उधर नहीं देखते थे। नाम से प्रभावित वोटर परम्परागत रूप् से वहीं ठप्पा लगाते थे जिसका नाम बड़ा  होता था। कोई दूसरा नाम सामने आने पर ये आम प्रचलित डायलाॅग था कि ‘क्यों अपना वोट खराब करना’। और इस तरह बड़े नामवाला नेता घर बैठे जीत जाता था…  पर अब …

मीठा लोगेबो काम भी करोगे

तभी चुनावी वैतरणी तरोगे

अब तो भैया जान पे बन आती है। अब तो बस काम करने वाला जीतता है। जो काम करेगा साथ ही मीठा भी बोलेगा यानि व्यवहारकुशल होगा वहीे जीतेगा। वरना पानी भरता दिखेगा। उचे-उंचे नामवर लोग धाराशायी होने लगे हैं। और कोने काने से आए छोटे-मोटे नेता पताका फहरा लेते हैं। केवल काम, लोगों के बीच उपस्थिति और व्यवहार के दम पर।
अब काम के भी कई प्रकार होते हैं। मसलन कोई काम सीधा कानूनी होता है। कोई थोड़ा सा गैरकानूनी होता है। कोई पूरा ही गैरकानूनी होता है। तीनों ही तरह के काम अपने यहां संभव हैं बस कीमत अलग-अलग होती है।
दूसरा काम कराने वाला कौन है इस पर भी डिपेण्ड करता है।

प्रेम से अधिकारी नहीं मानते
सज्जन नेता खाक छानते

नेता कई तरह के होते हैं। कुछ शान्त जिनकी चलती नहीं, काम नहीं होता, सुनवाई नहीं होती। अधिकारी उन्हें भाव नहीं देते। आमतौर पर भाजपा के मूल नेताओं को सीधा समझा जाता है और धूर्त अधिकारी उन्हें आराम से घुमा देते हैं। कोई खास तवज्जो नहीं देते।

लेकिन अब पिछले कुछ समय से दो कारणों से माहौल में थोड़ा परिवर्तन दिखने लगा है।

एक तो भाजपा के पास सत्ता की चासनी देखकर दूसरे दलों के चलते-पुर्जे नेता भी बहुतायत में भाजपा में प्रवेश लेते रहे हैं। जिनके स्वभाव में दबंगई होती है। ये मूल भाजपा से अलग होते हैं। कहा जा सकता है कि ये ‘चमकाने’ में माहिर होते हैं और चमका कर काम कराना जानते हैं जल्दी ही पार्टी में इनकी तूती बोलने लगती है। ये प्रभावशाली स्थान बना लेते हैं।

अधिकारी केवल दबंग की सुनता है
सज्जन उसके आगे सर धुनता है

दूसरा ये कि सत्ता में रहते-रहते भाजपा के कई नेताओं को ‘न्यूसंेस क्रिएट’ करना आ गया है। बिना न्यूसेंस अधिकारी सुनते नहीं, बात मानते नहीं, काम करते नहीं। तो भाजपा के कुछ लोग इस तरकीब को समझ गये हैं और अब कुछ हद तक काम कराने में सक्षम होते जा रहे हैं। धीरे-धीरे।

एक पार्टी के नेता इस बात के लिये फेमस हैं कि जब भी कोई अधिकारी उन्हें नियम-कायदा बताता है तो वे उसका काॅलर बिना पकड़े ही उसकी मां का वास्ता देकर कहते हैं कि….
‘अबे देख नियम मत समझा। हमारा आदमी है काम हर हाल मे होना चाहिये’। अधिकारी को पता होता है कि उसने जितना काला-पीला किया है वो सब उगलवा लेगा। और फिर नंगे से खुदा बचाए। इतिहास गवाह है कि नियम की दुहाई देने वालों को बिना नियम जंगली इलाके में भेज दिया जाता है।

अनुशासन की
घुट्टी पिये कार्यकर्ताओं को
घुमा दिया जाता है

ये बात भाजपा के कार्यकर्ता खुलेआम कहते है कि भाजपा में काम केवल नेताओं को होता है कार्यकर्ताओं का नहीं। कार्यकर्ताओं को नियम कायदे और अनुशासन की घुट्टी पिलाई जाती है। अपनी पार्टी के, पराई पार्टी के, व्यापारी के, अधिकारी के…. काम केवल उनके होते हंै जिनकी डायरेक्ट उपर तक पहुंच होती है। और उपर तक पहुंच कैसे बनती है ये सारा जग जानता है।

एक बेहतरीन उदाहरण देखिये। एक व्यापारी का अनाज का कोई मामला फूड आॅफिस मंे फंस गया। वो व्यापारी राजनांदगांव के एक बड़े, डाॅ रमनसिंह के निकट के नेता से मिला। तब डाॅ रमनसिंह मुख्यमंत्री थे।
नेता ने उसे क्या जवाब दिया पता है…. ? नेता ने कहा ‘देखो अभी तो मैं उसे बोलकर तुम्हारा काम करवा दूंगा, पर बाद में वो तुम्हें और परेशान करेगा, ये सोच लेना’।

लो… गयी भैंस पानी में…

एक तो व्यापारी सीधा सादा, पहले से अंदर से भयभीत, दूसरा नेता ने डर की घुट्टी पिला दी। सो पिलपिला गया और जितना पैसा अधिकारी ने मांगा तत्काल दे दिया और अधिकारी के पैर पड़कर राहत महसूस की।
हालांकि समझने वाले समझ गये कि नेताजी की अधिकारी से क्या सैटिंग थी। अधिकारी को नेता के रहमोकरम पर और नेता को अधिकारी के मनी कलेक्शन पावर पर टिके रहना था।

काम करते हैं लातों से
समझते नहीं बातों से

छत्तीसगढ़ के एक कांग्रेसी स्टाईल के भाजपा के पूर्वमंत्री का दिलचस्प रवैया देखिये। एक कार्यकर्ता का काम एक अधिकारी के पास अटका था। मामूली सी नियम की अनदेखी करके उस काम को किया जा सकता था।
लेकिन ठसन में अधिकारी काम नहीं कर रहा था या कुछ अधिक मांग थी। लिहाजा वो छोटा कार्यकर्ता सहमता सा मंत्रीजी के पास पहुंचा। मंत्रीजंी के पीए ने अधिकारी से मोबाईल पर बात की तो अधिकारी ने अपनी ही ठसन में ‘मीटिंग में हूं, बाद में बात करता हूं’ बोल दिया।
मंत्रीजी को भारी खल गया। दोबारा पीए ने फोन लगाया और मंत्रीजी ने बात कराई। बीसियों लोगों के बीच मंत्रीजी बोले ‘देखो ! दस नंबर की चप्पल पहनता हूं वहीं पर आकर चप्पल से मारूंगा’।
बस फिर क्या था। अगले ही दिन तत्काल सबसे पहले अधिकारी ने वो काम किया जिसके लिये कार्यकर्ता को घुमाया जा रहा था, वो भी फोकट में। जाहिर तौर पर वो भाजपा का नेता आज अजेय बना हुआ है। छोटा-बड़ा हर कार्यकर्ता/नेता उससे खुश है। विरोध की आंधी में भी उसका दिया जलता रहता है जबकि बाकी नेता अंधेरे में खो से जाते हैं।

वास्तव में देखा जाए तो ‘इन लोगों’ से काम कराने का यही सही तरीका है। कहते हैं न ‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते’।
कोई भी नेता हो अब अगर काम कराने में सक्षम है या काम कराने के लिये संघर्ष करता है तो उसकी लोकप्रियता बढ़ती है। साथ ही यदि व्यवहार कुशल है तो जनता चाहती है। जनता के साथ दबंगता का जमाना लदता जा रहा है। विनम्र और  जनता के प्रति ईमानदार होना होगा तभी राजनीति में सफलता मिलेगी।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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