Saturday, July 27

वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की ताक धिना धिन….वीरू और जय हर बात के दो पहलू होते हैं एक अच्छा एक बुरा।

जी हां शोले में ऐसा ही दिखाया गया था। ठाकुर जेलर साहब से कहता है कि वीरू और जय बदमाश हैं लेकिन अच्छे इंसान हैं।

इंसान और सिक्के में यही फर्क होता है कि सिक्का खोटा हो तो दोनो तरफ से खोटा होता है जबकि इंसान खोटा हो तो उसका दूसरा पहलू अच्छा कारगर भी होता है।

यही सोचकर ठाकुर दोनों बदमाश वीरू और जय को काम पर लगा देता है गब्बर सिंग हो पकड़ने के काम पर।

अंगूर खट्टे हैं
हर बात के दो पहलू होते हैं एक अच्छा एक बुरा।

अब भला ये क्या बात हुई… आईएनडीए गठबंधन के पेट में मरोड़ क्यों उठने लगे ? नीतिशकुमार मोदीजी के साथ दूध शक्कर हो रहे हैं। इसमें क्या खास बात है। जी 20 के भोज में दोनों ने हंसकर बात कर ली तो ?

वैसे तो इस बात में दम है कि नीतिश के पास अब बचा ही क्या है जो वे किसी पक्ष को प्रभावित कर पाएं ?

इण्डियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव एलायंस यानि आईएनडीए विपक्षी एकता का मंच है। विपक्षी एकता याने सारे विपक्षी दलों का मिलाजुला चैलेंज। इसमें सर पर ताज सजाने के लिये नीतिश कुमार आतुर बैठे थे।

उन्हें, सारे दलों के नेता और लगभग सारे देश को यकीन था कि वे ही विपक्षी दल के संयोजक बनेंगे। मगर अफसोस कांग्रेस ने बाजी मार ली या किसी और ने ऐसी काड़ी की कि बेचारे मुंह लटका के पिछली बैठक से लौट गये लालू के साथ।

फिर महाविकास अघाड़ी की मेजबानी में हुई बैठक के लिये वे कहने लगे थे कि ‘मुझे कुछ नहीं बनना है मैं तो केवल ये चाहता हूं कि एकता बनी रहे… ’समझ गये न। कौन सा मुहावरा फिट होता है यहां ?

अंगूर खटटे हैं… तो वहां के अंगूर खट्टे थे तो फिर से मीठे अंगूर की तलाश में निकले हैं शायद मोदीजी के पास मिल जाएं।

इसमें भी नाखुश, उसमें भी नाखुश

हर बात के दो पहलू होते हैं एक अच्छा एक बुरा।
टमाटर महंगे हो गये इतने महंगे हो गये कि प्याज के बदले टमाटर ही रूलाने लग गये। दो सौ रूप्ये किलो।
अब विपक्ष को मौका मिला। विपक्ष चिल्लाया हाय महंगाई आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है। हालांकि टमाटर महंगे होने से किसान खुश हो गया था।

अब टमाटर सस्ता हो गया। 40… 30… 20… 10… फिर इतना सस्ता कि किसान को सड़कों पर फेंकना पड़ जाए। विपक्ष फिर चिल्लाएगा ‘हाए बेचारा किसान, क्या खाएगा, क्या कमाएगा ?

यानि पहले जनता के लिये दुखी, फिर किसान के लिये दुखी। सरकार बेचारी करे तो क्या करे ? क्योंकि एक के सुख से दूसरे का दुखी होना सहज स्वाभाविक है।

कुत्ते कीमती या इंसानी बच्चा

हर बात के दो पहलू होते हैं एक अच्छा एक बुरा।

कहते हैं बंद घड़ी भी दिन में दो बार सही समय बताती है। नगर निगम शहर का कूड़ा-करकट समेट कर टेªचिंग ग्राउण्ड पहुंचाने का काम करती है। काम तो अच्छा है पर इस अच्छे काम का दूसरा बुरा पहलू भी है।

इसका कोई बुरा प्रभाव भी पड़ रहा है ये अब पता चला। दरअसल शहर भर में लोग कूड़ा फेंकते थे जिसमें से खाने की चीजें छांटकर कुत्ते खा जाया करते थे लेकिन अब चूंकि कूड़ा निगम द्वारा अन्यत्र ले जाया जाता है लिहाजा कुत्ते भूखे रह जाते हंै और बौखला जाते हैं जिससे वे लोगों को काटने लगे हैं।

काटने का दूसरा कारण कुत्तों का बीमार होना भी है। राजधानी में हर दिन कुत्तों के काटने की घटनाएं होती रहती हैं। सामान्यतः हर दिन 12 से 15 घटनाएं घट रही हैं। निगम वाले निश्चिंत हैं कि कुत्तो से शहर को निजात न दिला पाने के कारण उनकी तनख्वाह पर आंच नहीं आती।

सबसे बड़े दुख की बात है कि कुत्तों को कंट्रोल करने या यूं कहा जाए कि इंसानी जान बचाने के दो तरीके दिखते हैं। एक तो कुत्तो को मार दिया जाए, दूसरा उन्हें पकड़कर कहीं दूर जंगल में छोड़ दिया जाए।

पर हमारी महान नेत्री मेनका ने कुत्तों को मारनेवालों को लटकाने का फरमान जंारी करवा दिया तो उन्हें मारना बंद हो गया। चाहे इंसानी बच्चें मरें तो मरें, कुत्तों के बच्चे नहीं मरने चाहियें। और रहा सवाल पकड़ने का तो किसे पड़ी है कुत्तों को दौड़ाए, पकड़े।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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