वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…ये चार, कांग्रेस पर भार

शतरंज की चालें भी शर्मिन्दा हो जाती हैं जब सियासत का खेल खेला जाता है। यूं अपने सामने, सामने वाले के समुदाय के प्रत्याशी खड़ा कर उसके  वोट कटवाने का खेल अब कोई नया नहीं रह गया है।
ये एक सामान्य सी बात है। सामने जो तगड़ा दुश्मन है उसके समर्थक वर्ग में से कई लोगों को चुनाव में खड़ा कर दो जिससे वो उसके वोट काट दे। इस काम के लिये अपने प्रचार में खर्च करने के अलावा जिसे खड़ा किया गया है वोट काटने के लिये, उसके प्रचार का खर्च भी उठाना पड़ता है लेकिन जंग आसान हो जाती है।

भाजपा के बड़े सहयोगी
अकबरूद्दीन, मायावती

मसलन ये कहा जाता रहा है कि अकबरूद्दीन ओवेसी की पार्टी को भाजपा सपोर्ट करती है। ओवेसी अपने प्रत्याशी खड़े करता है और जाहिर तौर पर वो मुस्लिम वोट काट देते हैं जिससे कांग्रेस को नुकसान होता है और भाजपा की जीत की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
उत्तरप्रदेश में कदाचित् यही कारण है कि मायावती विपक्षी गठबंधन से तालमेल नहीं कर रही है। दिखता यही है कि मायावती अपने प्रत्याशी उतारेगी और वे चुनाव मेें जी भरकर भाजपा को कोसेगी।
लेकिन इससे होगा ये कि भाजपा के विरोधी बसपा को अपना खैरख्वाह समझकर भाजपा के विरोध में उसे वोट करेंगे। साफ जाहिर है बसपा कांग्रेस की प्रतिद्वंदी बन गाएगी उसके वोट काटंेगी। इससे भी भाजपा को फायदा होगा।

छत्तीसगढ़ में
पर्दे के पीछे भाजपा के सहयोगी

छत्तीसगढ़ में भी वही ंखेल बड़े स्तर पर खेला जा सकता है। कुछ समय पहले एक उपचुनाव में जब भाजपा और कांग्रेस आमने सामने थे तो सर्व आदिवासी समाज ने अपना प्रत्याशी खड़ा किया था। मकसद क्या था पता नहीं मगर ऐसा करने से भाजपा को लाभ हुआ था, मगर वो जीत हासिल नही ंकर पाई। आदिवासी समाज के प्रत्याशी होने के बावजूद कांग्रेस जीत गयी थी।
पंाच साल पहले विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद कांग्रेस ने लगातार शानदार बढ़त बनाए रखी। लगातार चुनाव जीतती रही। निश्चित रूप् से ये कहा जा सकता है कि अभी भी रेस में कांग्रेस आगे है।

भाजपा को हार से है बचना
तगड़ी है कदाचित् व्यूहरचना

अब यहां पर ये देखने लायक होगा कि किस तरह की व्यूह रचना करके भाजपा अपनी जीत का रास्ता तैयार करेगी। यहां ये सोचना गलत होगा कि भाजपा अब से बीस साल पहले वाली भाजपा है। अब की भाजपा को सारे दांव आते हैं।
और ये गलत भी नहीं साम, दाम, दण्ड और भेद सारे हथकण्डे अपनाकर ही चुनाव जीता जा सकता है।
जीत के इन साधनों में नैतिकता जैसी बात फिजूल है। केवल जीत ही लक्ष्य है।
तो इस बार ‘हम जीत रहे हैं’ ये मुगालता  वरिष्ठ भाजपाई नहीं पाल रहे हैं। किसी भी सीनियर लीडर से बात करो तो वे इस बात को कभी खुलकर कभी ढके-छिपे स्वीकार करते हैं।
फिर भी उनका जोश कम नहीं है, जिससे लगता ये है कि उनके पास जीत का फार्मूला तैयार है। कोई न कोई बड़ी चाल अभी उन्होंने बचाकर रखी है जो उन्हें जीत के रास्ते पर ले जाएगी।
हम तो डूबेंगे सनम
तुमको भी ले डूबेंगे

आम तौर पर सियासी समझ रखने वाले इस बात से वाकिफ हैं कि प्रदेश में जोगी कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी, सर्व आदिवासी समाज और स्थानीय स्तर पर कांग्रेस समर्थक समाज के कुछ लोग जब चुनाव में स्वतंत्र भागीदारी करते हैं तो वे जानते हैं कि जीतना असंभव है, लेकिन फिर भी लड़ते हैं क्यांेकि उन्हें पता है वे खुद के लिये चाहे जीतना असंभव है लेकिन किसी और को हराना संभव है।
यहां उपरोक्त संगठन खुद चाहे न जीतें, लेकिन कांग्रेस के वोट काटकर कांग्रेसी प्रत्याशी की जीत मुश्किल कर देंगे। इनको ये लाभ है कि ये अपना अस्तित्व बचाए रखते हैं और ताकत का प्रदर्शन करते हैं।
ये चार पार्टियां अगर इस बार ताल ठोककर चुनाव मंे लड़ीं तो कांग्रेस की राह थोड़ी कठिन कर सकती हैं।

ताल ठोककर भूपेश बघेल

इस बात में कोई दो मत नहीं हैं कि भूपेश बघेल कोई नये खिलाड़ी नहीं हैं। उन्हें राजनीति के सारे दांवपेंच आते हैं और वे इन सारे अवरोधकों से भली भांति परिचित हैं और इनकी काट भी सोच रखी होगी तथापि इन चार पार्टियो की ताकत और उससे होने वाले नुकसान को नकारा नहीं जा सकता।

संभव है कि भाजपा इन संगठनों को जमके आर्थिक सहयोग करे और चुनाव में इनका परचम लहराने में कोई कोर कसर न छोड़े। इससे भाजपा कांग्रेस को कमजोर कर सकती है।

हांलांकि सीटों पर अभी तक बंटवारा हुआ नहीं है खबर है कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से दिल्ली और पंजाब की मांग की है। जिसके एवज में मध्यप्रदेश और राजस्थान में आप कांग्रेस के लिये मैदान खाली कर सकती है। छत्तीसढ़ इसमें अछूता है। यदि ये समझौता हुआ तो छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी ताल ठोककर लड़ेगी।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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