नई दिल्ली (IMNB ). लचीलापन और स्थिरता शिखर सम्मेलन : परिदृश्य 2047 ने पूरे भारत के विशेषज्ञों को एक साथ एक मंच पर लाकर वर्तमान एवं भविष्य के आपदा जोखिमों तथा जलवायु संदर्भों के साथ-साथ उनके बदलते परिदृश्यों के प्रमुख पहलुओं पर विचार-विमर्श किया है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य श्री कृष्ण एस वत्स ने आज से नई दिल्ली में प्रारम्भ हुए इस 3 दिवसीय शिखर सम्मेलन में कहा कि “देश में आपदा जोखिम और विशेष रूप से जलवायु संबंधी आपदाओं को कम करने के लिए क्षेत्रीय असमानता एक प्रमुख चुनौती है।”
उन्होंने कहा कि भारत लचीलेपन का निर्माण करके आपदाओं के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के लिए ठोस प्रयास कर रहा है जो इस तरह की क्षतियों को कम करने में प्रदर्शित किया गया है । राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) एवं और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के किए जर्मन संस्थान (जीआईजेड-इंडिया) द्वारा सह-आयोजित इस शिखर सम्मेलन में एडीएमए सदस्य ने आपदा जोखिम में कमी की दिशा में आगे बढ़ने के तरीके को चुनौती देने के लिए विजन 2047 के विकास की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया ।
एसईआरबी के सचिव तथा डीएसटी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अखिलेश गुप्ता ने जलवायु संबंधी आपदाओं के लिए मानव अनुकूलन क्षमता के निर्माण में सामाजिक-आर्थिक विकास के महत्व पर बल दिया। उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे भारत की गरीबी और जनसंख्या जलवायु प्रभावों के प्रति इसकी भेद्यता से जुड़ी हुई है जिसके चलते भारत के पूर्व और पूर्वोत्तर जैसे कुछ क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।
“जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक कारक है लेकिन इसके स्थानीय प्रभाव भी हैं। अत: इससे निपटने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय कार्यक्रमों के अलावा स्थानीय रणनीतियाँ एवं योजनाएँ भी प्रभावी होंगी। भारत उन कुछ देशों में से एक है जो जलवायु कार्य योजना को लागू करने के क्षेत्र में बहुत कुछ कर रहा है, किन्तु वह जलवायु से सबसे बुरी तरह प्रभावित होने वाले देशों में से एक है। भारत को 2015 में पेरिस में सीओपी निर्णय के एक अंश के रूप में प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त होने थे परन्तु लेकिन इसे शायद ही कुछ मिला हो। डॉ गुप्ता ने आगे कहा की एशिया और प्रशांत हेतु संयुक्त राष्ट्र का आर्थिक और सामाजिक आयोग ईएससीएपी के एशिया प्रशांत आपदा प्रतिवेदन 2022 की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत को केवल अनुकूलन के ही लिए 46.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वार्षिक निवेश की आवश्यकता है”।
महाराष्ट्र के वन, सांस्कृतिक कार्य और मत्स्य पालन मंत्री, श्री सुधीर मुनगंटीवार ने आपदाओं को कम करने में वनों और जैव विविधता के महत्व के बारे में बात की।
जबकि भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि डॉ. रोडेरिको एच आफरीन, ने जलवायु परिवर्तन के कारण बीमारियों के बढ़ते जोखिम को रेखांकित किया, भारत के डिप्टी रेजिडेंट श्री डेनिस करी ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत की ठोस वैश्विक भूमिका के बारे में बात की।
शिखर सम्मेलन के पहले दिन विशेषज्ञों ने हाल के अनुभवों, नवाचारों, सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं और विज्ञान में विषय के अध्ययन, आपदा लचीलापन और जोखिम में कमी के लिए विशिष्ट नीति-योजना-अभ्यास अंतराफलक को साझा किया। उन्होंने भविष्य के परिदृश्य के साथ क्षेत्र-विशिष्ट, क्षेत्रीय एवं रणनीतिक हस्तक्षेपों के लिए लचीलेपन के प्रारूप को स्थानीय बनाने के उपायों पर भी चर्चा की।
शिखर सम्मेलन के विचार-विमर्श से आपदा जोखिम न्यूनीकरण एवं जलवायु लचीलापन के लिए एक रणनीतिक ढांचे के अंतर्गत ‘स्थानीयकरण’ एजेंडे के लिए एक यथार्थवादी कार्य योजना के साथ भविष्य के ‘जोखिम और लचीलापन’ के प्रमुख संदर्भों की पहचान करने की आशा है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेडाई फ्रेमवर्क (सेडाई फ्रेमवर्क फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन–एसएफडीआरआर) और सहयोग पहलों को प्रदर्शित करने के अतिरिक्त यह हाल ही में, अतीत की और प्रस्तावित पहलों को भी प्रस्तुत करने का एक उपयुक्त अवसर होगा, जिसमें जी-20 शिखर सम्मेलन, पर्यावरण-पुनर्स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र दशक और मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण प्रतिरोधक सभा (यूएनसीसीडी) से संबंधित पहल इत्यादि शामिल हैंI